गली में बच्चों के साथ मम्मी की चुन्नी लपेटकर कोई ड्रामा चल रहा था ,पापाजी ने देख लिया और आवाज देकर सोहनी को घर के अंदर बुलाया.पहले आराम से, फिर जोर देकर समझाया कि अच्छी लड़कियाँ गली में खड़े होकर ऐसे ड्रामे नही करती.
घर के अंदर थि़रक रही थी ,मम्मीजी ने समझाया अच्छी लड़कियाँ नाचा नही करतीं.
नुक्कड़ की दुकान से कुछ खरीदने के लिए जाने लगी तब पापाजी ने रोका और कहा कि भैया ले आएगा.अच्छी लडकियां दुकानों पर नही जाया करती.
मम्मीजी के साथ किसीके घर जा रही थी ,मम्मीजी ने समझाया कि अच्छी लड़कियाँ ऐसे तन कर नही चलती.
पापाजी के साथ दांत के दर्द के इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाने के लिए तैयार हो रही थी .उन्होंने मम्मीजी को कहा कि बड़ी हो रही है ,सलवार या पजामी पहनाओ इसे .और तब से फ्राक, स्कर्ट पहनना बंद हो गया.
सबको टाफी बाँट रही थी उसने बड़े भैया के दोस्त को भी दे दी.पापाजी ने समझाया कि अच्छी लड़कियाँ लड़कों से बात नही करती, उनसे दूर रहती हैं चाहे वह भैया का दोस्त ही क्यों न हो.
बच्चों को बड़ा करने के साथ साथ सोहनी के मम्मी पापा भी बड़े हो रहे थे. इसलिये धीरे धीरे उनकी भी अच्छी लड़कियों की परिभाषा में बदलाव आता गया.उनकी यह सोच बदल गई कि अच्छी लड़कियाँ नाचती नहीं या खरीदारी नही करती,या लड़कों से बात नही करती.
वक्त बदल जाता है और मान्यताएं भी बदल जाती है...अच्छी लड़की बनने के कई लाभ भी हुए ही होंगे... बहुत रोचक पोस्ट!
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