.....कोशिश चल रही है इस दृष्टिकोण पर जमे रहने की कि सब काम अपने आप ही होते हैं और हो रहे हैं , हम काम करते रहें जो भी हमारे हिस्से में पड़ते हैं ,ज्यादा प्लान बनाने की जरूरत नही है.प्लान तो अपनी इच्छाओ को पूरा करने के लिए बनाने पड़ते हैं ,इच्छाओं का क्या है बदलती रहती हैं,तो क्यों करें हम कोई इच्छा ,क्या बिना इच्छा के हम खुश नही रह सकते ,रह सकते है ,और ज्यादा खुश रह सकते हैं.
Thursday, March 29, 2018
प्लान
.....कोशिश चल रही है इस दृष्टिकोण पर जमे रहने की कि सब काम अपने आप ही होते हैं और हो रहे हैं , हम काम करते रहें जो भी हमारे हिस्से में पड़ते हैं ,ज्यादा प्लान बनाने की जरूरत नही है.प्लान तो अपनी इच्छाओ को पूरा करने के लिए बनाने पड़ते हैं ,इच्छाओं का क्या है बदलती रहती हैं,तो क्यों करें हम कोई इच्छा ,क्या बिना इच्छा के हम खुश नही रह सकते ,रह सकते है ,और ज्यादा खुश रह सकते हैं.
Tuesday, March 20, 2018
ज्ञान
......विचार आ रहे हैं कि ज्ञान ,कर्म और भक्ति में क्या समानता है. ज्ञान होना चाहिए इस बात का कि भक्ति ही सब कुछ है,...पर भक्ति आखिर क्या है ...भक्ति है ईश्वर से प्रेम .ईश्वर कौन है ,ईश्वर है ये सारी सृष्टि ,इससे प्रेम ही ईश्वर से प्रेम है.प्रेम का प्रदर्शन कैसे हो.वो होता है कर्म से .हम जब प्यार में सराबोर होकर किसी के लिए कुछ करते हैं तो न थकावट होती है न ही इरीटेशन,सो सबसे जरूरी है प्यार ,तभी तो हम बिना किसी उलझन के काम कर सकेंगे और इसी का ज्ञान होना चाहिए.
Sunday, March 18, 2018
अस्तित्व
ए पर्सनल रिलीजन ऑफ यूअर ऑन --रमेश एस बाल सेकर पढ़ी . छोटी सी है और एक ही सिटिंग में पढ़ने लायक है .पूरी पढ़े बिना बंद करना मुश्किल है.जो समझा ,उसे लिखने की कोशिश करती हूँ .
जो कुछ भी हो रहा है अस्तित्व कर रहा है इसलिये न तो हमें चिंता करनी चाहिए न ही किसी गलती पर अपने को दोषी समझना चाहिए .न ही किसी दूसरे की गलती पर उसे दोषी समझना चाहिए . जब सब कुछ अस्तित्व ही कर रहा है तो हम दोषी कैसे हुए या दूसरा भी कैसे हुआ. हम तो सिर्फ साधन हैं जिसके द्वारा अस्तित्व अपना काम करता है .
हम अपने को सिर्फ शरीर मानते हैं इसलिये दुखी होते हैं ,अगर शुद्ध चेतना के रूप में मान लें तो दुःख कहाँ है.शरीर तो सिर्फ इंस्ट्रूमेंट है.
जो कुछ भी हो रहा है अस्तित्व कर रहा है इसलिये न तो हमें चिंता करनी चाहिए न ही किसी गलती पर अपने को दोषी समझना चाहिए .न ही किसी दूसरे की गलती पर उसे दोषी समझना चाहिए . जब सब कुछ अस्तित्व ही कर रहा है तो हम दोषी कैसे हुए या दूसरा भी कैसे हुआ. हम तो सिर्फ साधन हैं जिसके द्वारा अस्तित्व अपना काम करता है .
हम अपने को सिर्फ शरीर मानते हैं इसलिये दुखी होते हैं ,अगर शुद्ध चेतना के रूप में मान लें तो दुःख कहाँ है.शरीर तो सिर्फ इंस्ट्रूमेंट है.
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