क्या समझा -द गुरु ऑफ जॉय -से
जीवन का उद्देश्य समझा .उद्देश्य है परहित के लिये काम करते रहना .अगर मैने बहुत सारा धन कमा लिया तो उससे क्या होगा ?किसी की तुलना में तो कम ही होगा.अगर मुझे कोई बहुत बड़ा पद मिल गया तो उससे क्या होगा.किसी की तुलना में तो कम ही होगा .यानि जीवन में कुछ भी पा लो ,किसी की तुलना में तो कम ही होगा .
तो क्या बहुत सारा धन पा लेने या बहुत बड़ी पदवी पाने को जीवन में सफल होना कह सकते हैं .
पर अगर मैने किसी को निःस्वार्थ भाव से कुछ खाने को दिया या कुछ भी किया तो उसकी कोई तुलना नही होती किसी से .देते रहना, करते रहना यही जिंदगी है ,अगर इसे निकाल दो जिंदगी से तो बचा क्या?बस खाना पीना और सो जाना.
खुशी तो तब मिलती है जब हम प्यार से किसी को कुछ खिलातें हैं ,कुछ उपहार देते हैं,या दूसरा हमे कुछ देता है या हमारे लिये कुछ करता हैं .
हम दूसरों के लिये करें और दूसरे हमारे लिये करें ,यही जिंदगी है. बस यही समझा मैने .
बहुत सुंदर विचार ! सचमुच जीवन में यदि प्रेम का लेन-देन न हो तो जीवन कितना सूना होगा, सेवा ही साध्य है प्रेम से की गयी सेवा !
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