जब कोई सुविधासम्पन बीमार होता है तो यही कहते हैं फ़िक्र न करों ,स्ट्रेस न लो . पर स्ट्रेस है क्या ये तो पता चले ,फ़िक्र है किस बात की ये तो पता चले ,कोई फ़िक्र नही ,कोई स्ट्रेस नही.
असल में बीमारी की वजह ही यही है कि कोई फ़िक्र नही कोई स्ट्रेस नही ,क्योंकि जीवन आरामतलब हो गया है जब बिना हिले डुले सब काम हो रहे हैं तो कोई क्यों कुछ करने की जहमत उठाये.
चलना बंद हो गया है ,क्योंकि जब बिना चले काम हो सकते हैं तो चले क्यों .पर अब पैरों को चलने की फ़िक्र करनी होगी .
खाने में हाथों को रूटीन परांठा बनाना छोड़ कर कुछ नया बनाने का स्ट्रेस लेना होगा .
सॉफ्ट सॉफ्ट निगलने का आनन्द बहुत ले लिया ,दांतों को कुछ हरा भरा चबाने का एगज्र्शन लेना होगा.
पास के आई पैड ,लेपटॉप से नजरें हटाकर दूर आकाश की तरफ देखना होगा ,जहाँ घने बादल भी है और चाँद ,सितारे भी..
कानों को टीवी सीरियल की चालबाजियों को सुनने से हटकर पक्षियों की चहचहाहट सुननी होगी ,कुछ तो स्ट्रेस लो जीवन में ,कुछ तो फ़िक्र करो.
पहले ये सब करना टाइम वेस्ट लगता था पर होस्पिटल के चक्कर जब लगाने पड़े तो पता चला कि टाइम वेस्ट तो अब हुआ है.
असल में बीमारी की वजह ही यही है कि कोई फ़िक्र नही कोई स्ट्रेस नही ,क्योंकि जीवन आरामतलब हो गया है जब बिना हिले डुले सब काम हो रहे हैं तो कोई क्यों कुछ करने की जहमत उठाये.
चलना बंद हो गया है ,क्योंकि जब बिना चले काम हो सकते हैं तो चले क्यों .पर अब पैरों को चलने की फ़िक्र करनी होगी .
खाने में हाथों को रूटीन परांठा बनाना छोड़ कर कुछ नया बनाने का स्ट्रेस लेना होगा .
सॉफ्ट सॉफ्ट निगलने का आनन्द बहुत ले लिया ,दांतों को कुछ हरा भरा चबाने का एगज्र्शन लेना होगा.
पास के आई पैड ,लेपटॉप से नजरें हटाकर दूर आकाश की तरफ देखना होगा ,जहाँ घने बादल भी है और चाँद ,सितारे भी..
कानों को टीवी सीरियल की चालबाजियों को सुनने से हटकर पक्षियों की चहचहाहट सुननी होगी ,कुछ तो स्ट्रेस लो जीवन में ,कुछ तो फ़िक्र करो.
पहले ये सब करना टाइम वेस्ट लगता था पर होस्पिटल के चक्कर जब लगाने पड़े तो पता चला कि टाइम वेस्ट तो अब हुआ है.
सही आकलन किया है आपने..जीवन में कुछ नयापन लाना होगा..जीवन जितना गतिशील होगा उतना ही अच्छा है
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