परमात्मा हमारे जीवन में कैसे प्रकट होता है ?हम उसकी अनुभूति कैसे कर सकते हैं?इस बारे में मैने कुछ लिखने की कोशिश की है.कहते हैं कि परमात्मा सतचितआनंद स्वरूप है.
हमारे जीवन में सबसे पहले उस आनंद की अनुभूति होती है शिशु को देखकर वात्सल्य के रूप में , क्या वह आनंद ईश्वर नही है ?हमे शिशु को देखकर आनंद के रूप में ईश्वर मिलता है और शिशु को माँ के रूप में ईश्वर की अनुभूति होती है.नवजात शिशु को देखते ही मन आनंद से भर जाता है मनुष्य के बच्चे की तो बात ही अलग है .बिल्ली का बच्चा हो या गाय का बछड़ा,कोई भी नन्हा बच्चा हमारे अंदर आनंद की लहर पैदा कर देता है.
जो नवजात नही हैं,पर हम से छोटे हैं,उनके लिये मन में स्नेह होता है,स्नेह आनंद का ही दूसरा रूप है.उसकेबाद जो हमउम्र हैं,मित्र हैं,उनके लिये मन में जो प्रेम उपजता है वह आनंद का ही तीसरा रूप है .हमसे जो बड़े हैं ,उनके लिये मन में श्रद्धा होती
है .यह आनंद का ही चौथा रूप है .और जो महापुरुष हैं, ईश्वर के भक्त बन गए हैं ,उनकी भक्ति हमे आनंद देती है. भक्ति आनंद का पांचवा रूप है .भक्त तो स्वयं ही सतचित आनंद स्वरूप हो जाता है .इस तरह से देखें तो भक्त स्वयं परमात्मा बनजाता है. जिस तरह मनुष्य शिशु,बालक ,युवा और प्रोढ़ बनता है ,उसी तरह स्वाभाविक रूप से वह प्रोढ़ बनने के बाद भक्त बनता है .इस जन्म में न सही ,अगले जन्म में बनेगा ,मनुष्य की पूर्णता उसी में है .
मनुष्य की पूर्णता भक्त बनने में है ! अति सुंदर विचार !
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
ReplyDeleteयहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
गीता जी,
ReplyDeleteसत चित आनंद का बहुत खूबसूरत वर्णन किया है आपने.
इसी आनंद को ऋषि मुनि जंगलों में ,एकांत में तलाशा करते हैं.
यही आनंद दुनियादारी करते हुई भी प्राप्त किया जा सकता है.
आपका बहुत आभार