Friday, February 3, 2012

अच्छी लड़कियाँ (अब सोहनी बड़ी हो रही थी)_भाग (४)


गली में बच्चों के साथ मम्मी की चुन्नी लपेटकर कोई ड्रामा चल रहा था ,पापाजी ने देख लिया और आवाज देकर सोहनी को घर के अंदर बुलाया.पहले आराम से, फिर जोर देकर समझाया कि अच्छी लड़कियाँ गली में खड़े होकर ऐसे ड्रामे नही करती.
घर के अंदर थि़रक रही थी ,मम्मीजी ने समझाया अच्छी लड़कियाँ नाचा नही करतीं.
नुक्कड़ की दुकान से कुछ खरीदने के लिए जाने लगी तब पापाजी ने रोका और कहा कि भैया ले आएगा.अच्छी लडकियां दुकानों पर नही जाया करती.
मम्मीजी के साथ किसीके घर जा रही थी ,मम्मीजी ने समझाया कि अच्छी लड़कियाँ ऐसे तन कर नही चलती.
पापाजी के साथ दांत के दर्द के इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाने के लिए तैयार हो रही थी .उन्होंने मम्मीजी को कहा कि बड़ी हो रही है ,सलवार या पजामी पहनाओ इसे .और तब से फ्राक, स्कर्ट पहनना बंद हो गया.
सबको टाफी बाँट रही थी उसने बड़े भैया के दोस्त को भी दे दी.पापाजी ने समझाया कि अच्छी लड़कियाँ लड़कों से बात नही करती, उनसे दूर रहती हैं चाहे वह भैया का दोस्त ही क्यों न हो.
बच्चों को बड़ा करने के साथ साथ सोहनी के मम्मी पापा भी बड़े हो रहे थे. इसलिये धीरे धीरे उनकी भी अच्छी लड़कियों की परिभाषा में बदलाव आता गया.उनकी यह सोच बदल गई कि अच्छी लड़कियाँ नाचती नहीं या खरीदारी नही करती,या लड़कों से बात नही करती.

Wednesday, February 1, 2012

शेष भाग -बचपन का -भाग (३)

चाचीजी ने समझाया कि बच्चे अगर  पाउडर क्रीम लगाते हैं तो उनकी स्किन  जल्दी खराब हो जाती है.
पहला नदी स्नान -पड़ोस के बच्चों के साथ नदी पर नहाने गई.समय का कोई ख्याल नही था . घर आये तो देर हो गई थी. तब पापाजी ने टाइम देखना सिखाया.
पहला बुखार-करीब एक महीने तक मियादी ज्वर से पीड़ित रही.ठीक होने के बाद कमजोरी इतनी थी कि चलते समय पैर कांपते थे ,सर के सारे बाल झड़ने लग गए ,चेहरे पर फुन्सिंया निकल आयी थीं .तभी छठी क्लास में जाने के लिए प्रवेश परीक्षा भी देनी पड़ी,चेहरे के दानो को देखते हुए उसे सबसे अलग बैठाया गया.
पहला अनुभव घर से बाहर रहने का-पापाजी के साथ बुआजी को मिलने गई उन्होंने लाड से रोक लिया कि आज इसे यही छोड़ दो कल वो घर ले आयेंगी.,रुक तो गई पर शाम को अँधेरा होते ही घर जाने की जल्दी हो गई और फिर उनके देवर को घर पहुंचाना पड़ा.(तब पता नही था कि भविष्य में उसी देवर से शादी करके हमेशा के लिए आने वाली है .)
स्कूल की क्लास के बच्चों में कोई बहस छिड़ गई तो सोहनी से फैसला करवाया गया की सच क्या है क्योंकि क्लास का मानना था की वह झूठ नही बोलेगी.
उसके मजाक को भी सच मान लेते थे .कोई सोच नही सकता था कि वह भी मजाक कर सकती है.
उसकी चाचीजी किसी से मिलने जातीं तो साथ ले जातीं .वह वहाँ दूसरे बच्चों के साथ खेलती रहती उनका ख्याल था कि वहाँ जो भी बातें हो रही हैं  वह नही सुनेगी , सुन भी  ले तो घर आकर किसी को कुछ नहीं बतायेगी.और उनका ख्याल सही था .
बचपन में ही छोटी बहिन की डिफ्थीरिया बीमारी से मृत्यु देखी .माँ का दुःख दिन में देखा और रात के अँधेरे में पापा को दुःख से रोते हुए सुना .
पापाजी ने तब अपने को सम्भालने के लिए वशिष्ट योग पढ़ना शुरू किया.अध्यात्म में अपना मन लगाया .उन्ही दिनों घर में सुना कि मनुष्य  केवल शरीर ही नही है आत्मा परमात्मा के बारे में सुना .जिज्ञासा हुई तो भागवत गीता के श्लोक पढ़ने शुरू किये.
और एक साल के अंदर ही उनके घर एक बेटी ने जन्म लिया सब मानते हैं कि वही बहिन वापिस आ गई दूसरा शरीर लेकर.
प्राईमरी स्कूल में तो वह हमेशा प्रथम आती थी पर बाद में दूसरे स्कूल में जाने पर प्रथम कभी नही आयी.उसे पढ़ाई में तेज समझा जाता था पर सच में ऐसा था नही.
कक्षा में चुप रहती थी इसलिये शोर होने पर टीचर पूरी क्लास को खड़ा रहने की सजा देतीं थीं पर उसे बैठा देती थीं एकबार तो ऐसा हुआ कि उसे कहा गया कि सबके हाथों पर एक एक बार स्केल मारे ,यानि वह सभी को सजा दे .इस पर सब बच्चे हंस पड़े .
इंटरवल में भी क्लास से बाहर खेलने नही जाती थी तो उसकी क्लास टीचर(मिस भूटानी) ने पूछा कि तुम्हारी कोई सहेली नही है क्या?हाँ में जवाब दिया तो उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी सहेली बना लो.

Sunday, January 29, 2012

सोहनी के बचपन के याद रह गए पल.-भाग (२)


बचपन का नाम-महंतनी ,गोल-मटोल शांत स्वभाव की थी इसलिये उसके मौसा -मौसी उसे मह्न्तनी कहते थे .
पहला डर -हाथ का नाखून काटते समय जरा सा खून निकल आया तो सोहनी ने डर कर मुठ्ठी भींच ली और काफी देर तक नही खोली.
पहला अप्रेल फूल -सोहनी के भैया बगीचे में मिट्टी खोद रहे थे उसने पूछा कि क्या कर रहे हैं तो जवाब मिला कि अप्रेलफूल बना रहा हूँ.सोहनी कई दिन तक इन्तजार ही करती रही कि कब अप्रेल फूल निकलेगा.
पहली कट्टी और अब्बा-सोहनी का जबर्दस्त झगड़ा हो गया अपनी पक्की सहेली से ,कानी (छोटी)ऊँगली मिलाकर कट्टी कर ली,मतलब बोलचाल बंद.फिर उसीपल ख्याल आया कि कल उसका जन्मदिन है तो उसी समय अंगूठे के साथ वाली ऊँगली मिलाकर अब्बा कर ली और जन्मदिन में आने का निमंत्रण दे दिया.
पहला जन्मदिन -आमों की बहार से मना.मम्मी ने गली से आम लिए पच्चीस पैसे के पच्चीस और पापाजी भी टूर से आते हुए पचास पैसे के पचास आम लेते हुए आगये .सहेली भी आम ही लेकर आयी थी.
पहला जुर्माना-सहेली की स्लेटी सोहनी से टूट गई उसने साबुत स्लेटी लौटने को कहा,अगले दिन लाकर दी और बदले में टूटी स्लेटी भी नही ली.
पहली शापिंग -स्कूल के बाहर के ठेलेवाले से इंटरवल में दस पैसे देकर पापिंस ली उसने कहा की बारह पैसे की है कल दो पैसे और दे देना.अगले दिन उसे दो पैसे दिए तो उसने हैरानी दिखाई .
पहला नाटक -सोहनी के पापाजी सोने से पहले बच्चों को कहानी सुनाया करते थे, कुल छह  भाई -बहिन थे .दूसरा नम्बर उसका था जरूरी बात है कि गोदी में आने का मौका तो सबसे छोटे बच्चे को ही मिलेगा तो वह सोने का नाटक करती ताकि गोदी में उठाकर बिस्तर तक ले जाया जाय.
पहली जिद -सोहनी को सर्कस देखने नही ले जा रहे थे कारण कि वह वहाँ रोयेगी , तो उसने जवाब दिया धीरे - धीरे रो लूँगी.
पहला मेकअप -सोहनी  की मम्मी मेकअप नही करती थीं उसने चाचीजी का मेकअप बाक्स देखा तो उसमे से पाउडर निकाल कर चुपके से लगाया.

Tuesday, January 10, 2012

गम किस बात का ?


बहुत से लोग गाँधी की बात नही समझ पाये.
बहुत से लोग सुकरात की बात नही समझ पाये .
बहुत से ईसा की बात नही समझ पाये.
बहुत से ओशो की बात नही समझ पाये .
और अब अन्ना की बात नही समझ पा रहे हैं.
तो अगर मेरी बात नही समझ पाये तो क्या गम है .

Monday, December 5, 2011

रिटर्न गिफ्ट



हम जिससे कुछ पाते हैं उसे वापिस कुछ देना बहुत जरूरी है.वरना दोनों ही नही बचेंगें.और यह भी सच है कि जैसा देंगें वैसा ही पायेंगें.
अक्सर कहा जाता है कि पापी पेट के लिए इंसान को क्या कुछ नही करना पड़ता .पेट के लिए हमारी पांचों ज्ञानेंद्रियाँ कर्मेन्द्रियाँ काम करती हैं तब जाकर हमारा पेट भरता है पर पेट बाहर से काम करता हुआ भले ही नही दिखाई दे लेकिन वही तो हमारी सारी इन्द्रियों को काम करने की ताकत देता है .हम काम भी कर पाते हैं और तरह-तरह के सुखों का उपभोग भी कर पाते हैं.
पर अगर पेट का ख्याल न रखें उसे सही डाईट न दें .उसे सही खुराक देने के लिए मेहनत न करें तो पेट तन्दरुस्त नही रहेगा उसे सही भोजन देते रहें तो बाकी का काम तो वह चुपचाप करता रहता है ताकि हमारे हाथ -पावं सही सलामत काम करते रहें
इसी तरह संसार भी एक बहुत बड़ा पेट है और उसकी खुराक प्रेम है .अगर उसे प्रेम मिलता रहे तो वह ठीक ठाक काम करता रहता है.नफरत रूपी सड़ा खाना मिले तो बीमार हो जाता है.संसार से हमे वही तो मिलेगा जो हमने इसके पेट में डाला था .

Tuesday, November 22, 2011

ध्यान



ईश्वर निराकार है पर उसकी समझ हमें आकार से ही मिलती है.आकाश निराकार है पर उस पर सूरज चाँद सितारे बादल अपने अपने आकार में नजर आतें हैं.उससे ही हमें निराकार का बोध होता है.
उसी तरह उस निराकार आकाश में निराकार चेतन शक्ति भी है.उसी चेतन शक्ति से तो सूरज चाँद सितारे बादल टिके हुए हैं.वही चेतन शक्ति वही आकाश हमारे भीतर और बाहर है. गुब्बारे से गैस निकल जाये तो वह उड़ नहीं सकता ,इसी तरह हमारे भीतर के आकाश से भी अगर चेतन शक्ति निकल जाये तो हम निर्जीव हो जाते हैं.
ध्यान में हम उसी चेतन शक्ति को महसूस करतें है,जो हमारे सिर से लेकर पैर के अंगूठे तक फैली हुई है.उसको महसूस करते करते हम उस सम्पूर्ण चेतन शक्ति से जुड़ने लग जाते हैं जो हमारे बाहर भी है और हम सबके भीतर भी है

Friday, November 4, 2011

सोहनी का बचपन-भाग (१)


 सोहनी का  पहला अनुभव चार साल की उमर में चोट का- हाथ में मेहंदी लगा कर सुखाने के लिए गोल गोल तेजी से घूम रही थी ,और किसी से टक्कर खाकर गिरी ,माथे में लोहे की साबुनदानी चुभ गई जिसका निशान अभीतक है.
पहला दुखद अनुभव स्कूल का( भद्दा मजाक )जब सोहनी पांच साल की थी ,मास्टर(जी  ?)ने जानबूझ कर उसकी तख्ती के ऊपर( जिस पर अ आ इ ई उ ऊ लिख रही थी )साईकिल चला दी थी ,उसके पहिये से सारी लिखाई खराब हो गई थी.
पहला अनुभव स्टेज का -छह साल की उमर में स्कूल की स्टेज पर सुनाई थी यह कविता .
जिसने सूरज चाँद बनाया,जिसने तारों को चमकाया.
जिसने चिड़ियों को चहकाया ,जिसने सारा जगत बनाया.
हम उस ईश्वर के गुण गायें,उसे प्रेम से शीश झुकायें.
कक्षा के हर बच्चे को कुछ न कुछ सुनाना जरूरी था .यह कविता स्कूल की हिन्दी की किताब में थी, सुनाते समय वह बहुत नर्वस थी ,जल्दी-जल्दी बोल गई.
पहला झूठ सात साल की उमर में -स्कूल न जाने के लिए मम्मी को बोल दिया कि आज तो स्कूल में छुट्टी है .पर स्कूल से दायीं माँ लेने आ गई .वह  छुप गई पलंग के नीचे पर झूठ तो पकड़ा गया था .