गोल-मटोल शांत स्वभाव की थी इसलिये उसके मौसा -मौसी उसे मह्न्तनी कहते थे .
जब जरा बड़ी हुई तो सीधे सादे स्वभाव को देखते हुए मकान मालकिन ने कहा कि ये तो कोई देवी लगती है .
जब देखा गया कि लड़ने या झूठ बोलने या किसीसे नफरत कर सकने की हिम्मत ही नही है तो मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी सार्थक करते हुए उसे एक सहपाठिनी ने महात्मा गान्धी की चेली नाम दिया .
जब और बड़ी हुई तो साफ रंग और घुंघराले बालों को देखते हुए एक दूर की आंटी ने गोरी मेम कहा.
और अब जब लगभग सारे ही बाल सफेद होने को हैं तो छोटे भाई ने कहा कि जगद्गुरु कृपालु महाराज की बेटी जैसी लगती है.
तो लगा कि सच में महंतनी से भक्तिन तक का सफर पूरा हो गया जो बीज लेकर सोहनी इस दुनिया में आयी थी वह खिल गया.