हम जो दिखते हैं क्या असल में बस वही हैं अगर हाँ तो हम जरूर -जरूर डिप्रेशन में पड़ने वोले हैं क्योंकि जब हम देखते हैं अपने को गौर से तो अपनी कमज़ोरियाँ अपनी विवशता नजर आती है. सबको पता है भगवान बुद्ध की कहानी कि उन्होंने घर छोड़ दिया था ,क्योंकि संसार दुःख के सिवा और है क्या.
महापुरुष और गुरुजन हमारे प्रकाश स्तम्भ हैं जो हमारे डिप्रेशन वाले अँधेरे को दूर भगाते हैं .गुरुजंन हमे हमारा परिचय कराते हैं हमारी मन की आँखों का आपरेशन करते हैं .तब हमे दिखता है कि हम शरीर ही नही हैं , यहाँ जो भी घट रहा है उसके पीछे कुछ है जो हमे दिखाई नही दे रहा, समझ में नही आ रहा और हम सोच में पड़े रहते हैं कि ऐसा क्यों.
लेकिन हर कोई चाहता है कि उसे कोई जादू की छड़ी मिल जाए जिससे छूमन्तर से उसके दुखदर्द गायब हों जाएँ तो उसके लिए इतनी हिम्मत तो करनी होगी कि हम इस संसार से थोड़ी देर के लिए बाहर चले जाएँ, बाहर जाने के लिए संसार से जो बाहर है उसे पकड़ना पड़ता है और वह है ईश्वर ,उसे हम देख नही सकते पर उसका आभास पा सकते हैं क्योंकि वह अपने प्रेम के द्वारा हमेशा ही हमारे साथ है. हम उसके बच्चे हैं ,वह हमारी रक्षा करता है .जब भी कोई तकलीफ आती है तो मदद किसी न किसी रूप में जरूर आती है. हम उसके लायक भी नही होते, उससे कही ज्यादा मदद आती है पर हमारा ध्यान उस के प्रति कृतज्ञ होने का नही होता वरना जो भी मिलता है उससे अधिक पाने में लगा होता है कभी उसकी दी नेमतों पर भी ध्यान दें. तो हम पायेगे कि हम उसके ऋणी हैं .
ईश्वर हमे अपनी इच्छानुसार जीने की पूरी आजादी देता है हम खुद ही अपने को मुश्किलों में डालते हैं तरह तरह की नासमझी भरी कामनाएं करके, फिर अपने को उन कामनाओं को पूरा करने में खपा देते हैं .वह हमे देखता रहता है और मुस्कराता है जैसे हम अपने बच्चों की शरारतों को देख कर कभी मुस्कराते हैं तो कभी चपत भी लगाते हैं उसी की भलाई के लिए.पर ईश्वर को तो चपत लगाने की जरूरत भी नही पड़ती क्योंकि उसने प्रकृति का सिस्टम ही ऐसा बनाया है कि गलत सोचेंग और कष्ट पाएंगे पर जो भी है वह इस शरीर तक ही है. कष्ट में भी अगर हम अपने असली वजूद को याद रखें तो कष्ट से पार हो जायेंगे.अगर हम याद रख सकें कि ईश्वर हमे सदा प्रेम करता है तो हमे कोई कामना करने की जरूरत ही नही होगी.
पर अबतक की गयीं कामनाओ के फलस्वरूप हम जिस स्थान पर हैं जो कुछ करने की जिम्मेदारी मिली हैं उन्हे पूरा करें-मगर प्रेम से .
महापुरुष और गुरुजन हमारे प्रकाश स्तम्भ हैं जो हमारे डिप्रेशन वाले अँधेरे को दूर भगाते हैं .गुरुजंन हमे हमारा परिचय कराते हैं हमारी मन की आँखों का आपरेशन करते हैं .तब हमे दिखता है कि हम शरीर ही नही हैं , यहाँ जो भी घट रहा है उसके पीछे कुछ है जो हमे दिखाई नही दे रहा, समझ में नही आ रहा और हम सोच में पड़े रहते हैं कि ऐसा क्यों.
लेकिन हर कोई चाहता है कि उसे कोई जादू की छड़ी मिल जाए जिससे छूमन्तर से उसके दुखदर्द गायब हों जाएँ तो उसके लिए इतनी हिम्मत तो करनी होगी कि हम इस संसार से थोड़ी देर के लिए बाहर चले जाएँ, बाहर जाने के लिए संसार से जो बाहर है उसे पकड़ना पड़ता है और वह है ईश्वर ,उसे हम देख नही सकते पर उसका आभास पा सकते हैं क्योंकि वह अपने प्रेम के द्वारा हमेशा ही हमारे साथ है. हम उसके बच्चे हैं ,वह हमारी रक्षा करता है .जब भी कोई तकलीफ आती है तो मदद किसी न किसी रूप में जरूर आती है. हम उसके लायक भी नही होते, उससे कही ज्यादा मदद आती है पर हमारा ध्यान उस के प्रति कृतज्ञ होने का नही होता वरना जो भी मिलता है उससे अधिक पाने में लगा होता है कभी उसकी दी नेमतों पर भी ध्यान दें. तो हम पायेगे कि हम उसके ऋणी हैं .
ईश्वर हमे अपनी इच्छानुसार जीने की पूरी आजादी देता है हम खुद ही अपने को मुश्किलों में डालते हैं तरह तरह की नासमझी भरी कामनाएं करके, फिर अपने को उन कामनाओं को पूरा करने में खपा देते हैं .वह हमे देखता रहता है और मुस्कराता है जैसे हम अपने बच्चों की शरारतों को देख कर कभी मुस्कराते हैं तो कभी चपत भी लगाते हैं उसी की भलाई के लिए.पर ईश्वर को तो चपत लगाने की जरूरत भी नही पड़ती क्योंकि उसने प्रकृति का सिस्टम ही ऐसा बनाया है कि गलत सोचेंग और कष्ट पाएंगे पर जो भी है वह इस शरीर तक ही है. कष्ट में भी अगर हम अपने असली वजूद को याद रखें तो कष्ट से पार हो जायेंगे.अगर हम याद रख सकें कि ईश्वर हमे सदा प्रेम करता है तो हमे कोई कामना करने की जरूरत ही नही होगी.
पर अबतक की गयीं कामनाओ के फलस्वरूप हम जिस स्थान पर हैं जो कुछ करने की जिम्मेदारी मिली हैं उन्हे पूरा करें-मगर प्रेम से .