बात सही है कि संसार दुःख है पर सुख भी तो संसार से ही मिलता है.हमे संसार में ही तो भाई,बहिन, अड़ोसी ,पड़ोसी का सुख मिलता है.उनके साथ मेरेपन का भाव भी अपनेआप ही जुड़ जाता है .मेरा घर,मेरा बगीचा ,मेरा देश ,मेरा ब्लाग वगैरह- वगैरह भाव सुख देते हैं.
पर अगर ध्यान से देखें तो सुख सिर्फ तभी मिलता है जब हम इन सम्बन्धों में त्याग की भावना रखते हैं.अगर माँ,बाप अपने बच्चों का ख्याल न रखें तो माँ ,बाप किस बात के ,इसीतरह अगर बच्चे माँ ,बाप का ख्याल न रखें तो बच्चे किस बात के ?मेरा घर जिसे हम कहते हैं उसे सजाने सवांरने मे अपने आराम ,समय और धन का त्याग न करें तो मेरा घर कैसे सुख देगा. हर वह चीज जिसमे मेरा शब्द जुड़ा है उससे सुख पाने के लिये त्याग जरूरी है .अपने समय का त्याग,अपने आराम का त्याग ,अपने धन का त्याग .क्योंकि जिससे हमें कुछ मिलता है उसे हम कुछ न दें तो दोनों ही नही बचते .हर व्यक्ति को पेट भरने के लिये मेहनत करनी ही पडती है पर मेहनत करने की ताकत भी तो पेट से ही मिलती है .पेट सिर्फ अपने लिये ही तो नही खाता.खाना हजम करके हमे मेहनत करने लायक बनाता है.पर जैसे खाना तो हमे रोज पड़ता है ,इसीतरह रोज ही अपने सुखों केलिए कुछ त्याग करना पड़ता है.
Sunday, May 22, 2011
Friday, May 6, 2011
नए युग की शुरुआत
अभी भी कुछ लोगों के मन में लादेन के मरने का अफ़सोस है .ऐसा ही रहा तो दूसरे लादेन को जन्म लेने में ज्यादा देर नही लगेगी. ढेर सारे व्यक्तियों के दिल की सदभावनाएँ अच्छाईयां किसी एक व्यक्ति के माध्यम से काम करती हैं जैसे की अन्ना हजारे जिन्होंने जनकल्याण के लिये अनशन का बिगुल बजाया .अभी सफलता मिलनी बाकी है पर उसके लिये अभी हमे अपनी सद्भावनाओं में कमी नही लानी है.इसी का नतीजा है ओसामा जैसे आतंकवादी से मुक्ति.हमारे दिल की नफ़रत और बुराइयों ने ही उसे जन्म दिया था. सीधे -सीधे अन्नाह्जारे ने लादेन को मारने की मुहिम भले ही नही छेड़ी थी . पर उससे क्या होता है.हमारे मन के अच्छे और बुरे भावों का ही तो सारा खेल है.
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