मालूम तो है कि सब अपने आप ही हो रहा है पर कामनाओं को पूरा करने के लिये मन फिर भी प्लानिंग तो करता ही है न.पर पिछले दिनों की हाल ही में हुई ऐसी कितनी ही घटनाएँ हैं जिनसे पता चलता है कि मैने जो भी किया है उसमे प्लानिंग का कोई मतलब नहीं था मुझे अवसर मिलता गया और मै करती गयी .जैसे २६ फरवरी को नए मल्टीप्लेक्स में सात खून माफ मूवी देखना ,फिर २८ को आनन्द स्पा में लंच करना ,४ मार्च को पार्लर से थ्रेडिंग करवाना ,५ मार्च को मधुबन होटल जाकर ज्यूलरी सेट खरीदना.और उसी दिन जट यमला , पगला
, दीवाना मूवी देखना ,वो भी ६ से ९ के शो में .सात और आठ को मेहमान नवाजी का अवसर भी मिला.सुबह ६ बजे अमेरिका की एक प्रियजन से स्काइप पर वीडियो काल भी हुई .लगभग रोज ही कुछ न कुछ ऐसा हुआ है जिसका दूर तक भी कोई ख्याल तक न था.
तो फिर प्लानिंग की जरूरत ही क्या है.असल में बात जरूरत की नहीं है.प्लानिंग करना भी तो सब हो रहा है के अंदर ही आता है.दिमाग का काम टेक्निकल बातों को सोचना है ,दिमाग है ही इसीलिये.ये सारे अवसर हमे मिल रहे हैं पर इनको हैण्डल करते समय दिमाग का यूज तो होता ही है ,जैसे कि पिक्चर देखने जाना है तो किस तरह से तैयार होना है , घर को बंद करना है.किस तरह से बैठना है थियेटर की सीट पर. मेहमानों का स्वागत कैसे करना है ,फोन पर बात कैसे करनी है.हमे मिलने वाले हर अवसर में बहुत से टेक्निकल काम जुड़े हुए हैं ,इस लियेमन को कामनाओं की प्लानिंग से मुक्त करो और देखो कि कौन कौन से अवसर मिल रहे हैं और मै उसको कैसे हैन्डल कर रही हूँ .कामना मुक्त रहने से हमारा दिल स्वाभाविक तौर पर खुश रहता है.
जीवन को पूरी तरह से स्वीकारना यानि कि धारा के साथ बहना उपरति है अर्थात हमारी कोई विशेष कामना नहीं है लेकिन जो अवसर मिल रहे हैं उनसे हमें आनंद के सिवा कुछ नहीं मिल रहा और वह आनंद हम पहले से ही महसूस कर रहे थे उन अवसरों के आने से जीवन थोड़ा रंगीन हो गया बस ! मुझे आपकी पोस्ट से कुछ ऐसी मनोदशा का आभास हो रहा है !
ReplyDeleteवाकई ऐसा ही तो है.
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