Thursday, October 14, 2010
मन का संतुलन
आज के विचार कुछ इस तरह से आ रहे हैं कि हम जब भी कोई मूवी देखते हैं तो उसमे देखतें हैं कि कितने सारे पात्र कितनी तरह का रोल कर रहे हैं पर रोल करते समय उन्हें पता होता है कि वे रोल कर रहे हैं.उस रोल को निबाहने के बाद अपने साथी पात्रों के साथ नार्मल व्यवहार करते हैं,रोल के अनुसार नहीं.रोल में वे आपस मे भाई बहन हो सकते हैं,मित्र हो सकते हैं,दुष्मन हो सकते हैं .पर रोल के बाहर आपसी रिश्ता एक्टर का होता है.शाहरुख को पता होता है कि वह देवदास नही है,एश्वर्या को पता होता है कि वह पारो नहीं है.ठीक इसी भावना के तहत हम अपना रोल प्ले करें तो.....,हमे हमेशा याद रखना चाहिए कि जन्म लेते ही हमें जो शरीर मिला है नाम मिला है,धर्म मिला है ,पोजिशन मिली है .कहीं हम सीनियर होते हैं कही जूनियर होतें हैं,कभी ताकतवर होते हैं कभी कमजोर होते हैं.ये सब बाहर की अवस्थाएं हैं जो बदलती रहती हैं.असल में हम इसके अंदर हैं,और वह अवस्था हमेशा एक जैसी रहती है कभी नहीं बदलती.वह न हिंदू है न मुसलमान है.अमीर है न गरीब है.सभी के भीतर वह अवस्था सदा एक जैसी है.अगर उस अवस्था का हमे हमेशा ख्याल बना रहे तो हम अपना रोल प्ले करते समय अपना संतुलन कायम रख पायेगें.
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सही कहा है , वह अवस्था यदि सदा ध्यान में रहे तो हर दिन उत्सव है!
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