देवदास जी के साथ नरेंद्र स्वामी जी से मिलने ओशो आश्रम चले गए.उनसे सवाल किया गया कि हम कर्ता नही हैं तो फिर कर्मों का फल हमे कैसे मिलता है .स्वामीजी ने बताया कि अभी हम इस ज्ञान तक पहुंचे ही कहाँ हैं कि हम कर्ता नही हैं.ध्यान करो पहले ,जब अंदर से अनुभव में आजायेगा कि हम कर्ता नही हैं तो कर्मों के फल की बात भी खत्म हो जायेगी.
आज के सत्संग में फिर से सुना कि मै कर्ता नही हूँ,उदाहरण के रूप में बताया कि हम कभी गुस्सा कर बैठते हैं और बाद में सोचने लगते हैं कि ऐसा कैसे हो गया.मै तो गुस्सा करती नही हूँ फिर मुझे गुस्सा कैसे आ गया.उससे पता चलता है कि हम कर्ता है ही नही ,कर्ता ने गुस्सा प्रकट करना था ,कर दिया ,ऐसा ही उदाहरण पहले योगानन्द जी की आत्म कथा में पढ़ चुकी हूँ.आज का पूरा दिन इसी भाव को लेकर चलूंगी ,अनुभव भी यही कहता है कि हम कर्ता नही हैं .
ReplyDeleteसही कहा है आपने, जो कर्ता है भोक्ता भी वही है,यदि कोई गुस्सा करके पछता रहा है तो भोक्ता भी बन गया. निज स्वरूप का बोध हुए बिना कर्ताभाव नहीं मिटता.