सब चाहते हैं खुश होना पर वही खुश रह पाता है जिसे इसका फार्मूला पता हो और फार्मूला बिलकुल साधारण है .
हमे सिर्फ इतना करना है कि हम अपनी किसी भी जिम्मेदारी को बोझ न समझें ,क्योंकि जब तक हमारी आवश्यक्तायें हैं जिम्मेदारी तो रहेगी ही. जैसे कि आप सबने सुना होगा कि एक छोटी सी बच्ची अपने नन्हे से भाई को उठा कर चल रही थी तो किसी ने कहा कि इसे उतार दो तुम थक जाओगी ,तो उसने जवाब दिया कि नही थकूंगी,ये मेरा भाई है. इसका मतलब हुआ कि जब हम प्रेम के वशीभूत होकर कोई जिम्मेदारी वहन करते हैं तो हमे बोझ नही लगतींपर ऐसा तो तभी हो सकता है जब हम अपने पराये का भेदभाव छोड़ दें .होली का त्यौहार यही सन्देश लेकर तो आता है कि सभी को अपने रंग में रंग लो, सबके साथ एक हो जाओ,रंग भले ही अलग अलग हो पर सब अपनी अपनी पहचान भूल कर एक से रंग बिरंगे हो जायें.पर हम बेहिचक उसीके रंग में रंगने को तैयार होते हैं जहाँ हमारा भरोसा होता है कि गलत रंग नही लगाया जायेगा.इंसान पर भरोसा नहीं हो सकता पर ईश्वर पर तो हो सकता है न. नही होता तो शुरु प्रार्थना से करो ,प्रार्थना मांगने के लिये नहीं ,जो कुछ उसने दिया उसके लिये उसे धन्यवाद देने के लिये करो.और ऐसा तभी कर पाएंगे जब थोड़ी देर मौन में बैठेगें ,चुप होकर बैठेगें.
बहुत सुंदर विचार और सरल सा उपाय, अगर अपना लें कोई गम न सताए !
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