Monday, October 4, 2010
नशा-जो मन के पार ले जाये
पिक्चर्स मे देखा है कि जब भी किसी को कोई दिल की बात जुबान पर लानी होती है तो शराब का नशा काम आता है.या तो कोई अपनी मर्जी से पीता है या धोखे से पिलाई जाती है.तो इसका मतलब क्या निकलता है.मेरे ख्याल से उस समय वह मन के पार हो जाता है.उसी के मन का उस पर कोई कंट्रोल नहीं होता.इसलिए वह अपने को मुक्त महसूस करता है पर शराब का नशा कुछ देर का ही होता है,और साथ ही उसके शरीर के लिए नुकसानदायक होता है.पर जब तक नशा न हो तब तक व्यक्ति अपने को भूल नहीं पाता,और भूले बिना उसे आनंद नहीं मिल सकता ,क्योंकि स्वयं में उसे ढेरों कमियां दिखती हैं कमजोरियां दिखती हैं.पूरी जिन्दगी कोई अपने को परफेक्ट बनाने में लगा दे तब भी नहीं बना सकता क्योंकि हर व्यक्ति की क्षमताओं की अपनी सीमा है.पर चोबीसों घंटे तो शराब के नशे मे रहना कोई समस्या का हल तो नहीं.इस नशे की बेहोशी मे वह बहुत कुछ ऐसा भी कर बैठता है जिसका उसे होश आने पर बहुत पछतावा होता है.लेकिन नशा तो चाहिए इंसान को .खोज इस बात की है कि कौन सा नशा है जो भगवान बुद्ध को भी मुस्कराने पर मजबूर कर देता है.जिसके नशे मे राम और कृष्ण भी मुस्कराते रहतें हैं मुझे लगता है कि वह है अपने अस्तित्व के प्रति प्रेम का नशा .कोई जरा रुक कर देखे इस अस्तित्व को जिसका जरा सा हिस्सा हमारा यह संसार भी है तो वह इसके प्रति एक ऐसी श्रधा से भर जायगा कि अपने को भूल जायेगा,उसे याद ही नहीं रहेगा कि वह ए़क अधूरा व्यक्तित्व है.उसे समझ आने लगेगा कि वह इस अस्तित्व का ही अटूट हिस्सा है.फिर कैसी कमी और कैसा दुःख.
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सचमुच यह प्रेम का ही नशा है, भक्ति भी इसे ही कहते हैं, नानक इसे ही नाम खुमारी कहते हैं, सारी योग साधना, ध्यान ,ज्ञान इसे यानि परमात्मा के प्रति श्रद्धा जगाने के लिये ही तो हैं!
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