Monday, December 20, 2010
ओशो का सत्संग
ओशो के सत्संग में सुना कि धर्म तो एक ही है ,जैसे भगवान एक ही है,पर नाम अलग अलग हैं.इसी तरह कोई बुद्ध,कोई जैन,कोई मुसलमान कोई क्रिश्चयन हो सकता है,पर जरूरी नहीं कि वह धार्मिक भी हो.धर्म को माननेवाला ही धार्मिक होता है.हिंदू,मुस्लिम सिख इसाई होने से कोई धार्मिक नहीं हो जाता.जैसे स्वास्थ्य एक है पर बीमारियां अलग अलग हैं,उसी तरह धर्म एक ही है,हिन्दू मुस्लिम होने पर हम अलग अलग कर्मकांडों का पालन कर सकते हैं,पर धार्मिक मनुष्यों के मन की स्तिथि एक जैसी होती है.जैसे शांत मनुष्य सब भीतर से एक जैसा अनुभव करते हैं.अशांति के कारण अलग अलग हो सकते हैं.सो सत् चित आनंद एक ही है,खुशी अलग अलग तरीकों से मिल सकती है पर आनन्द एक जैसा ही होता है.
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ओशो बिल्कुल सही कहते हैं, सम्प्रदाय अलग अलग हो सकते हैं पर धर्म सबका एक ही है, क्योंकि ईश्वर एक है ! प्रेम, शांति आनंद सबको एक से ही अनुभव होते हैं जैसे भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी भी तो एक सी लगती है.
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