चाचीजी ने समझाया कि बच्चे अगर पाउडर क्रीम लगाते हैं तो उनकी स्किन जल्दी खराब हो जाती है.
पहला नदी स्नान -पड़ोस के बच्चों के साथ नदी पर नहाने गई.समय का कोई ख्याल नही था . घर आये तो देर हो गई थी. तब पापाजी ने टाइम देखना सिखाया.
पहला बुखार-करीब एक महीने तक मियादी ज्वर से पीड़ित रही.ठीक होने के बाद कमजोरी इतनी थी कि चलते समय पैर कांपते थे ,सर के सारे बाल झड़ने लग गए ,चेहरे पर फुन्सिंया निकल आयी थीं .तभी छठी क्लास में जाने के लिए प्रवेश परीक्षा भी देनी पड़ी,चेहरे के दानो को देखते हुए उसे सबसे अलग बैठाया गया.
पहला अनुभव घर से बाहर रहने का-पापाजी के साथ बुआजी को मिलने गई उन्होंने लाड से रोक लिया कि आज इसे यही छोड़ दो कल वो घर ले आयेंगी.,रुक तो गई पर शाम को अँधेरा होते ही घर जाने की जल्दी हो गई और फिर उनके देवर को घर पहुंचाना पड़ा.(तब पता नही था कि भविष्य में उसी देवर से शादी करके हमेशा के लिए आने वाली है .)
स्कूल की क्लास के बच्चों में कोई बहस छिड़ गई तो सोहनी से फैसला करवाया गया की सच क्या है क्योंकि क्लास का मानना था की वह झूठ नही बोलेगी.
उसके मजाक को भी सच मान लेते थे .कोई सोच नही सकता था कि वह भी मजाक कर सकती है.
उसकी चाचीजी किसी से मिलने जातीं तो साथ ले जातीं .वह वहाँ दूसरे बच्चों के साथ खेलती रहती उनका ख्याल था कि वहाँ जो भी बातें हो रही हैं वह नही सुनेगी , सुन भी ले तो घर आकर किसी को कुछ नहीं बतायेगी.और उनका ख्याल सही था .
बचपन में ही छोटी बहिन की डिफ्थीरिया बीमारी से मृत्यु देखी .माँ का दुःख दिन में देखा और रात के अँधेरे में पापा को दुःख से रोते हुए सुना .
पापाजी ने तब अपने को सम्भालने के लिए वशिष्ट योग पढ़ना शुरू किया.अध्यात्म में अपना मन लगाया .उन्ही दिनों घर में सुना कि मनुष्य केवल शरीर ही नही है आत्मा परमात्मा के बारे में सुना .जिज्ञासा हुई तो भागवत गीता के श्लोक पढ़ने शुरू किये.
और एक साल के अंदर ही उनके घर एक बेटी ने जन्म लिया सब मानते हैं कि वही बहिन वापिस आ गई दूसरा शरीर लेकर.
प्राईमरी स्कूल में तो वह हमेशा प्रथम आती थी पर बाद में दूसरे स्कूल में जाने पर प्रथम कभी नही आयी.उसे पढ़ाई में तेज समझा जाता था पर सच में ऐसा था नही.
कक्षा में चुप रहती थी इसलिये शोर होने पर टीचर पूरी क्लास को खड़ा रहने की सजा देतीं थीं पर उसे बैठा देती थीं एकबार तो ऐसा हुआ कि उसे कहा गया कि सबके हाथों पर एक एक बार स्केल मारे ,यानि वह सभी को सजा दे .इस पर सब बच्चे हंस पड़े .
इंटरवल में भी क्लास से बाहर खेलने नही जाती थी तो उसकी क्लास टीचर(मिस भूटानी) ने पूछा कि तुम्हारी कोई सहेली नही है क्या?हाँ में जवाब दिया तो उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी सहेली बना लो.
पहला नदी स्नान -पड़ोस के बच्चों के साथ नदी पर नहाने गई.समय का कोई ख्याल नही था . घर आये तो देर हो गई थी. तब पापाजी ने टाइम देखना सिखाया.
पहला बुखार-करीब एक महीने तक मियादी ज्वर से पीड़ित रही.ठीक होने के बाद कमजोरी इतनी थी कि चलते समय पैर कांपते थे ,सर के सारे बाल झड़ने लग गए ,चेहरे पर फुन्सिंया निकल आयी थीं .तभी छठी क्लास में जाने के लिए प्रवेश परीक्षा भी देनी पड़ी,चेहरे के दानो को देखते हुए उसे सबसे अलग बैठाया गया.
पहला अनुभव घर से बाहर रहने का-पापाजी के साथ बुआजी को मिलने गई उन्होंने लाड से रोक लिया कि आज इसे यही छोड़ दो कल वो घर ले आयेंगी.,रुक तो गई पर शाम को अँधेरा होते ही घर जाने की जल्दी हो गई और फिर उनके देवर को घर पहुंचाना पड़ा.(तब पता नही था कि भविष्य में उसी देवर से शादी करके हमेशा के लिए आने वाली है .)
स्कूल की क्लास के बच्चों में कोई बहस छिड़ गई तो सोहनी से फैसला करवाया गया की सच क्या है क्योंकि क्लास का मानना था की वह झूठ नही बोलेगी.
उसके मजाक को भी सच मान लेते थे .कोई सोच नही सकता था कि वह भी मजाक कर सकती है.
उसकी चाचीजी किसी से मिलने जातीं तो साथ ले जातीं .वह वहाँ दूसरे बच्चों के साथ खेलती रहती उनका ख्याल था कि वहाँ जो भी बातें हो रही हैं वह नही सुनेगी , सुन भी ले तो घर आकर किसी को कुछ नहीं बतायेगी.और उनका ख्याल सही था .
बचपन में ही छोटी बहिन की डिफ्थीरिया बीमारी से मृत्यु देखी .माँ का दुःख दिन में देखा और रात के अँधेरे में पापा को दुःख से रोते हुए सुना .
पापाजी ने तब अपने को सम्भालने के लिए वशिष्ट योग पढ़ना शुरू किया.अध्यात्म में अपना मन लगाया .उन्ही दिनों घर में सुना कि मनुष्य केवल शरीर ही नही है आत्मा परमात्मा के बारे में सुना .जिज्ञासा हुई तो भागवत गीता के श्लोक पढ़ने शुरू किये.
और एक साल के अंदर ही उनके घर एक बेटी ने जन्म लिया सब मानते हैं कि वही बहिन वापिस आ गई दूसरा शरीर लेकर.
प्राईमरी स्कूल में तो वह हमेशा प्रथम आती थी पर बाद में दूसरे स्कूल में जाने पर प्रथम कभी नही आयी.उसे पढ़ाई में तेज समझा जाता था पर सच में ऐसा था नही.
कक्षा में चुप रहती थी इसलिये शोर होने पर टीचर पूरी क्लास को खड़ा रहने की सजा देतीं थीं पर उसे बैठा देती थीं एकबार तो ऐसा हुआ कि उसे कहा गया कि सबके हाथों पर एक एक बार स्केल मारे ,यानि वह सभी को सजा दे .इस पर सब बच्चे हंस पड़े .
इंटरवल में भी क्लास से बाहर खेलने नही जाती थी तो उसकी क्लास टीचर(मिस भूटानी) ने पूछा कि तुम्हारी कोई सहेली नही है क्या?हाँ में जवाब दिया तो उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी सहेली बना लो.
बचपन की मासूमियत दिल को छू जाती है...और फिर ऐसा शांत बचपन...बच्चों को सजा तो सोहनी दे ही नहीं पाई होगी, रोचक अनुभव!
ReplyDeleteVery interesting
ReplyDelete