Sunday, February 5, 2012

सोहनी की गुफा -भाग (५)

पड़ोस की लड़की स्कूल में दूसरे बच्चों को कहती थी कि सोहनी तो किसी गुफा में रहती है क्योंकि स्कूल से आने के बाद घर में घुसती है तो सुबह स्कूल आने के समय ही घर से निकलती है.
सोहनी अपनी गुफा में बहुत खुश थी उसमे उसके दादा-दादी ,चाचा -चाची और बुआ भी रहती थी .
उनके घर में हर महीने नंदन,चम्पक ,पराग, चन्दामामा ,धर्मयुग ,हिदुस्तान, नवनीत ,कादम्बिनी ,रीडर डाइजेस्ट, माधुरी ,सरिता इत्यादि ढेर सारी मैग्जीन्स आती रहती थी.उसके पापाजी लाईब्रेरी से भी किताबें लाते थे .
उसका भैया कुछ भी पढ़ते हुए ही खाना खाता था.कई बार तो उसके हाथ से मैग्जीन छीननी पड़ती थी .
उसके भैया की स्टडी टेबल पर रेडियो था. गाने लगाकर ही पढ़ाई करता था.हालांकि उसे एक भी गाना याद नही था गाने के संगीत की मधुर आवाज में उसका मन पढ़ाई में केन्द्रित होता था.
उसका भाई बहुत सुंदर और पढ़ाई में होशियार था.पर उसकी लिखाई महात्मा गांधीजी की लिखाई की तरह थी ,उसके मास्टर साहब उसे कहते थे कि काश उसकी लिखाई भी उसकी शक्ल जैसी होती .
उनका परिवार एक बड़ा परिवार था इसलिये जब भी घर में फल मिठाई आते तो सबके लिए हिस्से बन जाते थे और सोहनी की नजर सबसे बड़े वाले हिस्से पर रहती थी .उसका कहना था कि उसे सबसे ज्यादा भूख लगती है इसलिये उसे बड़ा हिस्सा चाहिए.
सोहनी जब छोटी थी तो उसे तीन पहियों वाली साईकिल लेकर दी गई थी उस पर बैठकर ही वह खाना खाती, सो जाती किसी के घर जाना हो तो रिक्शे पर उसकी साईकिल को भी ले जाना पड़ता.एक मिनट के लिए भी वह अपनी साईकिल को छोड़ना नही चाहती थी.
एक बार मेले से एक गुड़िया भी ली जो लिटाने पर आँखे बंद कर लेती थी बैठाने पर आंखे खोल लेती थी.उसके भैया ने मोटरसाईकिल वाला खिलौना लिया था.
स्कूल की छुट्टियाँ पड़ने पर सोहनी अपने भैया के साथ रिक्शे पर बाजार गई थी और दोनों ने अपने खेलने के लिए लूडो और सांप सीड़ी खरीदी थी.
उसके भैया ने अपनी पाकेट मनी इकट्ठा करके कैरम बोर्ड और एक बार मैकेनिकसेट भी लिया था.उसकेभैया को पुर्जों से जोड़ कर कुछ बनाने में बड़ा आनंद आता था.सब कहते थे कि यह तो बड़ा होकर मैकेनिकल इन्जीनियेर बनेगा.
अक्सर इतवार को उसके पापाजी उन सब भाई -बहिनों को कम्पनी गार्डन में घुमाने ले जाते थे ,पर उनकी मम्मीजी नही जा पातीं थीं , क्योकि उस समय वह उन सबके लिए खाना बना रही होती थीं .
तरबूज के मौसम में सब बच्चे गोलाई में बैठ जाते और उनके पापाजी तरबूज काट कर सभी को दिया करते थे जैसे अब केक काटने का फैशन है .अब तो सोहनी अपना जन्मदिन भी तरबूज काटकर ही मनाती है.
छोलियों (हरे चने )के मौसम में पके छोलिये धूप में सुखाये जाते और फिर उसके पापाजी सूखे छोलियों को आँगन में आग में भूनते ,बच्चे आस-पास बैठ जाते और गरमा गर्म भुने छोलियों को खाने का लुत्फ़ उठाते..
उनके पापाजी का समय समय पर तबादला हो जाता था.इसलिय उसने  कई शहर देख   लिए जैसेकि सहारनपुर, बस्ती शाहजहांपुर ,सीतापुर, मुरादाबाद, गोपेश्वर ,मुजफ्फरनगर.
सहारनपुर में वह काफी समय अपने दादाजी के मकान में रहे, उसमे ईंटो का फर्श था जिसपर झाडूं- पोचा लगाना उसे सिखाया गया .
पानी के लिए हैण्ड-पम्प था .जब मम्मी कपड़े धोने के लिए बैठती तो नल चलाकर टब में पानी भरना उसकी जिम्मेदारी थी .
चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियाँ मगाईं जातीं तो उन्हें धूप में सुखाने के लिए कई बार सब बच्चे मिलकर छत पर चढ़ाते .




1 comment:

  1. वाह, आपको तो सभी बातें इतनी अच्छी तरह याद हैं...कई तो मेरे लिये भी नई हैं, बचपन की ये बातें किसे नहीं लुभाएंगी, आभार !

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