सोहम सोहम जपते जपते जबसे ये पता चला है कि ईश्वर और कोई नही हम खुद ही हैं ,तब से मुश्किल हो गयी है अब जो भी करती हूँ उसके लिए ऐसा नही कह सकती कि ईश्वर ने ऐसा क्यों किया ,क्योंकि ईश्वर मै खुद ही हूँ.
चाय के साथ दही खाई ,चाय दो बार पी ली तो अब ये तो नही कह सकते कि ईश्वर की मर्जी ,मर्जी तो खुद की थी ,खुदा की नही ,खुद ही तो ईश्वर हूँ पर ईश्वर इतना कमजोर कैसे जो अपने खाने पीने की आदतों में भी सुधार नही कर सकता . अगर कहूँ कि वो तो गीता है ,उसका अहंकार ,उसकी इगो है तो ईश्वर कहाँ छुपा हुआ है उसे कौन सामने लायेगा उसे तो भूख प्यास भी नही लगती.
क्योंकि असल में तो वो सिर्फ देखता और जानता है ,करता कुछ नही ,उसने देखा कि दही के साथ चाय पी जा रही है और वो जान गयी कि ऐसा है ,अब गीता जगी हुई थी इसलिए वो भी देख पाई ,जान पाई ,अब गीता की मर्जी है जैसा चाहे करे आजादी है उसको ,पर असल में गीता की सत्ता मिथ्या है ,अभी है और अभी नही हो जायेगी उसकी असल सत्ता तो बिना रूप और नाम की है ,उसे चाय से कोई मतलब नही ,दही से कोई मतलब नही .तो गीता क्या करे ,गीता बस जागी रहे ,जगने से उसे दिख जाता है कि चाय के साथ दही नही चलती और सच में वो जग गयी अब वो चाय पीती है पर खालिस चाय ,दूध ,चीनी भी नही डालती,ऐसी चाय नुकसान नही करती ,ऐसा उसने पढ़ा ,सुना है और ऐसा करके उसे ठीक लग रहा है.
चाय के साथ दही खाई ,चाय दो बार पी ली तो अब ये तो नही कह सकते कि ईश्वर की मर्जी ,मर्जी तो खुद की थी ,खुदा की नही ,खुद ही तो ईश्वर हूँ पर ईश्वर इतना कमजोर कैसे जो अपने खाने पीने की आदतों में भी सुधार नही कर सकता . अगर कहूँ कि वो तो गीता है ,उसका अहंकार ,उसकी इगो है तो ईश्वर कहाँ छुपा हुआ है उसे कौन सामने लायेगा उसे तो भूख प्यास भी नही लगती.
क्योंकि असल में तो वो सिर्फ देखता और जानता है ,करता कुछ नही ,उसने देखा कि दही के साथ चाय पी जा रही है और वो जान गयी कि ऐसा है ,अब गीता जगी हुई थी इसलिए वो भी देख पाई ,जान पाई ,अब गीता की मर्जी है जैसा चाहे करे आजादी है उसको ,पर असल में गीता की सत्ता मिथ्या है ,अभी है और अभी नही हो जायेगी उसकी असल सत्ता तो बिना रूप और नाम की है ,उसे चाय से कोई मतलब नही ,दही से कोई मतलब नही .तो गीता क्या करे ,गीता बस जागी रहे ,जगने से उसे दिख जाता है कि चाय के साथ दही नही चलती और सच में वो जग गयी अब वो चाय पीती है पर खालिस चाय ,दूध ,चीनी भी नही डालती,ऐसी चाय नुकसान नही करती ,ऐसा उसने पढ़ा ,सुना है और ऐसा करके उसे ठीक लग रहा है.
हर साधक का वास्ता चाय से कभी न कभी पड़ता ही है
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