Tuesday, February 1, 2011
कुछ और याद आ गया
अपने मन की बड़बड़ाहट को बंद करें .पेड़ों को देखो ,एक पेड़ छोटा है ,एक लम्बा है .क्या कोई जानवर कभी कहता है तुम छोटे क्यों हो ?तुम लम्बे क्यों हो?न ही आपस में पेड़ एक दूसरे को कुछ कहते हैं .जो है जैसा है बस है .उसे वैसा ही होना था .पर मनुष्य हर वक्त एक दूसरे में मीन मेख निकालने में लगा रहता है .यह ऐसा क्यों है?वह ऐसा क्यों हैं ?इसने ऐसा किया ,उसने वैसा किया.हर समय दिमाग में दूसरों के सम्बन्ध में विचार चला करते हैं .कम से कम उस समय तो विचारों को बंद करें जब वे दुःख देते हैं.दुखी होते रहेगें पर मन की बड़बड़ाहट को बंद नही करेंगे.जो जैसा है उसे वैसा ही रहने देने में क्या परेशानी है जिसका मन दसों दिशाओं में भागाकरता है उसे ही रावण कहते हैं ,जो सब पर कंट्रोल कर लेता है उसे दशरथ कहते हैं और ये दशरथ रूपी शरीर तभी तक है जब तक इसमें राम हैं .राम के दूर जाते ही दशरथ खत्म हो जाते हैं .फिर कुछ नही बचता.दशरथ रूपी शरीर को बचाने के लिये हर समय राम की उपस्तिथि चाहिये.
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रावण की यह परिभाषा अद्भुत है जो दसों दिशाओं में भागे वह मन रावण जो टिक जाये वह राम ! बहुत सुंदर विचार !
ReplyDeleteअनीता जी! आपकी आलेख पढ़ा। सराहनीय लेखन के लिए बधाई। राक्षस किसी शब्द किसी समय रक्षा करने वाले के लिए प्रयुक्त होता था। आज वह खलनायक के अर्थ में प्रयोग हो रहा है। रावण शब्द का एक अन्य अर्थ (राव+न) है। प्राचीन काल में राजा को राव कहा जाता था। वह व्यक्ति जो राव नहीं है अर्थात आम आदमी।
ReplyDeleteसद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी