Wednesday, September 15, 2010

संसार संसार ही रहेगा

संसार को कोई कभी भी नहीं सुधार सकता.हमेशा ही उसमे फिफ्टी फिफ्टी का चक्कर रहेगा,यानि आधा शुभ आधा अशुभ.सुख और दुःख उसमे हमेशा बराबर बने रहते हैं.उसी स्थिति का नाम ही तो संसार है.हम अच्छा ,बुरा कुछ भी न करें तो संसार में रहेंगे.पर इंसान कुछ भी किये बिना रह ही नहीं सकता.कभी अच्छा करता है कभी बुरा.उसी के अनुसार उसके मनोभाव बदलते रहते हैं,कभी उसे लगता है वह स्वर्ग में है कभी लगता है नरक मै है.स्वर्ग में हैं तब तो सोचना ही क्या,पर अगर लगता है कि कहाँ नरक में आ गये हम. नरक से निकलना चाहते हैं तो सिर्फ एक ही तरीका है वहाँ से निकलने का,मन ही मन माफी मांगिये उससे ,जिसके कारण आप तकलीफ पा रहे हैं.आपने उसे दुःख पहुचाया है जाने अनजाने में ,अब वही दुःख आपको दुखी कर रहा है.क्षमा मांग कर फिर से संसार में कदम रखिये. आप को लगता है कि गलती तो उसकी है क्षमा उसे मांगनी चाहिए तब भी मन ही मन आप क्षमा मांगे.नरक से छुटकारा तो आपको चाहिए.उसे नहीं.शुभ करिए और स्वर्ग में स्थान प्राप्त करिये.संसार को बदलने का ठेका मत लीजिए.अपना स्थान देखिए आप कहाँ पर हैं.संसार तो हमेशा ही मिलाजुला रहने वाला है.

10 comments:

  1. मुझे तो लगता है मन ही संसार है, मन के पार जाये बिना मुक्ति नहीँ, संसार के पार जाना होगा हमें, यदि शाश्वत शांति का अनुभव करना है, संत जन तभी न कहते आये हैं, संसार सागर है, भवसागर है, पार उतरना है!

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  2. हिन्दी ब्लाग जगत में आप का स्वागत है।
    आप के विचार से कतई सहमति नहीं है। अच्छा बुरा तो हमेशा रहेगा। लेकिन 50/50 कभी नहीं। यदि अच्छाई के लिए लगातार संघर्ष नहीं होगा तो केवल बुराई रह जाएगी जो एक दिन मानव जाति को भी नष्ट कर देगी। केवल अपने लिए सोचना व्यक्तिवाद है। मनुष्य अपने जन्म से ही सामाजिक और समूह में रहने वाला प्राणी है। व्यक्तिवाद मानवविरोधी है।
    और ये शब्द पुष्टिकरण हटाइए वरना टिप्पणियों का सदैव अकाल रहेगा।

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  3. बहुत सुन्दर लेख........... संसार तो चलता ही रहेगा जी। -: VISIT MY BLOG :- (1.) जिसको तुम अपना कहते हो......... कविता को पढ़कर तथा ।(2.) Mind and body researches.......ब्लोग को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप उपरोक्त लिँको पर क्लिक कर सकती हैँ।

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  4. "संसार को बदलने का ठेका मत लीजिए अपना स्थान देखिए आप कहाँ पर हैं" - पते की बात - अपने आप को समझना बहुत बड़ी बात है

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  5. achchhe vishya par bahut achchaa likha.....

    waah !

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  6. मन के पार जाये बिना मुक्ति नहीँ|

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  7. दिनेश जी का कथन स्पष्ट है---इसे एसे भी लीजिये..घर को रोज़ क्यों साफ़ करें, कूडा तो रोज़ ही होजाता है, और हमारा ही तो कूडा है..हमारी मर्ज़ी..वर्ष में एक बार करा लेंगे...
    ---घर को प्रतिदिन झाडू-पोंछा करने/करने का ठेका की इसलिये आवश्यकता पडती है कि अन्यथा सारा घर कूडे का ढेर बन जायगा और आपको बैठने की जगह नहीं मिलेगी, अस्वस्थ भी होजायेंगे।

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  8. उम्दा लिखा है, आपके विचार विचारणीय हैं.
    जारी रहें.

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  9. स्वागत ,सुन्दर अभिव्यक्ति । शुभ कामनाएं ।

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