विपासना ध्यान के बारे में टीवी पर परम पूज्य श्री गोयनका जी से जो सुना और नोट कर लिया था, मै चाहती हूँ कि आप सब भी जान जायें .
ध्यान का तरीका --साँस पर ध्यान दें ,साँस तेज है ,धीमी है,कहाँ छूती है ,कहाँ से यानि दायें या बायें नथुने से आती है .ध्यान भटक जाये तो वापिस लायें साँस पर .अभ्यास करते करते ध्यान साँस पर लगने लगेगा ,और इसके लिये ये तीन बातें भी सहायक हैं---पाप कर्म न करो ,पुण्य कर्म करो.चित को निर्मल करो.पाप कर्म क्या है ,कोई भी ऐसा काम जिससे अन्य प्राणियों को पीड़ा होती हो ,पाप है,सुख पहुँचाना ही पुण्य है.ऐसा करने पर मन खुद ही निर्मल हो जायेगा .मन के निर्मल होने पर हम पाप करेंगे ही नहीं हमसे पुण्य ही होगा.
Sunday, February 20, 2011
Monday, February 14, 2011
happy Valentine's day
Swami Shivanandji ke aashram se
not to be hurt by others is more difficult then not to hurt others.
start the day with God end the day with God
fill the day with God, this is the way to God.
the world is like a mirror if you smile it smiles if you frown it frowns back.
the best preacher is the heart, the best teacher is world, the best friend is God.
be good, do good, this is the way of divine life.
not to be hurt by others is more difficult then not to hurt others.
start the day with God end the day with God
fill the day with God, this is the way to God.
the world is like a mirror if you smile it smiles if you frown it frowns back.
the best preacher is the heart, the best teacher is world, the best friend is God.
be good, do good, this is the way of divine life.
Tuesday, February 1, 2011
कुछ और याद आ गया
अपने मन की बड़बड़ाहट को बंद करें .पेड़ों को देखो ,एक पेड़ छोटा है ,एक लम्बा है .क्या कोई जानवर कभी कहता है तुम छोटे क्यों हो ?तुम लम्बे क्यों हो?न ही आपस में पेड़ एक दूसरे को कुछ कहते हैं .जो है जैसा है बस है .उसे वैसा ही होना था .पर मनुष्य हर वक्त एक दूसरे में मीन मेख निकालने में लगा रहता है .यह ऐसा क्यों है?वह ऐसा क्यों हैं ?इसने ऐसा किया ,उसने वैसा किया.हर समय दिमाग में दूसरों के सम्बन्ध में विचार चला करते हैं .कम से कम उस समय तो विचारों को बंद करें जब वे दुःख देते हैं.दुखी होते रहेगें पर मन की बड़बड़ाहट को बंद नही करेंगे.जो जैसा है उसे वैसा ही रहने देने में क्या परेशानी है जिसका मन दसों दिशाओं में भागाकरता है उसे ही रावण कहते हैं ,जो सब पर कंट्रोल कर लेता है उसे दशरथ कहते हैं और ये दशरथ रूपी शरीर तभी तक है जब तक इसमें राम हैं .राम के दूर जाते ही दशरथ खत्म हो जाते हैं .फिर कुछ नही बचता.दशरथ रूपी शरीर को बचाने के लिये हर समय राम की उपस्तिथि चाहिये.
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