Sunday, February 26, 2012

सोहनी का सबसे छोटा भाई



जब सोहनी कि शादी हुई तो उसका सबसे छोटा भाई बारह साल का था.
एक दो महीने का ही था कि उसे तेज बुखार हुआ डाक्टर से दवा लेकर दी गयी और शायद दवा के बाद पानी पिलाने में देर कर दी, दवा इतनी तेज थी कि उसकी जीभ पक गयी अब तो दूध पीना भी मुश्किल हो गया .निशान अभी भी उसकी जीभ पर है .
जब भी बड़ा भैया गोदी में उसे खिलाता तो कहता था बड़े होकर कलेक्टर बनेगा न.
वह सबसे ज्यादा मस्तमौला था.पहली क्लास में फेल होने पर सबको खुशी से बताता रहा कि मै तो फेल हो गया.तब पापाजी ने ऑफिस से आकर रोज उसे पढ़ाना शुरू किया. और फिर तो बढ़िया नम्बर लाने लगा .
हर जरा जरा सी बात पर वह इतना उत्साहित और रोमांचित हो जाता था कि सोहनी कहती थी लगता है वह दुनिया में पहली बार आया है.
उसका पसंदीदा खेल था कीर्तन करना.गली मोहल्ले के उत्सवों में भी वह जोश से हिस्सा लेता था.
उसकी पहली पोस्टिंग बैंक की तरफ से घर से दूर पहाड़ों पर हुई.एक बार तो उसका मन हुआ कि जॉब छोड़ दे .पर पापाजी ने हौसला दिया कि हिम्मत से काम लो, जॉब आसानी से नही मिला करतीं
और वाकई उसने हिम्मत से काम लिया.अब तो ओशो का सन्यासी बन गया है.

Friday, February 24, 2012

सोहनी का हवा को बुलाने का तरीका

जब वह दस.ग्यारह साल की थी तब उनके यहाँ बिजली का कनेक्शन लगा था .उससे पहले रोज अँधेरा होते ही लालटेन जलाये जाते थे .
पर उस समय उनके कमरे में पंखा नही था .इसलिये गर्मी के मौसम में सब आँगन में या छत पर चारपाई बिछाकर सोते थे, जब बहुत गर्मी लगती तो हवा को बुलाने के लिए इक्कीस पुर गिना करते जैसे सहारनपुर सीतापुर रामपुर ,इक्कीस पुरों के नाम याद करते करते कहीं से तो हवा का झोंका आ ही जाता था और तबतक हवा आये या न आये नींद तो आ ही जाती थी .

Thursday, February 23, 2012

सोहनी के बाल

बचपन में उसके बालों की कटिंग घर में ही नाई से कराई जाती थी,रंग बिरंगे रिबन बांधे जाते थे , पर जब दस ग्यारह साल की हुई तो उसके घुंघराले बालों में रोज चोटी बना कर परांदी बान्धी जाने लगी.पर जब सोहनी ने दसवीं क्लास पास कर ली तो उसने बाल कटिंग कराने की फर्माइश की क्योंकि गाहेबगाहे यानि जबतब उसे सुनाई पड़ने लगा था कि खुले बालों में वह ज्यादा सुंदर लगती है.
पापाजी के सामने बात रखी गई पर उन्होंने कहा कि नाई की जरूरत नही ,उन्होंने कैंची ली और खुद ही सेट कर दिए.और तबसे उसने कभी चोटी नही बनाई.पर खुले बालों में अक्सर चिड़ियों का घोंसला बन जाता था तब पहली बार उसके बालों के लिए शेम्पू मंगवाया गया ताकि बाल अच्छी तरह से सेट रह सकें.
जब शादी हो गई तब हनीमून पर शिमला में उसके हमसफर ने ब्यूटी पार्लर से उसके बाल सेट करवाए.

Tuesday, February 21, 2012

सोहनी की छोटी बहिन -भाग -८

सोहनी की छोटी बहिन उससे चार साल छोटी थी वह उसके साथ ही सोती थी और सोने से पहले वो दोनों एक दूसरे की उँगलियों में बिना छुवाये रिंग डालने का खेल खेला करते थे.
उस समय नल चलाकर पानी भरा जाता था ,चलाते समय उसने अपना हाथ उस नल के मुँह में डाल दिया और उसकी छोटी उँगली  में चोट लग गई खून निकल आया अभी भी निशान है .
नहाने के लिए पानी गर्म किया जाता था एक बड़े कनस्तर में ,एक बार उसकी भाप से उसका पूरा चेहरा झुलस गया उसी समय उसे एक बुजुर्ग अनुभवी डाक्टर के पास ले गए उसका इलाज इतना अच्छा था कि ठीक होने पर जरा भी निशान नही रहा, चेहरा पहले जैसा ही आकर्षक हो गया.
उसकी छोटी बहिन को उसके दादाजी ने अमृत नाम दिया था.और वाकई वह अमृत जैसी पवित्र है .स्कूल में एकबार वह इंदिरा गाँधी भी बनी थी .
पढ़ाई-लिखाई में सबसे तेज थी .एकबार उसकी टीचर ने उस पर नकल करने का आरोप लगा दिया था तो उसने पत्र लिखा था किआरोप गलत है.
उसे बहुत सारी कवितायें याद थी कोई घर में आता तो उसे सुनाने को कहा जाता.और अब वह खुद कवितायें लिखती है .

Monday, February 20, 2012

सोहनी का छोटा भाई -भाग -७

उसका छोटा भाई उससे छह साल छोटा था .जब वह ढाई तीन साल का रहा होगा तो उसे काफी तेज बुखार चढ़ा था बुखार तो उतर गया पर कमजोरी के कारण उसने चलना बंद कर दिया.
 चिंता हो गयी कि कहीं पोलियो जैसी बात तो नही हो जाyeगी पर उन्ही दिनों हम सब ट्रेन से दूसरे शहर गए थे ,ट्रेन में एक नए महौल में आते ही उसमे बदलाव आता गया ,ट्रेन की खिड़की की रेलिंग पकड़- पकड़ कर खड़ा होना शुरू कर दिया,चलने की कोशिश करने लगा .कुछ ही दिनों में तन्दरुस्त हो गया .
उसे स्कूल जाना पसंद नही था,इसलिये कई बार वह स्कूल से भाग कर वही नजदीक ही रहने वाली पापाजी की चाचीजी के घर चला जाता.
सर्दियों के मौसम में ठंड से उसके गाल और पैर फट जाते थे.फिर उस पर वैसलीन लगाई जाती थी .
जब वह दस साल का था तो दीपावली के समय बीस रूपए लेकर कुछ सामान लेने गया था पर उससे रुपये गुम हो गए थे .
बड़े होने पर उसे मुहांसो ने काफी तंग किया.अभी वह आठवीं में ही था कि सोहनी की शादी हो गयी .एक बार वह सोहनी को ट्रेन से ससुराल छोड़ने भी गया था .टिफिन लेकर गए थे पर रास्ते में ट्रेन में उन्हें खाने में संकोच हो रहा था .घर पहुंचकर ही खाया.
उसके भाई को म्यूजिक का शौक था ,इसलिये उसने बैन्जो बजाना सीखा था ,और इसी कला ने उसे तब बहुत सहारा दिया जब वह इंजीनीयर बनने के लिए होस्टल गया था .
वहाँ जमकर रैगिंग हुई थी ,एकबार तो उसका मन हुआ कि पढ़ाई छोड़कर वापिस आजाये ,पर पापा जी ने हिम्मत दी और फिर जब होस्टल में उसने बैंजो बजाया तो रैगिंग खत्म हो गयी . सबने बैंजो सुनना शरू कर दिया.

Tuesday, February 14, 2012

सोहनी की लाटरी लग गयी -भाग-६



सोहनी ने  सोचा कि वह बड़ी होकर एयर होस्टेस बनेगी.पर उसके फूफाजी हवाई सफर कर चुके थे. उन्होंने पूछा कि क्या वह वेटर का काम कर सकती है.जहाज में तो सभी को खाना पानी सर्व करना होगा.सुनते ही उत्साह ठंडा पड़ गया.
फिर एक बार सोचा कि नर्स बनेगी तब पापाजी ने बताया कि सड़े गले घावों की मरहम पट्टी करनी पड़ेगी .तो मुश्किल में पड़ गई असल में इन दोनों जॉब में जाने का आकर्षण उनकी एट्रेक्टिव और स्मार्ट यूनीफार्म थी .
उसने अपने लिए दो ड्रेस सिली थीं एक फ्राकनुमा थी, दूसरी पर उसने फूलों वाली कढ़ाई की थी. अपनी सबसे छोटी बहिन के लिए भी एक ड्रेस बनाई थी.पर उसने यह कभी नही सोचा कि वह बड़ी होकर ड्रेस डिजाइनर बनेगी .क्योंकि उन दिनों उसने ड्रेस डिजाइनर का नाम कभी सुना ही नही था ,दर्जी का नाम सुना था सिर्फ.
एकबार उसने सफेद रंग के सेंडिल खरीदे और उनको पहन कर अपने घर के बरामदे में ही खूब एन्जॉय कर के चलती रही, खुश होती रही .
जब नवीं क्लास में गयी तो उसे चश्मा लग गया था उसके भाई को पहले ही लग चुका था और सब चाहते थे कि चश्मा उतर जाये इसलिये उसे गायका ताजा कच्चा दूधपीने को दिया जाता था.पर सोहनी तो खुद ही चश्मा पहनना चाहती थी .पहन कर उसे एट्रेक्टिव फील होता था.
 दसवीं क्लास के बाद उसके पापाजी का ट्रांसफर हो गया ,इसलिये नया शहर ,नया कोलेज था.और था उसका हद से ज्यादा शर्मीला या कहें कि संकोची स्वभाव .उसके क्लास की एक लड़की ने उसे एक नाटक में काम करने की ऑफर दी ,उसका भाई किसी नाट्य संस्था से जुड़ा हुआ था पर अपने संकोची स्वभाव के कारण उसने मना कर दिया.
घर में शेर और बाहर म्याऊ थी.हर बात में बहस शरू कर देती थी, दादाजी कहते थे जरूर बड़ी होकर वकील बनेगी उन्हें शायद पता नही था कि बाहर तो भीगी बिल्ली थी वकील क्या खाक बनती.
थोड़ा बहुत लिखना आता था इसलिये शेख चिल्ली की तरह कल्पना करते हुए अपनी बुआजीजी को एक चिट्ठी लिखी कि उसकी पांच लाख की लाटरी निकली है.जिससे उसने एक सुंदर सी कोठी और कार खरीद ली है घर का सारा सामान ले लिया है काम करने के लिए नौकर भी हैं और बाकी रुपये बैंक में जमा कर दिए हैं .
और आने वाले कुछेक सालों में उसकी यह कल्पना साकार भी हो गयी बिना पांच लाख की लाटरी निकले.क्योंकि बी.ए.करते ही एक अच्छा सा रिश्ता आ गया और शादी होते ही दुबई में नौकरी मिल गयी उसके हमसफर को जोकि लाटरी से कम बात नही थी .

Sunday, February 5, 2012

सोहनी की गुफा -भाग (५)

पड़ोस की लड़की स्कूल में दूसरे बच्चों को कहती थी कि सोहनी तो किसी गुफा में रहती है क्योंकि स्कूल से आने के बाद घर में घुसती है तो सुबह स्कूल आने के समय ही घर से निकलती है.
सोहनी अपनी गुफा में बहुत खुश थी उसमे उसके दादा-दादी ,चाचा -चाची और बुआ भी रहती थी .
उनके घर में हर महीने नंदन,चम्पक ,पराग, चन्दामामा ,धर्मयुग ,हिदुस्तान, नवनीत ,कादम्बिनी ,रीडर डाइजेस्ट, माधुरी ,सरिता इत्यादि ढेर सारी मैग्जीन्स आती रहती थी.उसके पापाजी लाईब्रेरी से भी किताबें लाते थे .
उसका भैया कुछ भी पढ़ते हुए ही खाना खाता था.कई बार तो उसके हाथ से मैग्जीन छीननी पड़ती थी .
उसके भैया की स्टडी टेबल पर रेडियो था. गाने लगाकर ही पढ़ाई करता था.हालांकि उसे एक भी गाना याद नही था गाने के संगीत की मधुर आवाज में उसका मन पढ़ाई में केन्द्रित होता था.
उसका भाई बहुत सुंदर और पढ़ाई में होशियार था.पर उसकी लिखाई महात्मा गांधीजी की लिखाई की तरह थी ,उसके मास्टर साहब उसे कहते थे कि काश उसकी लिखाई भी उसकी शक्ल जैसी होती .
उनका परिवार एक बड़ा परिवार था इसलिये जब भी घर में फल मिठाई आते तो सबके लिए हिस्से बन जाते थे और सोहनी की नजर सबसे बड़े वाले हिस्से पर रहती थी .उसका कहना था कि उसे सबसे ज्यादा भूख लगती है इसलिये उसे बड़ा हिस्सा चाहिए.
सोहनी जब छोटी थी तो उसे तीन पहियों वाली साईकिल लेकर दी गई थी उस पर बैठकर ही वह खाना खाती, सो जाती किसी के घर जाना हो तो रिक्शे पर उसकी साईकिल को भी ले जाना पड़ता.एक मिनट के लिए भी वह अपनी साईकिल को छोड़ना नही चाहती थी.
एक बार मेले से एक गुड़िया भी ली जो लिटाने पर आँखे बंद कर लेती थी बैठाने पर आंखे खोल लेती थी.उसके भैया ने मोटरसाईकिल वाला खिलौना लिया था.
स्कूल की छुट्टियाँ पड़ने पर सोहनी अपने भैया के साथ रिक्शे पर बाजार गई थी और दोनों ने अपने खेलने के लिए लूडो और सांप सीड़ी खरीदी थी.
उसके भैया ने अपनी पाकेट मनी इकट्ठा करके कैरम बोर्ड और एक बार मैकेनिकसेट भी लिया था.उसकेभैया को पुर्जों से जोड़ कर कुछ बनाने में बड़ा आनंद आता था.सब कहते थे कि यह तो बड़ा होकर मैकेनिकल इन्जीनियेर बनेगा.
अक्सर इतवार को उसके पापाजी उन सब भाई -बहिनों को कम्पनी गार्डन में घुमाने ले जाते थे ,पर उनकी मम्मीजी नही जा पातीं थीं , क्योकि उस समय वह उन सबके लिए खाना बना रही होती थीं .
तरबूज के मौसम में सब बच्चे गोलाई में बैठ जाते और उनके पापाजी तरबूज काट कर सभी को दिया करते थे जैसे अब केक काटने का फैशन है .अब तो सोहनी अपना जन्मदिन भी तरबूज काटकर ही मनाती है.
छोलियों (हरे चने )के मौसम में पके छोलिये धूप में सुखाये जाते और फिर उसके पापाजी सूखे छोलियों को आँगन में आग में भूनते ,बच्चे आस-पास बैठ जाते और गरमा गर्म भुने छोलियों को खाने का लुत्फ़ उठाते..
उनके पापाजी का समय समय पर तबादला हो जाता था.इसलिय उसने  कई शहर देख   लिए जैसेकि सहारनपुर, बस्ती शाहजहांपुर ,सीतापुर, मुरादाबाद, गोपेश्वर ,मुजफ्फरनगर.
सहारनपुर में वह काफी समय अपने दादाजी के मकान में रहे, उसमे ईंटो का फर्श था जिसपर झाडूं- पोचा लगाना उसे सिखाया गया .
पानी के लिए हैण्ड-पम्प था .जब मम्मी कपड़े धोने के लिए बैठती तो नल चलाकर टब में पानी भरना उसकी जिम्मेदारी थी .
चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियाँ मगाईं जातीं तो उन्हें धूप में सुखाने के लिए कई बार सब बच्चे मिलकर छत पर चढ़ाते .