ब्रह्मकुमारी आश्रम के सत्संग में जो सुना और समझ में आया वह कुछ इसतरह से है.
हमारे मन में मुख्यतः चार तरह के विचार आते रहते हैं ,एक तो निगेटिव यानि नकारात्मक होता है,जैसे कि किसी के लिये नापसंदगी ,द्वेष.
दूसरा बेकार का होता है बेमतलब कुछ का कुछ सोचते रहते हैं.खयाली पुलाव पकाते रहते हैं.न तो बात का कोई सिर होता है न पैर .पर मन कहीं टिकता नहीं है अभी इस बारे मे सोचा तो दूसरे ही पल कुछ और सोचने लग गये,ज्यादा समय तो इसी में बेकार करते हैं .
तीसरे होते हैं जरूरी विचार ,जैसे कल ट्रेन पकड़नी है तो इस समय तक तैयार होना है या अभी नाश्ता बनाना है तो उसकी इस तरह तैयारी करनी है ,स्पष्टरूप से पता होता है कि इस समय यह करना है.
चौथा होता है भलाई का ,परोपकार का कि अपनी कामवाली को ये कपड़ा दे दें ,या मंदिर में इतने रूपये चढ़ा दें या इस संस्था को इतना चंदा दे दें .
इस बात को समझाते हुए बताया कि जैसे हमारे पास सौ रूपये हैं तो दस की तो जरूरत की सब्जी ले ली और पांच का मंदिर मे प्रसाद चढ़ा दिया .बीस कहीं गिर गये और बाकी के सत्तर रुपयों से कुछ ऐसी चीजें खरीद लीं जो कि बिलकुल बेकार निकलीं,और इस तरह अपनी जेब खाली कर ली.
इसी तरह हम अपनी सौ प्रतिशत शक्ति में जरा सी शक्ति जरूरी काम में लगाते हैं या किसी का भला करने में लगाते हैं .ज्यादा तो दूसरों की कमियां निकालने में या बेकार का सोचने में व्यर्थ कर देते हैं.
पर अगर हमे शक्ति का स्रोत मिल जाये तो , शक्ति आती है आत्मा से हमे याद रखना होगा कि मैं आत्मा हूँ ,इसकेलिए प्रेमलता बहन ने होमवर्क करने को कहा कि हमे हरेक घंटे में एक मिनट के लिये कहना होगा -मैं आत्मा हूँ ,मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ.
विचरणीय पोस्ट।
ReplyDeleteअभ जो शक्ति हमारे पास है वह कहाँ से आयी है ? यदि हमें शक्ति का स्रोत मिल जाये तो क्या हम उसे व्यर्थ नहीं खर्च करेंगे,या फिर चाहे जितनी खर्च करते रहें कोई फर्क नहीं पड़ेगा अथवा तो स्रोत मिलने के साथसाथ हम उसे सही खर्च करने की विधि भी पा जायेंगे ?
ReplyDeleteजब तक कमी है तभी तक उलझने हैं,अथाह स्रोत मिलते ही सब बदल जायेगा.
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