कोई भी मंजिल पाकर क्या होगा ,यह जग तो जैसा है ,वैसा ही होगा .
ऊँचा पर्वत होना हो तो खाई भी तो किसी को होना होगा.
मीठे के साथ नमकीन को तो भी रखना होगा.
जब तक मूरख न हों तो कोई बुद्धिमान कैसे कहलायेगा .
हर आने वाला पल मेरी मंजिल है.
मै जैसी हूं वैस ही भली हूं.मुझे और नहीं कुछ होना है.
चुनाव तो हर पल करना ही होता है, जो द्वन्दों से परे हो गया वह तो मुक्त ही है !
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