Monday, June 27, 2011
स्वयं को जानने की कोशिश
जो कुछ हम कर रहे हैं वह तो हमे करना ही होगा या कि हमसे करवाया ही जायेगा क्योंकि हमारा यह स्थूल रूप यही सब करने के लिए ही हमे मिला है.हमने ही अपनी सोच से ऐसा स्थूल रूप प्राप्त किया है.कुछ भी करते हुए हमारे अंदर जो भी चलता रहता है उसके अनुसार हम अपना आनेवाला स्थूलरूप गढ़ते रहते हैं ,और यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है.जैसेकि हमारे भीतर चल रहा है कि वह फलां इंसान अच्छा नही है तो हम भविष्य में उस व्यक्ति के प्रति नफरत या उससे दूर रहने की भावना से ग्रसित रहने वाले हैं.और अगर अच्छी भावना आ गई तो भविष्य में उसका भला करने वाले हैं ,इस तरह भीतर जो चलता रहता है वही भविष्य की नींव होती है.नींव जैसी बनती गई उसीके अनुसार आगे का जीवन विस्तृत या संकुचित द्रष्टि वाला होने वाला है.इसलिए हमे चाहिये कि बाहर से ज्यादा अपने भीतर की दुनिया पर ध्यान दें कि वहाँ क्या चल रहा है.ऊपर से अच्छा बनने का उतना फायदा नही है क्योंकि बाहर का काम तो हमारे अंदर सतत चलने वाली प्रक्रिया के अनुसार ही होता है.फिर हम कहते हैं कि हमने तो इतना भला किया उसके साथ और उसने ऐसा किया मेरे साथ .अपने भीतर टटोलें कि क्या हम सचमुच उसके हितैषी हैं या सिर्फ दिखाने भर के.
Monday, June 6, 2011
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन
कर्म करने में अधिकार है पर फल पाने में नही.मन ही मन इसको स्पष्ट करने की कोशिश की तो समझ में कुछ इस तरह से आया कि जैसे किचन में चाय बनाना तो हमारे अधिकार में है पर कैसे बनेगी ,पीने को मिलेगी या नही ,कुछ नही कह सकते क्योंकि चाय बनाने का सामान पत्ती,चीनी ,दूध भी तो चाहिये ,सामान जिस क्वालिटी का होगा ,चाय भी उसी क्वालिटी की होगी.बनने के बाद उसमे मक्खी गिर गई तो... .इसी तरह और सारे काम हैं,जो सिर्फ हमारे करने भर से पूरे नही होते.हम तो सिर्फ एक अंश तक उसमे सहयोगी होते हैं,कुदरत ही हमे उस काम के लिये प्रेरित करती है .
यहाँ हर किसी का मन एक दूसरे से जुड़ा हुआ है.तभी तो भीड़ एकमन होकर अनशन कर पाती है.क्रांति कर पाती है.तो इसी तरह से हमारे मन पर भी साथ के मन का असर पड़ता है.जब बहुत सारे मन किसी मुसीबत में पड़ते हैं तो उस मुसीबत से छुटकारा दिलाने की पुकार से कोई संत या महात्मा जन्म ले लेता है और जब बहुत सारे मन घ्रणा करने लग जाते हें तो कोई दुष्ट या आतंकवादी जन्म ले लेता है.हमे इतना अधिकार तो है कि हम संत की साइड लें या दुष्ट की .और हमेशा ही ये दोनों हमारे अंदर रहते हैं ,हमे पूरी आजादी है कि किसे चुनें.उसके बाद तो रब ही मालिक है.
यहाँ हर किसी का मन एक दूसरे से जुड़ा हुआ है.तभी तो भीड़ एकमन होकर अनशन कर पाती है.क्रांति कर पाती है.तो इसी तरह से हमारे मन पर भी साथ के मन का असर पड़ता है.जब बहुत सारे मन किसी मुसीबत में पड़ते हैं तो उस मुसीबत से छुटकारा दिलाने की पुकार से कोई संत या महात्मा जन्म ले लेता है और जब बहुत सारे मन घ्रणा करने लग जाते हें तो कोई दुष्ट या आतंकवादी जन्म ले लेता है.हमे इतना अधिकार तो है कि हम संत की साइड लें या दुष्ट की .और हमेशा ही ये दोनों हमारे अंदर रहते हैं ,हमे पूरी आजादी है कि किसे चुनें.उसके बाद तो रब ही मालिक है.
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