ओशो के सत्संग में सुना कि धर्म तो एक ही है जैसे कि ईश्वर एक है पर नाम अलग अलग हैं.इसी तरह कोई जैन तो कोई बुद्ध तो कोई मुसलमान तो कोई ईसाई हो सकता है पर जरूरी नही कि वह धार्मिक भी हो.धार्मिक तो वही होता है जो धर्म का पालन करता है.हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई होने से ही कोई धार्मिक नही हो जाता .
जैसे स्वास्थ्य एक है पर बिमारियाँ अलग- अलग हैं .उसी तरह धर्म तो एक ही है.हिंदू मुस्लिम होने पर हम अलग अलग कर्मकांडों का पालन कर सकते हैं पर धार्मिक मनुष्यों के मन की स्तिथि एक जैसी होती है.जैसे शांत मनुष्य सब भीतर से एक सा ही महसूस करते हैं.अशांति के कारण अलग -अलग हो सकते हैं
तभी तो सत-चित्- आनंद एक ही है .खुशी विभिन्न तरीकों से मिल सकती है पर उससे मिलने वाला आनंद एक जैसा ही होता है.भीतर से सबका धर्म एक हैं.
जैसे स्वास्थ्य एक है पर बिमारियाँ अलग- अलग हैं .उसी तरह धर्म तो एक ही है.हिंदू मुस्लिम होने पर हम अलग अलग कर्मकांडों का पालन कर सकते हैं पर धार्मिक मनुष्यों के मन की स्तिथि एक जैसी होती है.जैसे शांत मनुष्य सब भीतर से एक सा ही महसूस करते हैं.अशांति के कारण अलग -अलग हो सकते हैं
तभी तो सत-चित्- आनंद एक ही है .खुशी विभिन्न तरीकों से मिल सकती है पर उससे मिलने वाला आनंद एक जैसा ही होता है.भीतर से सबका धर्म एक हैं.
..ऐसे ही जैसे फूल अनेक हैं पर फूल होना एक है, बच्चे अनेक हैं पर बचपना एक है है... मिठाइयाँ अनेक हैं पर मिठास एक ही है, धर्म अनेक हैं, पर धार्मिकता एक ही है, सुंदर और सार्थक पोस्ट !
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