नीरू माँ के सत्संग से मन में अपने आप ही चिंतन मनन शुरू हो जाता है.इस समय जो मन में चल रहा है लिखने की कोशिश करती हूँ.
मुझे इन पांचों इन्द्रियों से जो भी अनुभव करने को मिला अच्छा या बुरा ,जैसे खाने को स्वादिष्ट पदार्थ ,पहनने को कीमती वस्त्र ,सुनने को मधुर संगीत,देखने को मोहक दृश्य,सूंघने को सुंदर फूलों की खुशबू.या कहीं से प्रशंसा सुनने को मिली या गालियां सुनने को मिलीं .चोट लग गई या बीमारी आ गई .फटे पुराने कपड़े पहनने को मिले .झगड़े देखने को मिले.बदबूदार जगह रहने को मिले.तो यह सब मेरा कर्मफल ही है.
पर अगर इन सब अनुभवों के होने के समय मैने अपने मन की स्तिथि को ,भावना को अपने वश में रखा तो ये कर्मफल मुझे प्रभावित नही कर पायेंगें .जैसे हम बीमार पड़ते हैं तब दवा खानी पडती है ,तो चुपचाप खा ही लेते हैं,और फिर ठीक हो जाते हैं .वैसे ही कुछ अगर कभी अपशब्द रूपी गाली खानी पड़े तो चुपचाप खा ही लेनी बेहतर है,क्योंकि उससे आगेके लिए सम्बन्ध बेहतर होने के चांस ही अधिक होते हैं .
अच्छे अनुभवों को भी ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नही है वरना उनके लिए और लालसा हो जायेगी ,लालसा से उनके बंधन में पड़ जायेंगें ,और बंधन तो बंधन ही होता है चाहे लोहे का हो या सोने का हो .क्योंकि यह सारी बातें,सारे सुख -दुःख हमारी पाँचों इन्द्रियों तक ही असरकारी होते हैं .हम स्वयं उनसे अलग हैं .
बहुत दिनों के बाद एक सारगर्भित एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट मिली आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार! मुझे लगता है केवल आगे के सम्बन्ध ही अच्छे नहीं होते हम स्वयं भी अशुभ कर्मों से बच जाते हैं, यानि अपना भविष्य सुरक्षित कर लेते हैं...
ReplyDeleteबढ़िया रहा यह विचार भी ....मन को बहुत प्रभावित कर गया ...आपका आभार
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
ReplyDeleteवर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .