26-जनवरी2009 को टी .वी .पर सुना गुरु तेजपारखीजी का सत्संग,जिसकी शुरुवात इस वाक्य से हुई कि जोकर हंसकर कर.हमे शब्दों पर ध्यान नहीं देना है हमे उनके अर्थ को समझना है .शब्दों को पकड़ने से हम असली बात नहीं समझ पायेंगें.जैसे शीला ने अपनी मम्मी से पूछा कि पीला रंग बहुत महंगा होता है क्या?मम्मी ने कहा- नही तो ,तो शीला ने कहा कि पड़ोस वाली आंटी तो कह रही थी कि बेटी के हाथ पीले करने हैं पर क्या करूं ?इतने पैसे कहाँ से लाऊँ?तो इसका मतलब शीला ने पीले रंग का शाब्दिक अर्थ लिया उसका तात्पर्य नही समझा.
आप से मैं कहता हूँ कि भगवान दुकानदार है और आपका शरीर एक दुकान है.आप दुकानदार से कुछ भी लेते हैं और भावतोल करते हैं पर यहाँ ईश्वर दुकानदार है और वह बदले में आपसे सिर्फ विश्वास और प्रेम मांगता है.उसमे आपको किसी भी तरह का भावतोल नहीं करना है.आप दुकानदार ईश्वर से कुछ मांगिये और विश्वास दीजिये उसको,आपका काम पूरा हो ही जायेगा.
आप स्वयं शरीर नहीं हैं.यह शरीर बेडरूम में जाकर बेडरूम हो जाता है,खाने की जगह पर जाकर डायनिंग रूम हो जाता है.टी.वी. देखने की जगह पर सिनेमारूम हो जाता है.यह तो एक यंत्र है जिसके द्वारा ईश्वर अपन काम करना चाहता है.काम करता है,आप स्वयं शरीर नहीं हैं.इसको पूरी तरह से अनुभव में लाने के लिये कुछ बातें समझनी होंगी-
१-अपनी गलतियों पर हंसना सीखिये,और आपकी सबसे बड़ी गलती है अपने को शरीर समझना .हमे हर काम हंसते हुए करना चाहिये .हंसी भी चार तरह की होती है.पहली हंसी है जो सिर्फ होठो तक ही रहती है,हम अक्सर एक दूसरे की टांग खीचतें रहते हैं.जैसे एक दोस्त ने दूसरे दोस्त को बैंगन की सब्जी खाते हुए देख कर कहा कि जो बैंगन की सब्जी खाता है अगले जन्म में ै गधा बनता है तो उसके दोस्त ने जवाब दिया कि यह तो तुम्हे अपने पिछले जन्म मै सोचना चाहिये था न.यानि एक ने दूसरे को छेड़ा तो दूसरे ने उसे छेड़ा और एक दूसरे पर हँसे.ऐसी हंसी सिर्फ होठों तक ही रहती है.
दूसरी हंसी बुद्धि से आती है.जैसे सड़क पर एक साइन बोर्ड लगा हुआ था -जिनको जाने की जल्दी थी वे चले गये.इस साइन बोर्ड को पढ़ने से हंसी भी आती है और समझ भी पैदा होती है.
तीसरी हंसी विवेक से आती है कि हम शरीर नहीं हैं.चौथी हंसी ह्रदय से आती है,ऐसा व्यक्ति कितनी भी मुसीबतें आ जायें हँसता ही रहता है.सुख आने पर तो सभी आनन्दित होते ही हैं ,पर दुःख आने पर भी जो हंस सके वह है ह्रदय की हंसी .ए़क व्यक्ति का उदाहरण देते हुए समझाया कि वह हर परिस्थिति में हँसता था ,उससे उसकी हंसी का रहस्य पूछा गया तो उसने बताया किउसकी माँ ने मरते समय उसे कहा था कि बेटा ,कितनी भी मुसीबत आ जाये तू अपनी हंसी मत छोड़ना ,जिस दिन तेरी हंसी बंद हो गयी ,उस दिन तू जिंदगी से हार गया,इसलिए मैं कभी अपनी हंसी नहीं छोड़ता क्योंकि मुझे जिंदगी से हारना मंजूर नही.
पर हम सबको ऐसी हंसी हंसते हुए कामनसेंस से काम लेना होगा.हंसी अंदर से महसूस होनी चाहिये जोर जोर से आवाज करते हुए हंसने की उसमे कोई जरूरत नहीं है,क्योंकि उससे तो जो हमारे आसपास परेशान और दुखी लोग हैं वे और भी ज्यादा दुखी हो सकते हैं.जो व्यक्ति भीतर से खुश है उसकी आँखों से आनंद झलकता है.
जब हम खुश हो जाते हैं तो चुम्बक बन जाते हैं,चुम्बक सारी सकारात्मक एनर्जी को अपने पास खींचता है.और जब हम दुखी होते हैं तो पीतल हो जाते हैं,जो नकारात्मक एनर्जी को अपनी और खीचता है,सो हमे नकारात्मकता से भी बचने के लिये खुश रहना चाहिये ,उससे हम चुम्बक की तरह हर तरह कीसुख समृद्धि को अपनी तरफ आकर्षित करेंगे.
शेष अगली बार.
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कितने सुंदर विचारों से ओतप्रोत है आपकी यह पोस्ट गणतन्त्र दिवस के लिये एक उपहार की तरह ! आभार एवं धन्यवाद !
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