......विचार आ रहे हैं कि ज्ञान ,कर्म और भक्ति में क्या समानता है. ज्ञान होना चाहिए इस बात का कि भक्ति ही सब कुछ है,...पर भक्ति आखिर क्या है ...भक्ति है ईश्वर से प्रेम .ईश्वर कौन है ,ईश्वर है ये सारी सृष्टि ,इससे प्रेम ही ईश्वर से प्रेम है.प्रेम का प्रदर्शन कैसे हो.वो होता है कर्म से .हम जब प्यार में सराबोर होकर किसी के लिए कुछ करते हैं तो न थकावट होती है न ही इरीटेशन,सो सबसे जरूरी है प्यार ,तभी तो हम बिना किसी उलझन के काम कर सकेंगे और इसी का ज्ञान होना चाहिए.
बहुत सुंदर विश्लेषण !
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