ए पर्सनल रिलीजन ऑफ यूअर ऑन --रमेश एस बाल सेकर पढ़ी . छोटी सी है और एक ही सिटिंग में पढ़ने लायक है .पूरी पढ़े बिना बंद करना मुश्किल है.जो समझा ,उसे लिखने की कोशिश करती हूँ .
जो कुछ भी हो रहा है अस्तित्व कर रहा है इसलिये न तो हमें चिंता करनी चाहिए न ही किसी गलती पर अपने को दोषी समझना चाहिए .न ही किसी दूसरे की गलती पर उसे दोषी समझना चाहिए . जब सब कुछ अस्तित्व ही कर रहा है तो हम दोषी कैसे हुए या दूसरा भी कैसे हुआ. हम तो सिर्फ साधन हैं जिसके द्वारा अस्तित्व अपना काम करता है .
हम अपने को सिर्फ शरीर मानते हैं इसलिये दुखी होते हैं ,अगर शुद्ध चेतना के रूप में मान लें तो दुःख कहाँ है.शरीर तो सिर्फ इंस्ट्रूमेंट है.
जो कुछ भी हो रहा है अस्तित्व कर रहा है इसलिये न तो हमें चिंता करनी चाहिए न ही किसी गलती पर अपने को दोषी समझना चाहिए .न ही किसी दूसरे की गलती पर उसे दोषी समझना चाहिए . जब सब कुछ अस्तित्व ही कर रहा है तो हम दोषी कैसे हुए या दूसरा भी कैसे हुआ. हम तो सिर्फ साधन हैं जिसके द्वारा अस्तित्व अपना काम करता है .
हम अपने को सिर्फ शरीर मानते हैं इसलिये दुखी होते हैं ,अगर शुद्ध चेतना के रूप में मान लें तो दुःख कहाँ है.शरीर तो सिर्फ इंस्ट्रूमेंट है.
सुंदर बोध देते शब्द..सारी समस्याओं का एक ही निदान है कि हम अपने सच्चे स्वरूप को जानें, देह और मन, बुद्धि हमारे साधन हैं, यदि हम स्वयं को इनसे परे शुद्ध चेतना के रूप में अनुभव कर लेते हैं तो इनके द्वारा जगत में परमात्मा को ही अभिव्यक्त करते हैं.
ReplyDeleteआशा है अब जल्दी ही नई पोस्ट पढने को मिलेगी.
ReplyDelete