Saturday, April 28, 2018

मोक्ष


आज सुबह ध्यान में लेटी तो तभी एकदम से समझ में आ गया गीता के उस श्लोक का मतलब कि मै सब में हूँ पर सब मुझ में  नही, समझ में इस तरह आया कि जड़ और चेतन दोनों अलग अलग  हैं , प्रकृति जड़ है, तो जब कहते हैं  कि  कण,कण में तू है तो लगता है कि गंदगी  में कैसे हो सकता है भगवान ,सुंदर फूल में तो हो सकता है पर कीचड़ में कैसे हो सकता है तो अब समझ में आया कि जैसे एक प्लास्टिक के खिलौने में बैटरी डालने से वो चलता बोलता है उसी तरह बैटरी रूपी चेतन आत्मा के होने से हम जीवित हैं .
सूरज के प्रकाश से पेड़ ,पौधे, बारिश वगैरह एक सीक्वेंस से चलते रहते है इसी तरह इन्सान भी आत्मा के प्रकाश से सब कुछ करता रहता है पर फर्क इतना है कि इन्सान के अंदर अहंकार भी है वो समझता है कि खुद कर रहा है.
ऐसा जब कहते हैं कि परलोक को सुधारो, अच्छे कर्म करो ताकि अगला जन्म अच्छा मिले तो कुछ लोग कहते हैं कि परलोक को किसने देखा है, क्या पता दूसरा जन्म होगा भी या नही ,इस जन्म में मौजमस्ती कर लें, ये तो हमारे हाथ में है पर उन्हें यह समझने की जरूरत है कि इस जन्म में जो मौज मस्ती मिलनी है वो हम साथ लेकर ही आये है.
 पिछले जन्म में जो कमाया था वो साथ लेकर आते ही है ,उन सबका उपयोग करते करते मन ही मन दूसरे जन्म की कमाई करते रहते है ,अगर  मन में अच्छे भाव है तो अगला जन्म अच्छा होगा ,बुरे भाव हैं तो अच्छा नही होगा और अच्छे बुरे दोनों से परे है तो मोक्ष है. प्रकृति से ही सब कुछ चल रहा है ,आत्मा सब जानती है देखती है .प्रकृति  जड़ है ,जड़ कुछ कैसे कर सकता है अपने आप  नही कर सकता ,चेतन तत्व की उपस्थिति से ही कर सकता है जैसे कि चाबी भरने पर ही या बैटरी डालने पर ही गुड़िया बोलती है ,चलती है. चार्ज होने पर ही मोबाइल फोन काम करता है ,चन्द्रमा सूरज के प्रकाश से ही रोशनी देता है. तो गड़बड़ कैसे शुरू होती है.  दोनों के मेल से जब अहंकार बनता है तभी गड़बड़ शुरू होती है ,क्योंकि अहकार होने से हम सोचते हैं कि हम करते हैं खुश होते हैं कि मैं कितना अच्छा करता हूँ ,कितना  योग्य हूँ दूसरे का अहंकार  अपने को योग्य मानता है यहीं से झगड़े की जड़ शुरू हो जाती है अगर हम आत्मा की सीट पर ही रहें तो ऐसे आनन्द में रहेंगे जहाँ न सुख है न दुःख .जैसे कि एक छोटा बच्चा मस्ती में रहता है.

Sunday, April 22, 2018

गौ माता

गऊ माता
आखिर क्यों मारा तुमने उसे ,कोई माँ नही सिखाती किसी की जान लेना,
 एक माँ  के लिए दूसरी माँ को दुखी किया ,भला क्या पाया तुमने ,
इससे तो अच्छा होता तुम उसे थाली परोसते ,जिसमे गाय के दूध से बनी
 खीर होती ,शाही पनीर होता,मलाई कोफ्ता होता ,दाल पर देसी घी का तड़का होता
रोटी पर मक्खन होता ,साथ में छाछ होती और बाद में खिलाते उसे शुद्ध खोये की बर्फी
तो क्या उसे समझ नही आता कि गाय क्यों है हम सब की माता !


Friday, April 20, 2018

परिवर्तन


कुछ भी नही समाप्त होता बस रूप बदलता है .
पहले बच्चे बड़ों के हाथ पांव दबाते थे ,
अब वे उन्हें मसाज चेयर पर बैठा देते हैं .
पहले उनके लिए भोजन पकाते थे ,
अब आर्डर देकर बाहर से मंगाते हैं  .
यानि बड़ों की सेवा पहले भी करते थे ,
अब भी करते हैं ,भावनायें वहीं हैं .
पर परिस्थिति ने रूप बदल दिया है.

Wednesday, April 18, 2018

हरियाली


मैने देखा जोलीग्रांट  एयरपोर्ट जाते समय कि किस तरह जंगल की तरफ बंदूक का निशाना लगाये पहरेदार  बैठा था ऊंची इमारत पर ,जंगल का हरा  भरा नजारा  मुझे बहुत अच्छा लगा पर अगले ही पल समझ में आया कि शायद ऐसा लगाव इस पहरेदार को रहा होगा पिछ्ले जन्म  में सो अब लगातार उसे इस हरियाली को देखते रहना है तो क्या अब भी उसे आनन्द मिलता होगा .
कोई भी सुख जो हमारी इन्द्रियों के लिए  है ,ज्यादा देर तक सुख नही दे सकता तो फिर ऐसे सुख की लालसा ही क्यों की जाये ,वो तो बंधन हो जाएगा.
तो फिर चाहिए क्या,मकसद क्या है इस जीवन का ,कुछ भी नही चाहिए तो ज़िंदा क्यों हैं ,मकसद है अपने स्वरूप को पाना ,हमारा स्वरूप आनन्द ही है ,ऐसा आनन्द किसी का मोहताज नही है और उसको पाने की कीमत है हम स्वयं ,खुद को खोकर ही वो मिलता है. 

Monday, April 9, 2018

कर्ता हम नही हैं

देवदास जी के साथ नरेंद्र स्वामी जी से मिलने ओशो आश्रम चले गए.उनसे सवाल किया गया कि हम कर्ता नही हैं तो फिर कर्मों का फल हमे कैसे मिलता है .स्वामीजी ने बताया कि अभी हम इस ज्ञान तक पहुंचे ही कहाँ हैं कि हम कर्ता नही हैं.ध्यान करो पहले ,जब अंदर से अनुभव में आजायेगा कि हम कर्ता नही हैं तो कर्मों के फल की बात भी खत्म हो जायेगी.
आज के सत्संग में फिर से सुना कि मै कर्ता नही हूँ,उदाहरण के रूप में बताया कि हम कभी गुस्सा कर बैठते हैं और बाद में सोचने लगते हैं कि ऐसा कैसे हो गया.मै तो  गुस्सा करती नही हूँ फिर मुझे गुस्सा कैसे आ गया.उससे पता चलता है कि हम कर्ता है ही नही ,कर्ता ने गुस्सा प्रकट करना था ,कर दिया ,ऐसा ही उदाहरण पहले योगानन्द जी की आत्म कथा  में पढ़ चुकी हूँ.आज का पूरा दिन इसी भाव को लेकर चलूंगी ,अनुभव  भी यही कहता है कि हम कर्ता नही हैं .

Saturday, April 7, 2018

सन्यास


सत्संग सुना ,एक प्रश्नोत्तर याद रह गया कि सन्यास का मतलब क्या होता है ,तो गुरूजी ने बताया कि व्यास के साथ ...व्यास के माने एक बिंदु ...एक परिधि ...एक केंद्र जिसकी  सब ओर समान निगाहे हों यानि जो सबके लिए समभाग  रखता है ,उसक लिए ऊँच, नीच ,छोटा, बड़ा कुछ नही है ,सन्यासी के लिए सब बराबर होते हैं ,तो मुझे भी तो आजकल कुछ ऐसी ही अनुभूति होती है .

Thursday, April 5, 2018

तेज गुरु का सत्संग


 तेज गुरु का सत्संग सुना ..बता रहे थे कि जैसे तुम किसी दीवार का सहारा लेकर खड़े होते हो या आरामकुर्सी पर बैठ कर आराम करते हो,तो पूरी तरह से निश्चिंत होते हो कि दीवार नही गिरेगी,कुर्सी नही टूटेगी,और इस भरोसे के साथ  पूरी  तरह रिलेक्स महसूस करते हो,उसी तरह का भरोसा ईश्वर पर होना चाहिए.
बस ,ट्रेन  में सफर करते समय अपना सामान हाथ में रखने के बजाय वहाँ रख देते हो. उसी तरह अपने मन की चिताओं का वजन ईश्वर पर छोड़ो और निश्चिंत रहो.दिन भर, यही ख्याल बना रहा.

Wednesday, April 4, 2018

आत्मा


आत्मा सब जानती है उसे पता है कि मरीज कब ठीक होगा मौसम कब सुहावना होगा.
 उसे मरीज की मम्मी के नानू  का भविष्य भी पता है कि कब तक उनका साथ रहेगा ,मामू की कम्पनी कितनी तरक्की करेगी .मामू इंडिया में सैटल होंगे या विदेश में ही. मौसी  का नया घर कब तक बनेगा .
आत्मा ही तो है जिसे भूत भविष्य सब पता है और वो आत्मा हरेक के भीतर है ,हम अपने अंदर आत्मा को महसूस  करने का प्रयत्न करते हैं ताकि हमे भी सब दिख जाये पर मुश्किल यहाँ ये है कि आत्मा का कोई रिश्ता नही होता ,मामू ,मौसी ,नानू  चाचू ,बुआ ,दादू कुछ नही होता , सब रिश्ते उस व्यक्ति के होते है, व्यक्ति गया रिश्ता गया .
आत्मा के होने का अहसास हमे एक तसल्ली देता है कि सब रिश्ते टम्परेरी  है ,जो कुछ उनके जीवन में होना है होकर ही रहना है हम पहले से जान कर  क्या करेंगे ,पिक्चर चलने दो, एंड को पहले क्यों देखते हो.तुम्हारा असली स्वरूप तो आत्मा ही है ,जो हमेशा से थी ,हमेशा रहेगी ,उसकी छाया में  रहो ,आनन्द की वर्षा  होती  रहेगी. 

Monday, April 2, 2018

काली फीकी चाय

सोहम सोहम  जपते जपते जबसे ये पता चला है कि ईश्वर और कोई नही हम खुद ही हैं ,तब से मुश्किल हो गयी है अब जो भी करती हूँ उसके लिए ऐसा नही कह सकती कि ईश्वर ने ऐसा क्यों किया ,क्योंकि ईश्वर मै खुद ही हूँ.
चाय के साथ दही खाई ,चाय दो बार पी ली तो अब ये तो नही कह सकते कि ईश्वर की मर्जी ,मर्जी तो खुद की थी ,खुदा की नही ,खुद ही तो ईश्वर हूँ पर ईश्वर इतना कमजोर कैसे जो अपने खाने पीने की आदतों में भी सुधार नही कर सकता . अगर कहूँ कि वो तो गीता है ,उसका अहंकार ,उसकी इगो है तो ईश्वर कहाँ छुपा हुआ है उसे कौन सामने लायेगा उसे तो भूख प्यास भी नही लगती.

क्योंकि असल में तो वो सिर्फ देखता और जानता है ,करता कुछ नही ,उसने देखा कि दही के साथ चाय पी जा रही है और वो जान गयी कि ऐसा है ,अब गीता जगी हुई थी इसलिए वो भी देख पाई ,जान पाई ,अब गीता की मर्जी है जैसा चाहे करे आजादी है उसको ,पर असल में गीता की सत्ता मिथ्या है ,अभी है और अभी नही हो जायेगी उसकी असल सत्ता तो बिना रूप और नाम की है ,उसे चाय से कोई मतलब नही ,दही से कोई मतलब नही .तो गीता क्या करे ,गीता बस जागी रहे ,जगने से उसे दिख जाता है कि चाय के साथ दही नही चलती और सच में वो जग गयी अब वो चाय पीती है पर खालिस  चाय ,दूध ,चीनी भी नही डालती,ऐसी चाय नुकसान नही करती ,ऐसा उसने पढ़ा ,सुना है और  ऐसा करके उसे ठीक लग रहा है.

Sunday, April 1, 2018

बस तू ही तू


सुबह उठते ही आजकल पुराने सुने हुए इस भजन की लाईन मन ही मन गूंज जाती है .....सब भार तुम्हारे चरणों में ....सब भार तुम्हारे चरणों में....या फिर ....सोच्याँ सोच  न होई ,जे सोच्ची लख वार....और मन फूल जैसा हल्का होता जाता है,कोई सोच सकता है कि सोचने की बात ही क्या है आखिर .बात तो ठीक है पर हफ्ते भर के लिए घर की नार्मल व्यवस्था से एक बड़ी व्यवस्था में बदलना भी एक प्रक्रिया है उसे कैसे सफल करना है ,इसके प्लान तो मन ही मन बनते ही हैं फिर वो सारा भार प्रभु के चरणों में छोड़ना ही पड़ता है सो जब तब गुनगुनाहट निकल पड़ती है ....सब भार तुम्हारे चरणों में ...