गुरु तेज पारखी जी का सत्संग टी.वी. पर सुना .
उन्होंने बताया कि ईश्वर ने यह सृष्टि रूपी जो लीला रची है -खेल बनाया है,इसके कुछ नियम भी बनाये हैं.जो उन नियमों के अनुसार चलता है,वह खेल का पूरा आनन्द लेता है.
जैसे किसान बीज बोता है,फिर बीजों की तुलना में कई गुना अधिक फसल पाता है,उसी तरह हमे विश्वास बीज बोना चाहिये.हम मंदिर में जाकर भगवान से कुछ मांगते हैं और कहते हैंकि अगर मेरी यह मांग पूरी हो गयी तो मै तुम्हारे लिये इतने रुपये का प्रसाद चढाऊंगा ,या इतना दान दूँगा .वगैरह कुछ भी मन्नत मानते हैं,पर पहले अपनी मांग पूरी करना चाहते हैं.
जबकि ईश्वर के खेल का नियम है कि पहले दो फिर पाओ.
इसलिए देने का काम हमे अपने अड़ोसपड़ोस से शुरू करना चाहिये.जब भी कुछ देने का अवसर मिले,इस विश्वास के साथ दें कि विश्वासबीज बो रहे हैं,और जब कोई बीज बोते हैं तो कई गुना बढ़ कर हमे मिलता है .तो इसी तरह जब भी हम किसी को कुछ दें ,चाहे वह उसकी जरूरत पूरी करने के लिये हो या उसका बर्थडे गिफ्ट हो .चाहे धन के रूप में दें,चाहे अपना समय दें ,चाहे किसी की परेशानी सुनने के लिये अपना कान दें .या किसी के पक्ष में बोलने के लिये अपना गला दें ,अपनी जुबान दें.यानि शरीर से ,धन से. मन से देना शूरू करें .
इस खेल में नियम यह भी है कि हमे जब भी मिलेगा तो यह जरूरी नहीं है कि हमने जिसे दिया है उसीसे हमे वापिस भी मिले.हमे मिल किसी और से भी सकता है.जिसको दिया है उससे तो हो सकता है -देने के बावजूद निंदा सुनने को मिल जाए.पर फिर भी हमे अपना देने का काम बंद नहीं करना है.किसान जब फसल उगाता है तो कभी कभी उसे नुक्सान भी उठाना पड़ता है.पर वह बीज बोना बंद नहीं करता.
हम जब भी कुछ देते हैं किसी भी रूप में देते हैं तो यह सोचें कि ईश्वर को दे रहे हैं.और जब हमे कुछ भी मिलता है ,किसी भी रूप में मिलता हैतो समझें कि ईश्वर ही दे रहा है.नियम यही है कि पहले हमे ईश्वर को देना है फिर हमे मिलेगा .इसी थीम पर ईश्वर ने इस संसार को रचा है.
समुंद्र का पानी पहले भाप बनकर ऊपर जाता है फिर वही बारिश बनकर उसे वापिस मिलता है.
हम इस नियम को चेक करने के लिये एक उपाय करें कि एक कापी में लिख कर रखें कि आज हमने इस तरह से ईश्वर को यह दिया यानि विश्वासबीज बोया और उस के फलस्वरूप हमारा यह काम हो जाएगा ,आप लिखते जाएँ और चेक करते जायें .
बहुत सुंदर विचार हैं, आज से ही इन पर अमल करना शुरू कर देना चाहिए !
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