Thursday, August 22, 2019

बेफिक्र जिन्दगी

जब कोई सुविधासम्पन बीमार  होता है तो यही कहते हैं फ़िक्र न करों ,स्ट्रेस न लो . पर स्ट्रेस है क्या ये तो पता चले ,फ़िक्र है किस बात की ये तो पता चले ,कोई फ़िक्र नही ,कोई स्ट्रेस नही.
असल में बीमारी की वजह ही यही है कि कोई फ़िक्र नही कोई स्ट्रेस नही ,क्योंकि जीवन आरामतलब हो गया है जब बिना हिले डुले सब काम हो रहे हैं  तो कोई क्यों कुछ करने की जहमत उठाये.
चलना बंद हो गया है ,क्योंकि जब बिना चले काम हो सकते हैं तो चले क्यों .पर अब पैरों को चलने की फ़िक्र करनी होगी .
खाने में हाथों  को रूटीन परांठा बनाना छोड़ कर कुछ नया बनाने का स्ट्रेस लेना होगा .
सॉफ्ट सॉफ्ट  निगलने का आनन्द बहुत ले लिया ,दांतों को कुछ हरा  भरा चबाने का एगज्र्शन लेना होगा.
पास के आई पैड ,लेपटॉप से नजरें हटाकर दूर आकाश की तरफ देखना होगा ,जहाँ घने बादल भी है और चाँद ,सितारे भी..
कानों को टीवी सीरियल की चालबाजियों को सुनने से हटकर पक्षियों की चहचहाहट सुननी होगी ,कुछ तो स्ट्रेस  लो जीवन में ,कुछ तो फ़िक्र करो.
पहले ये सब करना टाइम वेस्ट लगता था पर होस्पिटल  के चक्कर जब लगाने पड़े तो पता चला कि टाइम वेस्ट तो अब हुआ है.

Saturday, August 17, 2019

संघर्ष


दुनिया में मुसीबतें कम नही हैं ,
जन्म से बुढ़ापे तक संघर्ष जारी रहता है .
पर कुछ संघर्ष नेचुरल होते हैं ,
जैसे कि जन्म लेते ही बच्चे का संघर्ष शुरू हो जाता है .
और एक दिन वो बैठना,चलना , बोलना सीख ही लेता है .
पर फिर शुरू होता है संघर्ष अपनों से जो मना करते हैं बार बार ,
इसे मत छूओ ,इसे मत खाओ,वहाँ मत जाओ,रोक ,रोक और रोक .
आजादी ही नही है अपनी मर्जी से कुछ करने की.
कुछ रोक तो लगानी ही पड़ती है बच्चे की सेफ्टी के लिए  पर कुछ इस लिए लगाते हैं कि उसे अच्छी तरह पता चल जाये कि वो हमारे कंट्रोल में है ,उसकी मन मर्जी नही चलेगी ,असल में हम अपनी सेफ्टी के लिए कंट्रोल करते हैं .उसकी ज्यादा आजादी हमारे लिए खतरा हो सकती है.
कुछ बच्चे विद्रोह करते हैं कुछ दब जाते हैं ,और कुछ ...लेखक ,कवि बन जाते हैं.

Sunday, August 4, 2019

आत्मविश्वास


आज भी पांच बजे ही उठी,जागरण देखा.
गाल पर एक लकीर दिखी,लगता है झुर्रियों की शुरुआत हो रही है.
आज एडको लेडीज़ क्लब की तरफ से 'आत्मविश्वास कैसे बढायें ; विषय पर लेक्चर था .पौने दस से पौने बारह दो घंटों के लिये शामिल हुई.काफी के साथ नाश्ता भी किया.लेक्चर बढ़िया था.टोटल सात प्वाइंट थे.
पहले बताया कि आमतौर पर व्यक्ति सत्तर साल जीता है ,यानि 24,500 दिन और हम सब यहाँ लगभग पैंतीस के हो चुके हैं.तो अभी दिन बचे हैं 12000 के आसपास ,इसलिये दिन बेकार मत करो.
इन्हें जियो.
द्रष्टिकोण बदलो.
आदमी जैसा सोचता है वैसा ही हो जाता है .
अपने लिये पोजिटिव सोचो,पोजिटिव हो जाओगे .
जो कुछ भी तुम्हे मिला है ,ये तुम्हारा ही किया धरा है,अच्छा हो या बुरा हो.
किसी दूसरे का कोई दोष नही है अपने लिये तुम खुद ही जिम्मेदार हो.
मैं उनके लेक्चर से प्रभावित हुई और  पास जाकर थैंक्यू कहा.लेक्चर इंग्लिश में था ,इंग्लिश में ही उन्हें बताया  कि अभी- अभी ही इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स किया है और बोलने की कोशिश कर रही हूँ.उन्होंने खुशी दिखाई कि मैने जल्दी सीख लिया.वहाँ कुछ नई लेडीज से भी मुलाकात हुई -किट्टी,सिंधिया,नादिया,मेरिना और जीना.मेरिना ने खुद परिचय दिया और फोन न० दिया ,मेरा फोन न० लिया जीना से मिलवाया.इंग्लिश क्लास की  वायलेट और अनीसा से भी मुलाकात हुई हिन्द भी दिखी थी.बढ़िया अनुभव रहा मीटिंग में शामिल होना.