Sunday, March 11, 2012

सोहनी का महन्तनी से भक्तिन तक का सफर


गोल-मटोल शांत स्वभाव की थी इसलिये उसके मौसा -मौसी उसे मह्न्तनी कहते थे .
जब जरा बड़ी हुई तो सीधे सादे स्वभाव को देखते हुए मकान मालकिन ने कहा कि ये तो कोई देवी लगती है .
जब देखा गया कि लड़ने या झूठ बोलने या किसीसे नफरत कर सकने की हिम्मत ही नही है तो मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी सार्थक करते हुए उसे एक सहपाठिनी ने महात्मा गान्धी की चेली नाम दिया .
जब और बड़ी हुई तो साफ रंग और घुंघराले बालों को देखते हुए एक दूर की आंटी ने गोरी मेम कहा.
और अब जब लगभग सारे ही बाल सफेद होने को हैं तो छोटे भाई ने कहा कि जगद्गुरु कृपालु महाराज की बेटी जैसी लगती है.
तो लगा कि सच में महंतनी से भक्तिन तक का सफर पूरा हो गया जो बीज लेकर सोहनी इस दुनिया में आयी थी वह खिल गया.

Thursday, March 1, 2012

सोहनी की सबसे छोटी बहिन

सोहनी जब ११ साल की थी तो उसकी छोटी बहिन का जन्म हुआ था ,अस्पताल गई थी देखने तो सुना, नौ पोंड की हेल्दी बेबी ने जन्म लिया है.
घर भर की लाडली थी.उसे गोदी में खिलाने के लिए घर में बहुत सदस्य थे.
हमसब भाई-बहिनों की पढ़ाई की शुरुवात सरकारी प्राइमरी स्कूल से हुई थी पर उसे मिशनरी स्कूल में पढ़ने का मौका मिला.
अपनी बात पूरी करवा के रहती थी,एक उदाहरण है मेरे पास, हम बड़े लोग घरके पास लगनेवाले मेले में गए थे .घर आकर बताया किसी खास खिलौने के बारे में ,उसने जिद पकड़ ली कि अभी चाहिए और फिर उसे लेकर गए और खिलौना दिलवाया .
इसी जिद ने उसे डाक्टर बनाया .बचपन से ही कहती थी कि बड़ी होकर डॉक्टर बनेगी.पढ़ाई में तेज थी वजीफा मिलता था.जब मेरी शादी हुई तो आठ साल की थी,उसके बाद तो कभी कभार ही मिलना होता है