मैने देखा जोलीग्रांट एयरपोर्ट जाते समय कि किस तरह जंगल की तरफ बंदूक का निशाना लगाये पहरेदार बैठा था ऊंची इमारत पर ,जंगल का हरा भरा नजारा मुझे बहुत अच्छा लगा पर अगले ही पल समझ में आया कि शायद ऐसा लगाव इस पहरेदार को रहा होगा पिछ्ले जन्म में सो अब लगातार उसे इस हरियाली को देखते रहना है तो क्या अब भी उसे आनन्द मिलता होगा .
कोई भी सुख जो हमारी इन्द्रियों के लिए है ,ज्यादा देर तक सुख नही दे सकता तो फिर ऐसे सुख की लालसा ही क्यों की जाये ,वो तो बंधन हो जाएगा.
तो फिर चाहिए क्या,मकसद क्या है इस जीवन का ,कुछ भी नही चाहिए तो ज़िंदा क्यों हैं ,मकसद है अपने स्वरूप को पाना ,हमारा स्वरूप आनन्द ही है ,ऐसा आनन्द किसी का मोहताज नही है और उसको पाने की कीमत है हम स्वयं ,खुद को खोकर ही वो मिलता है.
सुंदर बोध देती पंक्तियाँ..जो आनंद किसी बाहरी वस्तु पर नहीं टिका है वही अपना है..
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