हमारा भौतिक संसार परमात्मा का ही स्थूल रूप है.और इस संसार में हमारा जो आपसी व्यवहार है,हमारी जो इच्छायें,कामनायें हैं ,राग-द्वेष है ,वह सब स्वप्न के संसार से ज्यादा स्थाई नही है.जैसे स्वप्न में हम बेसिरपैर के अनुभव से गुजरते हैं ठीक वैसा ही जाग्रत अवस्था का संसार भी है क्योंकि असल में हम जाग्रत होते ही कहाँ हैं सिर्फ लगता है कि जगे हुए हैं.कुछ बनने के कुछ होने के नशे में डूबे हुए ही तो रहते हैं हम सब.सारी लड़ाईयां,सारे वाद-विवाद उसी कुछ होने के ,अपने को सिद्ध करने की आकांक्षा से ही तो उपजते हैं .जो व्यक्ति जगा हुआ है उसे पता है कि जो है सो है,कुछ और बनने की चेष्टा किसलिए ?
तो हर समय जाग्रत रहने के लिए मैने समय -समय पर कई सिद्धांतों का सहारा लिया.
पहला सिद्धांत जो याद आता है ,वह यह है कि -यह भी बीत जायेगा .यानि जब भी मन किसी समस्या से दो चार हुआ तो यह कह कर उसे सहारा दिया कि यह भी बीत जायेगा ,कोई भी समस्या हमेशा नही रहती ,परेशान होना छोड़ो और आगे बढ़ो .आगे तो बढ़ गई पर मन में यह आता रहा कि ऐसा कब होगा जब कोई समस्या आये ही न .
इसलिए दूसरा सिद्धांत लिया कि ईश्वर की मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिल सकता .तो फिर सोचना क्या ?सारी समस्याओं का कारण और हल दोनों ईश्वर ही तो है .पर जिस तरह पहला सिद्धांत हमेशा मन को संतुष्ट नही रख सका उसी तरह सब कुछ ईश्वर को सौंप देने से भी बात नही बनी .कुछ सही न होने पर मन अपनी जिम्मेदारी ले लेता है और फिर परेशान होता है .तो फिर तीसरा सिद्धांत लिया कि पल -पल जियो ,पुराना अगला भूलो यानि भूत-भविष्य के चक्कर में न पड़ो,वर्तमान में रहो .
पर क्या आसान है इतना!मन तो पल में कहाँ-कहाँ दौड़ जाता है उसे वर्तमान में टिकाएँ कैसे .टिकना तो उसका स्वभाव ही नही है ,उसका धर्म ही नही है ,हमेशा गति में रहना ही तो उसका लक्षण है,-रुका और खत्म हुआ .तो वर्तमान में रहना ,पल -पल जीना भी इतना सरल नही है .
फिर चौथा सिद्धांत लिया -साक्षीभाव में रहो .मतलब जो भी सोचो.करो उसकी गवाह रहो जैसेकि अब मै यह सब इस लैपटॉप पर लिख रही हूँ तो यह तो लिखा हुआ एक दिन खत्म हो जायेगा ,लेपटोप भी नही रहेगा , ,पर मेरा वह स्वरूप तो हमेशा रहेगा जिसपर यह लिखपाने या न लिखपाने का खेल चल रहा है, जिसे पता है किएक समय ऐसा भी था कि जब लिखना आता ही नही था ,और आगे भविष्य में क्या कुछ लिखने वाली हूँ या सब कुछ भूल जाऊँगी.फिर भी जिसे यह पता है कि जो गवाह है ,साक्षी है ,वह तो हमेशा रहने वाली है .और यह सिद्धांत तो महा सिद्धांत निकला क्योकि जब हर समय साक्षी बन कर नजर रखी तो हरपल पर ध्यान तो स्वाभाविक होने लगा और जब हरपल पर ध्यान रहने लगा तो पाया कि सच ही तो ईश्वर की मर्जी के बिना कहाँ कुछ हो सकता है .जब इस बात को माना तो पाया कि पहला सिद्धन्त भी कसौटी पर खरा उतरता है कि यह भी बीत जायेगा क्योंकि हरपल बीतता हुआ ही नजर आ रहा है .
इसलिये हरसमय साक्षीभाव रखना है बस .ये है महामंत्र या महासिद्धांत ,कुछ भी नाम दे दूँ.
अति सार्थक पोस्ट ! इसका अर्थ हुआ कि सीढी दर सीढी चढ़ कर ही हम आगे बढ़ते हैं, शुरू में ही साक्षी भाव शायद नहीं सधता, महामंत्र जो ठहरा !
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट...अनुकरणीय विचार हैं....
ReplyDeleteडॉ. मोनिका शर्मा के ब्लॉग से होता हुआ आपके ब्लॉग तक पहुंचा - अत्यंत सुखद अनुभूति हुई - आता रहूँगा
ReplyDeleteप्रेरित करता पोस्ट .शुभकामना
ReplyDeleteसारगर्भित आनेख....
ReplyDeleteकाश लोग जीवन की असल सच्चाई को समझ सकें
ReplyDeleteबहुत सुंदर