हमारे प्रति किसी का व्यवहार इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या हैं उसकी नजर में,और उसका व्यवहार निर्भर होता है उसके स्वभाव पर ,और उसका स्वभाव निर्भर होता है दूसरों के उसके प्रति जैसे विचार होते हैं .यानि सभी कुछ एक दूसरे पर कुछ इस तरह निर्भर होता है जैसे अंडा पहले या मुर्गी .क्योंकि हर कार्य का कोई कारण होता है और इस तरह एक जन्जीर सी बनी चली आती है.पर अगर हम दूसरों के द्वारा अपने बारे में की गई निंदा या प्रशंसा से अलग रहते हैं तो स्वयं को इस जंजीर से अलग कर लेते हैं फिर कार्य और कारण का हमारे उपर कोई असर नही होता .
मुझे लगता है कि हमारे प्रति किसी का व्यवहार किसी हद तक तो हमारे उसके प्रति व्यवहार पर भी निर्भर करता ही होगा, इस जंजीर से स्वयं को अलग करने के लिये, निंदा या प्रशंसा से अलग रहने के लिये भी तो हमें अपने व्यवहार को जांचना होगा...
ReplyDeleteजब निंदा और प्रशंसा से अलग हो गए तो हमारा व्यवहार अपने आप ही संतुलित हो जायेगा.
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