हम जिससे कुछ पाते हैं उसे वापिस कुछ देना बहुत जरूरी है.वरना दोनों ही नही बचेंगें.और यह भी सच है कि जैसा देंगें वैसा ही पायेंगें.
अक्सर कहा जाता है कि पापी पेट के लिए इंसान को क्या कुछ नही करना पड़ता .पेट के लिए हमारी पांचों ज्ञानेंद्रियाँ कर्मेन्द्रियाँ काम करती हैं तब जाकर हमारा पेट भरता है पर पेट बाहर से काम करता हुआ भले ही नही दिखाई दे लेकिन वही तो हमारी सारी इन्द्रियों को काम करने की ताकत देता है .हम काम भी कर पाते हैं और तरह-तरह के सुखों का उपभोग भी कर पाते हैं.
पर अगर पेट का ख्याल न रखें उसे सही डाईट न दें .उसे सही खुराक देने के लिए मेहनत न करें तो पेट तन्दरुस्त नही रहेगा उसे सही भोजन देते रहें तो बाकी का काम तो वह चुपचाप करता रहता है ताकि हमारे हाथ -पावं सही सलामत काम करते रहें
इसी तरह संसार भी एक बहुत बड़ा पेट है और उसकी खुराक प्रेम है .अगर उसे प्रेम मिलता रहे तो वह ठीक ठाक काम करता रहता है.नफरत रूपी सड़ा खाना मिले तो बीमार हो जाता है.संसार से हमे वही तो मिलेगा जो हमने इसके पेट में डाला था .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई ||
बहुत खूब ! संसार के बल पर भी तो हम भावनात्मक रूप से जीते हैं.. जैसे पेट के बल पर इन्द्रियाँ,तो उसे प्रेम की खुराक देनी ही चाहिए, वह भी अपने लिये...लाजवाब चितन!
ReplyDeletevery true...........
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