शून्य क्या है ,कुछ भी नही ,पर जिस अंक में लगा दो उसकी कीमत बढ़ जाती है ,एक की दस हो जाती है ,दो शून्य लगा दें तो सौ हो जाती है .जितने ज्यादा शून्य लगाएंगे कीमत बढ़ती ही जायेगी .उसी तरह भक्ति है ,अपनेआप में तो कुछ भी नही .अपने इष्टदेव का नाम जपें ,चाहे राम हो, कृष्ण हो या कुछ और .कीर्तन करें ताली बजायें,आखिर क्या है इसकी वैल्यू.
जब हम किसी भी काम को राम नाम से (अपने ईश्वर के नाम से )जोड़ देतें हैं ,मेरा मतलब है कि भक्ति से जोड़ देते हैं तो उसकी कीमत उसी हिसाब से बढ़ जाती है ,आप कर के देख लें.
हम कुछ भी करें और यह सोच कर करें कि ईश्वर के लिये कर रहें हैं तो वह काम अनायास ही हो जाता है ,नही भी होता तो भी हमे उसके फलित न होने की चिन्ता नही सताती सो अपने साथ राम को जोड़ो और अपनी कीमत बढाओ ,सत्य साईं बाबा के रूप में उदाहरण आप के सामने है .
Wednesday, April 27, 2011
Friday, April 15, 2011
परमात्मा का दर्शन
परमात्मा हमारे जीवन में कैसे प्रकट होता है ?हम उसकी अनुभूति कैसे कर सकते हैं?इस बारे में मैने कुछ लिखने की कोशिश की है.कहते हैं कि परमात्मा सतचितआनंद स्वरूप है.
हमारे जीवन में सबसे पहले उस आनंद की अनुभूति होती है शिशु को देखकर वात्सल्य के रूप में , क्या वह आनंद ईश्वर नही है ?हमे शिशु को देखकर आनंद के रूप में ईश्वर मिलता है और शिशु को माँ के रूप में ईश्वर की अनुभूति होती है.नवजात शिशु को देखते ही मन आनंद से भर जाता है मनुष्य के बच्चे की तो बात ही अलग है .बिल्ली का बच्चा हो या गाय का बछड़ा,कोई भी नन्हा बच्चा हमारे अंदर आनंद की लहर पैदा कर देता है.
जो नवजात नही हैं,पर हम से छोटे हैं,उनके लिये मन में स्नेह होता है,स्नेह आनंद का ही दूसरा रूप है.उसकेबाद जो हमउम्र हैं,मित्र हैं,उनके लिये मन में जो प्रेम उपजता है वह आनंद का ही तीसरा रूप है .हमसे जो बड़े हैं ,उनके लिये मन में श्रद्धा होती
है .यह आनंद का ही चौथा रूप है .और जो महापुरुष हैं, ईश्वर के भक्त बन गए हैं ,उनकी भक्ति हमे आनंद देती है. भक्ति आनंद का पांचवा रूप है .भक्त तो स्वयं ही सतचित आनंद स्वरूप हो जाता है .इस तरह से देखें तो भक्त स्वयं परमात्मा बनजाता है. जिस तरह मनुष्य शिशु,बालक ,युवा और प्रोढ़ बनता है ,उसी तरह स्वाभाविक रूप से वह प्रोढ़ बनने के बाद भक्त बनता है .इस जन्म में न सही ,अगले जन्म में बनेगा ,मनुष्य की पूर्णता उसी में है .
हमारे जीवन में सबसे पहले उस आनंद की अनुभूति होती है शिशु को देखकर वात्सल्य के रूप में , क्या वह आनंद ईश्वर नही है ?हमे शिशु को देखकर आनंद के रूप में ईश्वर मिलता है और शिशु को माँ के रूप में ईश्वर की अनुभूति होती है.नवजात शिशु को देखते ही मन आनंद से भर जाता है मनुष्य के बच्चे की तो बात ही अलग है .बिल्ली का बच्चा हो या गाय का बछड़ा,कोई भी नन्हा बच्चा हमारे अंदर आनंद की लहर पैदा कर देता है.
जो नवजात नही हैं,पर हम से छोटे हैं,उनके लिये मन में स्नेह होता है,स्नेह आनंद का ही दूसरा रूप है.उसकेबाद जो हमउम्र हैं,मित्र हैं,उनके लिये मन में जो प्रेम उपजता है वह आनंद का ही तीसरा रूप है .हमसे जो बड़े हैं ,उनके लिये मन में श्रद्धा होती
है .यह आनंद का ही चौथा रूप है .और जो महापुरुष हैं, ईश्वर के भक्त बन गए हैं ,उनकी भक्ति हमे आनंद देती है. भक्ति आनंद का पांचवा रूप है .भक्त तो स्वयं ही सतचित आनंद स्वरूप हो जाता है .इस तरह से देखें तो भक्त स्वयं परमात्मा बनजाता है. जिस तरह मनुष्य शिशु,बालक ,युवा और प्रोढ़ बनता है ,उसी तरह स्वाभाविक रूप से वह प्रोढ़ बनने के बाद भक्त बनता है .इस जन्म में न सही ,अगले जन्म में बनेगा ,मनुष्य की पूर्णता उसी में है .
Tuesday, April 5, 2011
जोश में होश न खोयें
क्या यह जरूरी है कि अपने को बड़ा दिखाने के लिये दूसरे को नीचा दिखाया ही जाये. मुझे बहुत बहुत खुशी हुई जब इंडिया ने क्रिकेट में श्री लंका पर जीत हासिल की.पर सब लोग यह भूल जाते हैं कि वह भी सेमीफायनल तक पहुँचा था.वह कोई दुश्मन नही था हमारा,न ही है,फिर लंकादहन जैसी बाते करके उसे दुश्मन क्यों बनाया जा रहा है,श्रीराम ने रावण का वध करने के बाद राज्य अपने भक्त विभीषण को सौंप दिया था.अगर अभी भी श्री लंका या रावण का नाश बाकी था तो श्री राम ने क्या किया था.इस लिये खेल में दूसरे प्रतिद्वंदी देशों को नीचा दिखाना बंद करें.
Monday, April 4, 2011
ब्रह्मा विष्णु महेश
इन्सान ने अपनी रक्षा के लिये घर बनाये.छत बनाई.दरवाजे बनाये .तलवारें बनायीं.बंदूकें बनाईं.बम बनाये. तोपें बनाई.सैनिक बनाये .चौकीदार बनाये.सिपाही बनाये.इसी तरह इंसान ने ही मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे चर्च भी बनाये.
अपने अपने भगवान भी बनाये.ईश्वर गाड अल्ला बनाये.ये सब भी अपनी रक्षा के लिये ही बनाने पड़े.अनाज फल फूल भी उसकी रक्षा के लिये ही हें .कपड़े बिस्तर तमाम फर्नीचर भीअपने अस्तित्व को बचाने के लिये ही बनाता है. अगर इन्सान के अंदर अपनी रक्षा की भावना हट जाये तो उसे फिर क्या चाहिये,फिर तो उसे ईश्वर भी नही चाहिये.
पर इन्सान के अंदर प्रेम की भावना भी है.मुख्यतःप्रेम उसे अपने बच्चे से होता है,उसकी रक्षा के लिये वह कुछ करने की शुरुआत करता है,और देखते ही देखते पूरी दुनिया बन जाती है.पर यही प्रेम की भावना कब दूसरे के लिये नफरत में बदल जाती है पता ही नही चलता.नफरत होते ही दुनिया नष्ट होनी भी शुरू हो जाती है.जिस दिन एक एटमबम गिरेगा ,ए़क साथ कई इन्सान दफन हो जायेंगे.अपनी ही रक्षा के सामान से इन्सान खुद अपना ही अस्तित्व मिटाने पर तुला हुआ है ,तो कैसा है ये प्रेम !कैसी है ये प्रेम की भावना! यही है ब्रह्मा विष्णु महेश की परिकल्पना!ब्रह्मा ने बनाया विष्णु ने रक्षा की और महेश ने नष्ट किया.बनना टिकना और खत्म होना हर पल यही चलता रहता है.
अपने अपने भगवान भी बनाये.ईश्वर गाड अल्ला बनाये.ये सब भी अपनी रक्षा के लिये ही बनाने पड़े.अनाज फल फूल भी उसकी रक्षा के लिये ही हें .कपड़े बिस्तर तमाम फर्नीचर भीअपने अस्तित्व को बचाने के लिये ही बनाता है. अगर इन्सान के अंदर अपनी रक्षा की भावना हट जाये तो उसे फिर क्या चाहिये,फिर तो उसे ईश्वर भी नही चाहिये.
पर इन्सान के अंदर प्रेम की भावना भी है.मुख्यतःप्रेम उसे अपने बच्चे से होता है,उसकी रक्षा के लिये वह कुछ करने की शुरुआत करता है,और देखते ही देखते पूरी दुनिया बन जाती है.पर यही प्रेम की भावना कब दूसरे के लिये नफरत में बदल जाती है पता ही नही चलता.नफरत होते ही दुनिया नष्ट होनी भी शुरू हो जाती है.जिस दिन एक एटमबम गिरेगा ,ए़क साथ कई इन्सान दफन हो जायेंगे.अपनी ही रक्षा के सामान से इन्सान खुद अपना ही अस्तित्व मिटाने पर तुला हुआ है ,तो कैसा है ये प्रेम !कैसी है ये प्रेम की भावना! यही है ब्रह्मा विष्णु महेश की परिकल्पना!ब्रह्मा ने बनाया विष्णु ने रक्षा की और महेश ने नष्ट किया.बनना टिकना और खत्म होना हर पल यही चलता रहता है.
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