हमें पार्लर जाना चाहिये या नहीं.हमें सबके सामने डांस करना चाहिये या नहीं .हमें फैशैनब्ल कपड़े पहनने चाहिए या नहीं.इस तरह की कितनी ही बातें हैंजिन पर बहस की जा सकती है.दोनों पक्ष अपनी अपनी बात को सही सिद्ध कर सकतें हैं.तो फिर किसकी बात मानें.
हम अपनीबात मानें.हमारे लिये क्या ठीक है,वो हम ही फैसला ले सकतें हैं.
क्या कृष्ण या राम या महवीर या बुद्ध सब एक जैसे थे.राम तो गोपियाँ के साथ नाच नहीं सकते,न ही बांसुरी बजा सकते हैं.बुद्ध तो हथियार नहीं चलाते थे.महावीर तो कपड़े तक नहीं पहनते थे.तो तुम किस की नक़ल करोगे.हम हम हैं .जैसे राम राम थे,कृष्ण कृष्ण थे बुद्ध बुद्ध थे.उसी तरह हमारे सारे डिसीजन हमारी अपनी प्रकति के अनुसार ही होंगे.हमारे लिए जो सहज है,हमे वही करना है.जो हम नहीं हैं वो बनने की कोशिश फालतू है.
बेफालतू का अर्थ हुआ फालतू नहीं अर्थात काम का तो फिर ....
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