जब भी सोहनी बच्चों का चकरी वाला झूला देखती है तो याद आ जाते हैं उसे वो पल जब वह भी बच्चों को लेकर झूले में बैठी थी और सबसे ऊंचाई पर पहुँच कर झूला रुक गया था, कुछ खराबी आ गई थी उसमे ,गोदी में दो साल का बेटा और साथ में दो नन्ही बेटियाँ .दिल धड़कने लगा ,कहीं कोई बच्चा हाथ की पकड़ से छूट न जाये .जल्दी ही खराबी ठीक कर ली गई और वे सब नीचे आ गये.साँस में साँस आई. पर वह दिन और आज का दिन... अभी तक उसने हिम्मत नही की कि फिर कभी उस तरह के झूले का आनंद लिया जाये. पर दोनों बेटियों पर असर ये हुआ कि उन्हें जरा भी डर नही लगता ऊंचाई से. बंगी जम्पिंग हो या रॉक क्लाईमिंग ,सब करने को तैयार रहती हैं वे दोनों.
ise kahte hain "Blessing in Disguise"......Aapko bhi dar lagta hai...?
ReplyDeleteइतनी जल्दी रिस्पांस पाकर खुशी हुई.
Deleteहाँ,अपने को आत्मारूप जानने के बावजूद अभी भी शरीर का मोह तो है ही इसलिये डर भी लगता है.तभी तो मेरी पसंद की कविता है गुरु रविन्द्रनाथ टैगोर की--(मोह श्रंखला)मेरे मोह की जंजीर बड़ी द्रढ़ है, जो मैने छह अक्टूबर १० को ब्लाग में भी डाली है.
ज्यदातर समय हमारे डर आधारहीन होते हैं..हम शीघ्र ही कल्पना का जाल बड़ा कर लेते हैं, फिर भी डर लगना स्वाभाविक है....एक और रोमांचक पोस्ट !
ReplyDelete