सुबह उठते ही आजकल पुराने सुने हुए इस भजन की लाईन मन ही मन गूंज जाती है .....सब भार तुम्हारे चरणों में ....सब भार तुम्हारे चरणों में....या फिर ....सोच्याँ सोच न होई ,जे सोच्ची लख वार....और मन फूल जैसा हल्का होता जाता है,कोई सोच सकता है कि सोचने की बात ही क्या है आखिर .बात तो ठीक है पर हफ्ते भर के लिए घर की नार्मल व्यवस्था से एक बड़ी व्यवस्था में बदलना भी एक प्रक्रिया है उसे कैसे सफल करना है ,इसके प्लान तो मन ही मन बनते ही हैं फिर वो सारा भार प्रभु के चरणों में छोड़ना ही पड़ता है सो जब तब गुनगुनाहट निकल पड़ती है ....सब भार तुम्हारे चरणों में ...
Sunday, April 1, 2018
बस तू ही तू
सुबह उठते ही आजकल पुराने सुने हुए इस भजन की लाईन मन ही मन गूंज जाती है .....सब भार तुम्हारे चरणों में ....सब भार तुम्हारे चरणों में....या फिर ....सोच्याँ सोच न होई ,जे सोच्ची लख वार....और मन फूल जैसा हल्का होता जाता है,कोई सोच सकता है कि सोचने की बात ही क्या है आखिर .बात तो ठीक है पर हफ्ते भर के लिए घर की नार्मल व्यवस्था से एक बड़ी व्यवस्था में बदलना भी एक प्रक्रिया है उसे कैसे सफल करना है ,इसके प्लान तो मन ही मन बनते ही हैं फिर वो सारा भार प्रभु के चरणों में छोड़ना ही पड़ता है सो जब तब गुनगुनाहट निकल पड़ती है ....सब भार तुम्हारे चरणों में ...
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सही बात है जो करना है सो करना है और ज्यादा सोच-विचार करने में जो ऊर्जा व्यर्थ जाती है उसे करने में ही लगा देना है.
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