Monday, November 22, 2010

नीरू माँ का सत्संग

नीरू माँ के सत्संग में सुना था कि हम जो भी कर रहे हैं सब पहले से व्यवस्थित है .हमारा उठना बैठना चलना फिरना ये सब तो प्रकृति के द्वारा स्वभाववश होता रहता है.
इसके अलावा हमे जो काम करने पड़ते हैं किसी के कहने पर या अपनी इच्छा से प्रेरित होकर ,वे सब कर्मफल हैं.कर्म तो हमारे अंदर के भाव हैं उस भावदशा के अनुसार ही कर्मफल होते हैं अच्छे या बुरे.इसलिए ही कहा जाता है कि अच्छे संस्कार डालो ,अच्छा सोचो.सो हमे जो भी कर्मफल मिल रहा है उसे भोगते हुए अपनी भाव दशा बिगाड़नी नहीं चाहिए .सम रहना चाहिए.क्योंकि तभी हम नया कर्मफल बांधने से बच पायेंगें .
और इसके लिये आसान तरीका तो यही है कि अपने को कर्ता समझें ही नहीं जैसा कि गीता मे बताया गया है कि सब स्वभाव से ही हो रहा है.अपने अहंकार को बीच में मत लायें .अहंकार यानि अपनी मै को बीच में लाने पर ही भाव बनते हैं पुण्य के या पाप के.जब हम कर्ता ही नहीं हैं तो अहंकार का सवाल ही नहीं उठता .

1 comment:

  1. वाह! कर्ता भाव गया तो साक्षी भाव आ गया, यानि परम से निकटता का अनुभव होने ही लगेगा... और इसके बाद मंजिल ज्यादा दूर नहीं...

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