शादी को अभी दो महीने ही हुए थे और सोहनी फर वाला कार्डिगन पहन कर खाना पका रही थी .स्टोप की फ्लेम से कार्डिगन के बाजू के फर ने आग पकड़ ली जो तेजी से कंधे से होते हुए खुले बालों तक जा पहुंची और उसी तेजी से उसने कार्डिगन को उतार फेंका ,मोड़तोड़ कर आग बुझा दी. बस जरा से बाल ही झुलसे थे .कुछ सेकेंड्स साँस लेते हुए समझने में लगाये कि ये हुआ क्या आखिर .पतिदेव ऑफ़िस गये हुए थे और सासुमां घर के बगीचे में पड़ोसन से बतियाँ रही थीं.जब अंदर आयीं तो उन्हें पहले तो स्वेटर दिखाया, खुद भी तभी देखा कि कितना जला है और फिर बताया कि कैसे जला ,सुनते ही वह तो यह सोचकर घबरा गयीं कि खुदा ना खास्ता अगर सोहनी को सच मे आग से कुछ नुक्सान पहुंचा होता तो पुलिस तो उन्हें पूछ -पूछ कर तंग कर डालती.
Saturday, November 17, 2012
Tuesday, June 19, 2012
मुम्बई दर्शन
मुंबई दर्शन के समय सोहनी और उसका हमसफर जुहू बीच गये थे , बैंच पर बैठकर ऊपर और ऊपर उठती हुई लहरों को देखने लगे जो कि आसपास के लोगों को भिगो रही थीं अपनी बौछारों से.वे जरा सी दूरी पर थे, दो विदेशी पर्यटक फोटोग्राफी कर रहे थे .उन्हे समुन्दर के नजदीक जाकर फोटो शूट करने की कोशिश करते हुए देखा तो सोहनी ने कहा कि अभी पानी की लहर आयेगी और इन्हें पूरा नहला देगी .इतना कहना भर था कि ऐसी जोरदार लहर उठी कि बैंच तक आकर उन दोनों को नहलाते हुए वापिस चली गई ,लहरों की इस शरारत पर वे खिलखिला उठे तो दोनों पर्यटकों का ध्यान उनकी तरफ गया और वे पास आकर बोले- क्या वे उनके साथ अपनी फोटो शूट कर सकते हैं साथ ही कहा कि फोटो बन जाने पर वे उसकी एक -एक कापी उनके पते पर पोस्ट भी कर देंगे. सोहनी लोग भला क्यों मना करते, बिना कोशिश उन्हें एक यादगार मिलने जा रही थी. उन पर्यटकों ने फौरन उनकी फोटो ली और वायदे के मुताबिक उनके अहमदाबाद के पते पर पोस्ट भी कर दीं .वे दो फोटो भीगे हुए बालों और कपड़ों वाली उनकी पहली रंगीन फोटो थी जो अभी तक सोहनी ने सम्भाल कर रखी है.
Friday, June 8, 2012
ऐसा भी होता है -पार्ट २
जब भी सोहनी बच्चों का चकरी वाला झूला देखती है तो याद आ जाते हैं उसे वो पल जब वह भी बच्चों को लेकर झूले में बैठी थी और सबसे ऊंचाई पर पहुँच कर झूला रुक गया था, कुछ खराबी आ गई थी उसमे ,गोदी में दो साल का बेटा और साथ में दो नन्ही बेटियाँ .दिल धड़कने लगा ,कहीं कोई बच्चा हाथ की पकड़ से छूट न जाये .जल्दी ही खराबी ठीक कर ली गई और वे सब नीचे आ गये.साँस में साँस आई. पर वह दिन और आज का दिन... अभी तक उसने हिम्मत नही की कि फिर कभी उस तरह के झूले का आनंद लिया जाये. पर दोनों बेटियों पर असर ये हुआ कि उन्हें जरा भी डर नही लगता ऊंचाई से. बंगी जम्पिंग हो या रॉक क्लाईमिंग ,सब करने को तैयार रहती हैं वे दोनों.
Wednesday, May 30, 2012
ऐसा भी होता है
शादी के पहले साल ही सोहनी के हमसफर ने दुबई की जॉब के लिये एप्लाई किया था. इंटरव्यू के लिये मुम्बई जाने लगे तो वह भी मुम्बई दर्शन के लिये साथ चली गई .दादर स्टेशन पर वे उतरे थे .उसे सामान के साथ प्लेटफार्म के बेंच पर बैठने को कहा.उन्हें दूर के किसी रिश्तेदार के घर ठहरना था ,फोन करने के लिये हमसफर कहीं चला गया .तभी दो लडकियाँ उसके पास आकर पूछने लगीं कि कहाँ जाना है ,कहाँ ठहरोगी .उन्हें लगा कि वह घर से भाग कर मुम्बई आयी है ,किसी होटल का पता बताने लगीं जहाँ वे दोनों ठहरी थीं पर तभी उसका हमसफर आ गया ,जैसे ही पता चला कि अकेली नही है तो एकदम से नौ दो ग्यारह हो गयीं .
Friday, May 25, 2012
ऐसे संयोग भी होते हैं
शादी के बाद सोहनी पहली बार जब अहमदाबाद रहने गई ट्रेन से हमसफर के साथ तो उसी डिब्बे में एक ब्रह्म कुमारी भी थी. उन्होंने ध्यान की महिमा बताई थी कि किस तरह धीरे धीरे अभ्यास करते हुए लगातार तीन घंटे एक ही आसन में सीधे बैठना सम्भव हो जाता है.और उस समय ट्रेन में पढ़ने के लिये उसने प्लेटफार्म से किताब खरीदी तो वह ओशो की कोई किताब थी.
अब संयोग ऐसा हुआ है कि वे देहरादून में रहते हैं रिटायरमेंट के बाद तो उसके घर से कुछ ही दूरी पर ब्रह्मकुमारी और ओशो दोनों के आश्रम हैं और वे समय समय पर दोनों ही जगह जाते रहते हैं.
अब संयोग ऐसा हुआ है कि वे देहरादून में रहते हैं रिटायरमेंट के बाद तो उसके घर से कुछ ही दूरी पर ब्रह्मकुमारी और ओशो दोनों के आश्रम हैं और वे समय समय पर दोनों ही जगह जाते रहते हैं.
Friday, May 18, 2012
सोहनी के बच्चे और भागमभाग डाक्टर के पास
सोहनी के बच्चे और भागमभाग डाक्टर के पास
बड़ी बेटी जब दो ढाई साल की थी तो उसका हाथ गर्म पानी से झुलस गया था.सुबह के समय नहाने के लिये पानी को पतीले में गर्म किया और बाल्टी के ठंडे पानी में मिक्स करने के लिये जैसे ही डालने लगी उसने अनजाने में हाथ आगे कर दिया .फौरन उसे लेकर उसके मामाजी के साथ डाक्टर के पास भागना पड़ा.
छोटी बेटी जब ग्यारह या बारह साल की थी तो रात सोने के समय उसकी आँख में कुछ चला गया , फौरन नूर होस्पिटल डाक्टर के पास भागना पड़ा.जो उसकी बिल्डिंग के पास ही था.स्वयं ही ले गई थी.
बड़ा बेटा अभी छह,सात महीने का ही था किअचानक उसने साँस रोक ली. शाम का समय था फौरन उसके नानाजी ने उसे इस तरह पकड़ा कि सिर नीचे की तरफ रहे और डाक्टर के पास भागे .डाक्टर उसी कम्पाउंड में ही था.इमरजेंसी सहायता मिल गई.बाद में सरकारी अस्पताल के काबिल डाक्टर से इलाज चला.नानाजी ने इलाज करवाया था.
छोटा बेटा दो साल का रहा होगा जब उसने नाक में मोती फंसा लिया ,प्राइवेट अस्पताल में ले गये .डाक्टर उसे अंदर ले गया हमारा जाना मना था वहाँ ,पांच दस मिनट में ले आया कि हमारे बस का नही है .फिर दूसरे क्लीनिक में ले गये वहाँ नम्बर ही नही आ रहा था फिर सरकारी अस्पताल ले गये वहाँ डाक्टर्स की मीटिंग चल रही थी पर इंतजार के सिवा हमारे पास कोई चारा ही नही था ,पन्द्रह बीस मिनट में सर्जन डाक्टर फ्री हुआ उसने उसको गोदी में लिया और हमारे सामने ही एक क्लिप जैसे औजार से सेकंड्स में मोती निकाल बाहर किया.हमारी जान में जान आयी.इस समय उसके छोटे ताऊजी साथ में थे.
उसे ही एक बार और इमरजेंसी में ले जाना पड़ा ,जब उसने चार साल की उमर में सीढ़ियों से कूद कर पैर के तलुवे में फ्रेक्चर कर लिया था.इस समय बड़े ताऊ जी साथ में थे.
बड़ी बेटी जब दो ढाई साल की थी तो उसका हाथ गर्म पानी से झुलस गया था.सुबह के समय नहाने के लिये पानी को पतीले में गर्म किया और बाल्टी के ठंडे पानी में मिक्स करने के लिये जैसे ही डालने लगी उसने अनजाने में हाथ आगे कर दिया .फौरन उसे लेकर उसके मामाजी के साथ डाक्टर के पास भागना पड़ा.
छोटी बेटी जब ग्यारह या बारह साल की थी तो रात सोने के समय उसकी आँख में कुछ चला गया , फौरन नूर होस्पिटल डाक्टर के पास भागना पड़ा.जो उसकी बिल्डिंग के पास ही था.स्वयं ही ले गई थी.
बड़ा बेटा अभी छह,सात महीने का ही था किअचानक उसने साँस रोक ली. शाम का समय था फौरन उसके नानाजी ने उसे इस तरह पकड़ा कि सिर नीचे की तरफ रहे और डाक्टर के पास भागे .डाक्टर उसी कम्पाउंड में ही था.इमरजेंसी सहायता मिल गई.बाद में सरकारी अस्पताल के काबिल डाक्टर से इलाज चला.नानाजी ने इलाज करवाया था.
छोटा बेटा दो साल का रहा होगा जब उसने नाक में मोती फंसा लिया ,प्राइवेट अस्पताल में ले गये .डाक्टर उसे अंदर ले गया हमारा जाना मना था वहाँ ,पांच दस मिनट में ले आया कि हमारे बस का नही है .फिर दूसरे क्लीनिक में ले गये वहाँ नम्बर ही नही आ रहा था फिर सरकारी अस्पताल ले गये वहाँ डाक्टर्स की मीटिंग चल रही थी पर इंतजार के सिवा हमारे पास कोई चारा ही नही था ,पन्द्रह बीस मिनट में सर्जन डाक्टर फ्री हुआ उसने उसको गोदी में लिया और हमारे सामने ही एक क्लिप जैसे औजार से सेकंड्स में मोती निकाल बाहर किया.हमारी जान में जान आयी.इस समय उसके छोटे ताऊजी साथ में थे.
उसे ही एक बार और इमरजेंसी में ले जाना पड़ा ,जब उसने चार साल की उमर में सीढ़ियों से कूद कर पैर के तलुवे में फ्रेक्चर कर लिया था.इस समय बड़े ताऊ जी साथ में थे.
Saturday, May 12, 2012
सोहनी के माँ बनने की कहानी सोहनी की जुबानी
अब मैं दुबई में थी और दुबई आने के दसवें महीने ही एक बेटी की माँ बन गई थी.पर माँ बनना कोई आसान बात नही रही, तबियत बिगड़ गई थी क्योंकि एक दिन कुछ ज्यादा ही पैदल घूमना हो गया. एमरजेंसी में हॉस्पिटल भागना पड़ा तीन दिन एडमिट रही .डॉक्टर ने बेड रेस्ट बता दिया. घर आने पर देखभाल कौन करता ,हमसफर की ड्यूटी तो समुन्द्र मे रिग पर होती थी एक हफ्ते के बाद एक हफ्ते के लिये घर आते थे .तबियत बिगड़ने पर इन्होने तय किया कि मै मायके मे रहूँ तो तीन महीनों के लिये इन्होने मुझे इंडिया मे छोड़ दिया .मेरे मम्मी पापा तो चाहते थे कि डिलीवरी वहीं हो पर मुझे इंडिया के हास्पिटल्स मे जाने मे हिचक होती थी ,दुबई के सरकारी अस्पताल मे एडमिट हो चुकी थी और अनुभव बहुत अच्छा रहा था बिल्कुल फ्री और बेहतर इलाज ,घरके किसी सदस्य को वहाँ रहने या खाना पहुँचाने की भी जरूरत नही.अच्छा खाना, साफ कपड़े ,फ्रेन्डली सिस्टर्स और क्या चाहिए. तो मै जिद करके सातवें महीने वापिस दुबई पहुँच गई.सही समय पर मैने एक बेटी को जन्म दिया.तीसरे दिन ये घर ले आये थे हमारे स्वागत के लिए बेडरूम सजा हुआ था मेरे बिस्तर पर सुंदर सी तीन डाल्स भी रखी हुई थीं ,जैसे इन्हें पता था कि मुझे और तीन बार माँ बनना है.या कि इस नन्ही सी जान के लिए तीन और साथी आने वाले हैं और आने वाले कुछ ही वर्षों में ऐसा हो भी गया.
मेरी सेहत परफेक्ट थी ,घर के नार्मल काम आते ही करने शुरू कर दिये . पर बच्चे को कैसे पालना है ये मुझे सिखाया एक पाकिस्तानी डाक्टर ने .हुआ यह कि पहले हफ्ते ही बेटी को फीवर हो गया डाक्टर के पास ले गई सबसे पहले उसने उसका कम्बल हटाने को कहा, बताया कि कम्बल की गर्मी तो उसे और ज्यादा परेशानी देगी. कैसे उसे एक पतली मलमल की चादर मे रैप करना है, करके सिखाया. उसकी नाल पक गई थी उसे जलाकर ठीक किया . दूध की बोतल को पानी मे कैसे उबाल कर साफ करना है बताया.मुझे तो मालूम ही नही था कि बोतल उबालनी भी होती है. पहली बात तो यही पूछी कि अभी से बोतल का दूध दे ही क्यों रही हूँ, मैने कहा कि क्योंकि मेरा दूध बहुत पतला पानी की तरह है तो एक बार तो सुनते ही डाक्टर को भी और सिस्टर को भी हंसी आ गई बोली कि क्या तुम गाय भैंस हो जो गाढ़ा दूध आएगा, अरे ,माँ का दूध पानी सा पतला ही होता है .बच्चे के हाजमे के लिए ऐसा ही दूध चाहिए,पूछा कि क्या मुझे घर मे कोई बताने वाला नही है तो मैने कहा कि मै तो अकेले ही रहती हूँ तो डाक्टर ने तसल्ली दी कि कोई बात नही जो भी पूछना हो उनसे पूछ सकती हूँ.ख़ैर जब तक बेटी दो महीने की हुई ,मेरी सासु माँ का वीसा भी लग गया और वह हमारे साथ रहने दुबई आ गयीं.
मेरी सेहत परफेक्ट थी ,घर के नार्मल काम आते ही करने शुरू कर दिये . पर बच्चे को कैसे पालना है ये मुझे सिखाया एक पाकिस्तानी डाक्टर ने .हुआ यह कि पहले हफ्ते ही बेटी को फीवर हो गया डाक्टर के पास ले गई सबसे पहले उसने उसका कम्बल हटाने को कहा, बताया कि कम्बल की गर्मी तो उसे और ज्यादा परेशानी देगी. कैसे उसे एक पतली मलमल की चादर मे रैप करना है, करके सिखाया. उसकी नाल पक गई थी उसे जलाकर ठीक किया . दूध की बोतल को पानी मे कैसे उबाल कर साफ करना है बताया.मुझे तो मालूम ही नही था कि बोतल उबालनी भी होती है. पहली बात तो यही पूछी कि अभी से बोतल का दूध दे ही क्यों रही हूँ, मैने कहा कि क्योंकि मेरा दूध बहुत पतला पानी की तरह है तो एक बार तो सुनते ही डाक्टर को भी और सिस्टर को भी हंसी आ गई बोली कि क्या तुम गाय भैंस हो जो गाढ़ा दूध आएगा, अरे ,माँ का दूध पानी सा पतला ही होता है .बच्चे के हाजमे के लिए ऐसा ही दूध चाहिए,पूछा कि क्या मुझे घर मे कोई बताने वाला नही है तो मैने कहा कि मै तो अकेले ही रहती हूँ तो डाक्टर ने तसल्ली दी कि कोई बात नही जो भी पूछना हो उनसे पूछ सकती हूँ.ख़ैर जब तक बेटी दो महीने की हुई ,मेरी सासु माँ का वीसा भी लग गया और वह हमारे साथ रहने दुबई आ गयीं.
Friday, May 4, 2012
देवरहा बाबा जी का प्रासाद
बनारस में हम सब परिवार के सदस्य नाव से रामनगर का किला देख कर आरहे थे ,साथ वाली नाव से हमें देवरहा बाबाजी का बर्फी का प्रसाद मिला .किसी एक ने कहा ,पता नही कैसा प्रसाद है हम नही खायेंगे ,कम से कम एक सदस्य तो न खाए ताकि कुछ गड़बड़ हो तो बताने लायक कोई तो हो न.और उसी समय नाविक के हाथों से चप्पू पानी में गिर गया उठाने के लिए वह भी कूद गया .चप्पू आगे-आगे और नाविक पीछे पीछे ,पर चप्पू उसके हाथ नही लग रहा था. इतने में हवा से हमारी नाव हिचकोले खाने लगी तैरना किसी को आता नही था.जान जोखिम में थी.फिर किसी दूसरे ने कहा कि प्रसाद नही खाया न, अश्रद्धा का परिणाम है.और हम सबने फौरन प्रसाद खा लिया .जान तो वैसे भी जाती. उसी समय दूसरी नाव से भी मदद के लिए कोई कूदा नदी में, और चप्पू पकड़ कर हमारी नाव के नाविक को दे दिया तैरते हुए वह जल्दी ही नाव में चढ़ गया इससे पहले कि हमारी नाव उलटती उसने कंट्रोल कर लिया .और हम सही सलामत किनारे पहूँच गये.उस प्रसाद का स्वाद अभी भी याद है.
Monday, April 30, 2012
राम जाने ,कौन थे वे लोग
सर्दियों की आधी रात का समय, दो बजे होंगे शायद.हम सब घर के सदस्य अपनी अपनी रजाइयों में दुबके हुए गहरी नींद में थे.दरवाजे पर थाप पड़ी.
हेड पोस्ट ऑफिस से जुड़ा हुआ था हमारा घर ,पापाजी पोस्टमास्टर थे.उन्होंने आवाज सुनकर दरवाजा खोला .अँधेरे में किसी ऊँची लम्बी आकृति ने कहा कि हमारी गाड़ी खराब हो गई है,रात रुकने के लिए जगह चाहिए .उसके हाथ में बंदूक भी थी.
पोस्ट ऑफिस कम्पाउंड के बाहर मेनगेट के सामने देखा तो लम्बे खुले हुए बालों के साथ और भी ऊँची कद काठी के लोग दिखे .एक नजर में लम्बे बालों से लगा कि लेडीज भी हैं साथ में . हल्का सा अंदेशा हुआ कि कहीं ये डाकू तो नही,पर वे तो सहायता मांग रहे थे .उनका इरादा पोस्ट ऑफिस लूटने का था या नही, कौन बता सकता है.
पापाजी ने कहा ,ठीक है इंतजाम हो जायगा और अंदर आकर हम सब भाई बहिनों को जगाया और अपने अपने बिस्तर खाली करने को कहा ,टोटल पांच लोग थे. . हमारे पास बड़े भाई का एक बिस्तर एक्स्ट्रा था . क्योंकि वह बाहर पढ़ रहे थे उन दिनों .हम सब आठ सदस्य तीन बिस्तरों में एक साथ सोते जागते रहे क्योंकि सब के मन में खलबली मच चुकी थी कि आखिर ये लोग हैं कौन ?
तब दादी जी भी हमारे साथ थी, वह वाहे गुरु का जप करती रहीं . और पापाजी रात भर उनके दरवाजे के बाहर चक्कर लगाते रहे थे.सुबह होते ही वे जग गए थे और चले गए. लम्बे बालों का राज खुला था उनके सरदार होने का पता चलने पर, उन्होंने आधी रात को बाल खोल लिए होंगे दिन भर बांधे रखकर, शायद रोज ही रात को खोलते हों.
अभी तक मेरे मन में ख्याल आता है कि क्या वे सचमुच डाकू ही थे पर पापाजी का सद्व्यवहार देख कर उन्होंने कुछ गड़बड़ नही की.
हेड पोस्ट ऑफिस से जुड़ा हुआ था हमारा घर ,पापाजी पोस्टमास्टर थे.उन्होंने आवाज सुनकर दरवाजा खोला .अँधेरे में किसी ऊँची लम्बी आकृति ने कहा कि हमारी गाड़ी खराब हो गई है,रात रुकने के लिए जगह चाहिए .उसके हाथ में बंदूक भी थी.
पोस्ट ऑफिस कम्पाउंड के बाहर मेनगेट के सामने देखा तो लम्बे खुले हुए बालों के साथ और भी ऊँची कद काठी के लोग दिखे .एक नजर में लम्बे बालों से लगा कि लेडीज भी हैं साथ में . हल्का सा अंदेशा हुआ कि कहीं ये डाकू तो नही,पर वे तो सहायता मांग रहे थे .उनका इरादा पोस्ट ऑफिस लूटने का था या नही, कौन बता सकता है.
पापाजी ने कहा ,ठीक है इंतजाम हो जायगा और अंदर आकर हम सब भाई बहिनों को जगाया और अपने अपने बिस्तर खाली करने को कहा ,टोटल पांच लोग थे. . हमारे पास बड़े भाई का एक बिस्तर एक्स्ट्रा था . क्योंकि वह बाहर पढ़ रहे थे उन दिनों .हम सब आठ सदस्य तीन बिस्तरों में एक साथ सोते जागते रहे क्योंकि सब के मन में खलबली मच चुकी थी कि आखिर ये लोग हैं कौन ?
तब दादी जी भी हमारे साथ थी, वह वाहे गुरु का जप करती रहीं . और पापाजी रात भर उनके दरवाजे के बाहर चक्कर लगाते रहे थे.सुबह होते ही वे जग गए थे और चले गए. लम्बे बालों का राज खुला था उनके सरदार होने का पता चलने पर, उन्होंने आधी रात को बाल खोल लिए होंगे दिन भर बांधे रखकर, शायद रोज ही रात को खोलते हों.
अभी तक मेरे मन में ख्याल आता है कि क्या वे सचमुच डाकू ही थे पर पापाजी का सद्व्यवहार देख कर उन्होंने कुछ गड़बड़ नही की.
Friday, April 20, 2012
पैदल चलने की जिद और हमसफर का ड्राइविंग टेस्ट
आबुधाबी में सोहनी शेरटन होटल से हिल्टन होटल तक की दौड़ के बारे में अक्सर न्यूज पेपर में पढ़ती थी ,उसका मन हुआ कि वह भी दौड़ लगाये.और बिना अपना स्टेमना बनाये यानि बिना किसी प्रेक्टिस के एक दिन सुबह वह चल पड़ी घर से ,उसे अभी तक यह भी नही पता कि कितने किलोमीटर चली होगी ,किसी तरह पहुंच तो गई.(अकेली नही थी साथ में पड़ोसन को ले गई थी.पर फर्क इतना था कि पड़ोसन सुबह की सैर पर पहले भी जाया करती थी,यानि उसे अभ्यास था चलने का.)वापिसी में टैक्सी कर ली थी.
दिन भर कुछ पता नही चला पर शाम होते -होते लगा कि शरीर में जरा भी हिम्मत नही है,लेट गई बिस्तर पर और उसके हमसफर को डाक्टर को घर बुलाना पड़ा.उसने शायद डीहाईडरेशन ,थकावट बताया और ताकत की दवा दे दी.
अगले दिन हमसफर को पोस्ट ऑफिस जाना था ,घर से ज्यादा दूर नही था बच्चे स्कूल गए थे सो घर में अकेले रहने से अच्छा लगा कि वह भी साथ चली जाये ,चली तो गयी पर वहाँ जब खड़ा होना पड़ा तो लगा कि हिम्मत टूट रही है, और वहीं सीड़ियों पर झटके से बैठ गई ,हमसफर का कहना है कि बैठी नही गिर गई ,किसी से पानी लिया और मुँह पर डाला दो चार घूँट पिया,जान आयी ,टैक्सी बुलाई गयी और घर पहुंचे .दिन भर आराम किया और ठीक हो गई .हमसफर ने कहा कि अब तो ड्राइविंग टेस्ट में पास होना ही होगा ताकि कार खरीद सकें,और सच में इस बार पास हो गए .
दिन भर कुछ पता नही चला पर शाम होते -होते लगा कि शरीर में जरा भी हिम्मत नही है,लेट गई बिस्तर पर और उसके हमसफर को डाक्टर को घर बुलाना पड़ा.उसने शायद डीहाईडरेशन ,थकावट बताया और ताकत की दवा दे दी.
अगले दिन हमसफर को पोस्ट ऑफिस जाना था ,घर से ज्यादा दूर नही था बच्चे स्कूल गए थे सो घर में अकेले रहने से अच्छा लगा कि वह भी साथ चली जाये ,चली तो गयी पर वहाँ जब खड़ा होना पड़ा तो लगा कि हिम्मत टूट रही है, और वहीं सीड़ियों पर झटके से बैठ गई ,हमसफर का कहना है कि बैठी नही गिर गई ,किसी से पानी लिया और मुँह पर डाला दो चार घूँट पिया,जान आयी ,टैक्सी बुलाई गयी और घर पहुंचे .दिन भर आराम किया और ठीक हो गई .हमसफर ने कहा कि अब तो ड्राइविंग टेस्ट में पास होना ही होगा ताकि कार खरीद सकें,और सच में इस बार पास हो गए .
Sunday, March 11, 2012
सोहनी का महन्तनी से भक्तिन तक का सफर
गोल-मटोल शांत स्वभाव की थी इसलिये उसके मौसा -मौसी उसे मह्न्तनी कहते थे .
जब जरा बड़ी हुई तो सीधे सादे स्वभाव को देखते हुए मकान मालकिन ने कहा कि ये तो कोई देवी लगती है .
जब देखा गया कि लड़ने या झूठ बोलने या किसीसे नफरत कर सकने की हिम्मत ही नही है तो मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी सार्थक करते हुए उसे एक सहपाठिनी ने महात्मा गान्धी की चेली नाम दिया .
जब और बड़ी हुई तो साफ रंग और घुंघराले बालों को देखते हुए एक दूर की आंटी ने गोरी मेम कहा.
और अब जब लगभग सारे ही बाल सफेद होने को हैं तो छोटे भाई ने कहा कि जगद्गुरु कृपालु महाराज की बेटी जैसी लगती है.
तो लगा कि सच में महंतनी से भक्तिन तक का सफर पूरा हो गया जो बीज लेकर सोहनी इस दुनिया में आयी थी वह खिल गया.
Thursday, March 1, 2012
सोहनी की सबसे छोटी बहिन
सोहनी जब ११ साल की थी तो उसकी छोटी बहिन का जन्म हुआ था ,अस्पताल गई थी देखने तो सुना, नौ पोंड की हेल्दी बेबी ने जन्म लिया है.
घर भर की लाडली थी.उसे गोदी में खिलाने के लिए घर में बहुत सदस्य थे.
हमसब भाई-बहिनों की पढ़ाई की शुरुवात सरकारी प्राइमरी स्कूल से हुई थी पर उसे मिशनरी स्कूल में पढ़ने का मौका मिला.
अपनी बात पूरी करवा के रहती थी,एक उदाहरण है मेरे पास, हम बड़े लोग घरके पास लगनेवाले मेले में गए थे .घर आकर बताया किसी खास खिलौने के बारे में ,उसने जिद पकड़ ली कि अभी चाहिए और फिर उसे लेकर गए और खिलौना दिलवाया .
इसी जिद ने उसे डाक्टर बनाया .बचपन से ही कहती थी कि बड़ी होकर डॉक्टर बनेगी.पढ़ाई में तेज थी वजीफा मिलता था.जब मेरी शादी हुई तो आठ साल की थी,उसके बाद तो कभी कभार ही मिलना होता है
घर भर की लाडली थी.उसे गोदी में खिलाने के लिए घर में बहुत सदस्य थे.
हमसब भाई-बहिनों की पढ़ाई की शुरुवात सरकारी प्राइमरी स्कूल से हुई थी पर उसे मिशनरी स्कूल में पढ़ने का मौका मिला.
अपनी बात पूरी करवा के रहती थी,एक उदाहरण है मेरे पास, हम बड़े लोग घरके पास लगनेवाले मेले में गए थे .घर आकर बताया किसी खास खिलौने के बारे में ,उसने जिद पकड़ ली कि अभी चाहिए और फिर उसे लेकर गए और खिलौना दिलवाया .
इसी जिद ने उसे डाक्टर बनाया .बचपन से ही कहती थी कि बड़ी होकर डॉक्टर बनेगी.पढ़ाई में तेज थी वजीफा मिलता था.जब मेरी शादी हुई तो आठ साल की थी,उसके बाद तो कभी कभार ही मिलना होता है
Tuesday, February 28, 2012
सोहनी के जमाने का लाईक ,शेयर , फाइन्ड फ्रेंडस और फोलोवर
बारहवीं क्लास की फेयरवेल पार्टी में सोहनी नही गयी क्योंकि उसे पार्टी ड्रेस चाहिए थी .घरेलू कपड़ों या स्कूल यूनिफार्म में जाना नही चाहती थी और उसे यह भी पता था कि इतनी जल्दी नई ड्रेस नही मिल सकती . उसने अपनी क्लास में कहा कि वह नही आएगी .
उससमय उसके पीछे की बेंच की लड़कियों में कुछ खुसर- पुसर हुई जिसका मतलब था कि फिर उमा भी नही आएगी कभी भी उमा से बात नही हुई थी पर सुनने में आया कि वह मुझे लाईक करती है ,मैं नही आऊँगी तो वह भी नही आएगी और सच में नही आयी.
उसकी क्लास टीचर का नाम मिस भट्टी था उन्होंने नोटिस लिया कि सोहनी दूसरी लड़कियों की तरह चटर -पटर नही करती है तो पूछा कि क्या मेरी कोई फ्रेंड नही है अगर ऐसा है तो आज से उन्हें अपनी फ्रेंड समझे. इस तरह उसे एक बार क्लास ६ में मिस भूटानी और क्लास १२ में मिस भट्टी टीचर ने सहेली बनाया.पर ऐसा कभी अवसर नही आया कि उन्होंने आपस में कुछ शेयर किया हो, हाँ, इससे सोहनी के आत्मविश्वास में फर्क तो जरूर पड़ा होगा.
उन दिनों राजेश खन्ना का जमाना था ,पर उसने कोई पिक्चर नही देखी थी . अपनी किताब पर न्यूज पेपर या मैग्जीन से आकर्षक तस्वीरों वाले पेपर लेकर अपनी स्कूल की किताबों पर कवर के रूप में चढ़ाये थे ,संयोग से एक पुस्तक पर राजेश खन्ना की तस्वीर बनी हुई थी ,देखते ही क्लास में शोर मच गया कि सोहनी भी राजेश खन्ना की फॉलोवर हो गई'.
Sunday, February 26, 2012
सोहनी का सबसे छोटा भाई
जब सोहनी कि शादी हुई तो उसका सबसे छोटा भाई बारह साल का था.
एक दो महीने का ही था कि उसे तेज बुखार हुआ डाक्टर से दवा लेकर दी गयी और शायद दवा के बाद पानी पिलाने में देर कर दी, दवा इतनी तेज थी कि उसकी जीभ पक गयी अब तो दूध पीना भी मुश्किल हो गया .निशान अभी भी उसकी जीभ पर है .
जब भी बड़ा भैया गोदी में उसे खिलाता तो कहता था बड़े होकर कलेक्टर बनेगा न.
वह सबसे ज्यादा मस्तमौला था.पहली क्लास में फेल होने पर सबको खुशी से बताता रहा कि मै तो फेल हो गया.तब पापाजी ने ऑफिस से आकर रोज उसे पढ़ाना शुरू किया. और फिर तो बढ़िया नम्बर लाने लगा .
हर जरा जरा सी बात पर वह इतना उत्साहित और रोमांचित हो जाता था कि सोहनी कहती थी लगता है वह दुनिया में पहली बार आया है.
उसका पसंदीदा खेल था कीर्तन करना.गली मोहल्ले के उत्सवों में भी वह जोश से हिस्सा लेता था.
उसकी पहली पोस्टिंग बैंक की तरफ से घर से दूर पहाड़ों पर हुई.एक बार तो उसका मन हुआ कि जॉब छोड़ दे .पर पापाजी ने हौसला दिया कि हिम्मत से काम लो, जॉब आसानी से नही मिला करतीं
और वाकई उसने हिम्मत से काम लिया.अब तो ओशो का सन्यासी बन गया है.
Friday, February 24, 2012
सोहनी का हवा को बुलाने का तरीका
जब वह दस.ग्यारह साल की थी तब उनके यहाँ बिजली का कनेक्शन लगा था .उससे पहले रोज अँधेरा होते ही लालटेन जलाये जाते थे .
पर उस समय उनके कमरे में पंखा नही था .इसलिये गर्मी के मौसम में सब आँगन में या छत पर चारपाई बिछाकर सोते थे, जब बहुत गर्मी लगती तो हवा को बुलाने के लिए इक्कीस पुर गिना करते जैसे सहारनपुर सीतापुर रामपुर ,इक्कीस पुरों के नाम याद करते करते कहीं से तो हवा का झोंका आ ही जाता था और तबतक हवा आये या न आये नींद तो आ ही जाती थी .
पर उस समय उनके कमरे में पंखा नही था .इसलिये गर्मी के मौसम में सब आँगन में या छत पर चारपाई बिछाकर सोते थे, जब बहुत गर्मी लगती तो हवा को बुलाने के लिए इक्कीस पुर गिना करते जैसे सहारनपुर सीतापुर रामपुर ,इक्कीस पुरों के नाम याद करते करते कहीं से तो हवा का झोंका आ ही जाता था और तबतक हवा आये या न आये नींद तो आ ही जाती थी .
Thursday, February 23, 2012
सोहनी के बाल
बचपन में उसके बालों की कटिंग घर में ही नाई से कराई जाती थी,रंग बिरंगे रिबन बांधे जाते थे , पर जब दस ग्यारह साल की हुई तो उसके घुंघराले बालों में रोज चोटी बना कर परांदी बान्धी जाने लगी.पर जब सोहनी ने दसवीं क्लास पास कर ली तो उसने बाल कटिंग कराने की फर्माइश की क्योंकि गाहेबगाहे यानि जबतब उसे सुनाई पड़ने लगा था कि खुले बालों में वह ज्यादा सुंदर लगती है.
पापाजी के सामने बात रखी गई पर उन्होंने कहा कि नाई की जरूरत नही ,उन्होंने कैंची ली और खुद ही सेट कर दिए.और तबसे उसने कभी चोटी नही बनाई.पर खुले बालों में अक्सर चिड़ियों का घोंसला बन जाता था तब पहली बार उसके बालों के लिए शेम्पू मंगवाया गया ताकि बाल अच्छी तरह से सेट रह सकें.
जब शादी हो गई तब हनीमून पर शिमला में उसके हमसफर ने ब्यूटी पार्लर से उसके बाल सेट करवाए.
पापाजी के सामने बात रखी गई पर उन्होंने कहा कि नाई की जरूरत नही ,उन्होंने कैंची ली और खुद ही सेट कर दिए.और तबसे उसने कभी चोटी नही बनाई.पर खुले बालों में अक्सर चिड़ियों का घोंसला बन जाता था तब पहली बार उसके बालों के लिए शेम्पू मंगवाया गया ताकि बाल अच्छी तरह से सेट रह सकें.
जब शादी हो गई तब हनीमून पर शिमला में उसके हमसफर ने ब्यूटी पार्लर से उसके बाल सेट करवाए.
Tuesday, February 21, 2012
सोहनी की छोटी बहिन -भाग -८
सोहनी की छोटी बहिन उससे चार साल छोटी थी वह उसके साथ ही सोती थी और सोने से पहले वो दोनों एक दूसरे की उँगलियों में बिना छुवाये रिंग डालने का खेल खेला करते थे.
उस समय नल चलाकर पानी भरा जाता था ,चलाते समय उसने अपना हाथ उस नल के मुँह में डाल दिया और उसकी छोटी उँगली में चोट लग गई खून निकल आया अभी भी निशान है .
नहाने के लिए पानी गर्म किया जाता था एक बड़े कनस्तर में ,एक बार उसकी भाप से उसका पूरा चेहरा झुलस गया उसी समय उसे एक बुजुर्ग अनुभवी डाक्टर के पास ले गए उसका इलाज इतना अच्छा था कि ठीक होने पर जरा भी निशान नही रहा, चेहरा पहले जैसा ही आकर्षक हो गया.
उसकी छोटी बहिन को उसके दादाजी ने अमृत नाम दिया था.और वाकई वह अमृत जैसी पवित्र है .स्कूल में एकबार वह इंदिरा गाँधी भी बनी थी .
पढ़ाई-लिखाई में सबसे तेज थी .एकबार उसकी टीचर ने उस पर नकल करने का आरोप लगा दिया था तो उसने पत्र लिखा था किआरोप गलत है.
उसे बहुत सारी कवितायें याद थी कोई घर में आता तो उसे सुनाने को कहा जाता.और अब वह खुद कवितायें लिखती है .
उस समय नल चलाकर पानी भरा जाता था ,चलाते समय उसने अपना हाथ उस नल के मुँह में डाल दिया और उसकी छोटी उँगली में चोट लग गई खून निकल आया अभी भी निशान है .
नहाने के लिए पानी गर्म किया जाता था एक बड़े कनस्तर में ,एक बार उसकी भाप से उसका पूरा चेहरा झुलस गया उसी समय उसे एक बुजुर्ग अनुभवी डाक्टर के पास ले गए उसका इलाज इतना अच्छा था कि ठीक होने पर जरा भी निशान नही रहा, चेहरा पहले जैसा ही आकर्षक हो गया.
उसकी छोटी बहिन को उसके दादाजी ने अमृत नाम दिया था.और वाकई वह अमृत जैसी पवित्र है .स्कूल में एकबार वह इंदिरा गाँधी भी बनी थी .
पढ़ाई-लिखाई में सबसे तेज थी .एकबार उसकी टीचर ने उस पर नकल करने का आरोप लगा दिया था तो उसने पत्र लिखा था किआरोप गलत है.
उसे बहुत सारी कवितायें याद थी कोई घर में आता तो उसे सुनाने को कहा जाता.और अब वह खुद कवितायें लिखती है .
Monday, February 20, 2012
सोहनी का छोटा भाई -भाग -७
उसका छोटा भाई उससे छह साल छोटा था .जब वह ढाई तीन साल का रहा होगा तो उसे काफी तेज बुखार चढ़ा था बुखार तो उतर गया पर कमजोरी के कारण उसने चलना बंद कर दिया.
चिंता हो गयी कि कहीं पोलियो जैसी बात तो नही हो जाyeगी पर उन्ही दिनों हम सब ट्रेन से दूसरे शहर गए थे ,ट्रेन में एक नए महौल में आते ही उसमे बदलाव आता गया ,ट्रेन की खिड़की की रेलिंग पकड़- पकड़ कर खड़ा होना शुरू कर दिया,चलने की कोशिश करने लगा .कुछ ही दिनों में तन्दरुस्त हो गया .
उसे स्कूल जाना पसंद नही था,इसलिये कई बार वह स्कूल से भाग कर वही नजदीक ही रहने वाली पापाजी की चाचीजी के घर चला जाता.
सर्दियों के मौसम में ठंड से उसके गाल और पैर फट जाते थे.फिर उस पर वैसलीन लगाई जाती थी .
जब वह दस साल का था तो दीपावली के समय बीस रूपए लेकर कुछ सामान लेने गया था पर उससे रुपये गुम हो गए थे .
बड़े होने पर उसे मुहांसो ने काफी तंग किया.अभी वह आठवीं में ही था कि सोहनी की शादी हो गयी .एक बार वह सोहनी को ट्रेन से ससुराल छोड़ने भी गया था .टिफिन लेकर गए थे पर रास्ते में ट्रेन में उन्हें खाने में संकोच हो रहा था .घर पहुंचकर ही खाया.
उसके भाई को म्यूजिक का शौक था ,इसलिये उसने बैन्जो बजाना सीखा था ,और इसी कला ने उसे तब बहुत सहारा दिया जब वह इंजीनीयर बनने के लिए होस्टल गया था .
वहाँ जमकर रैगिंग हुई थी ,एकबार तो उसका मन हुआ कि पढ़ाई छोड़कर वापिस आजाये ,पर पापा जी ने हिम्मत दी और फिर जब होस्टल में उसने बैंजो बजाया तो रैगिंग खत्म हो गयी . सबने बैंजो सुनना शरू कर दिया.
चिंता हो गयी कि कहीं पोलियो जैसी बात तो नही हो जाyeगी पर उन्ही दिनों हम सब ट्रेन से दूसरे शहर गए थे ,ट्रेन में एक नए महौल में आते ही उसमे बदलाव आता गया ,ट्रेन की खिड़की की रेलिंग पकड़- पकड़ कर खड़ा होना शुरू कर दिया,चलने की कोशिश करने लगा .कुछ ही दिनों में तन्दरुस्त हो गया .
उसे स्कूल जाना पसंद नही था,इसलिये कई बार वह स्कूल से भाग कर वही नजदीक ही रहने वाली पापाजी की चाचीजी के घर चला जाता.
सर्दियों के मौसम में ठंड से उसके गाल और पैर फट जाते थे.फिर उस पर वैसलीन लगाई जाती थी .
जब वह दस साल का था तो दीपावली के समय बीस रूपए लेकर कुछ सामान लेने गया था पर उससे रुपये गुम हो गए थे .
बड़े होने पर उसे मुहांसो ने काफी तंग किया.अभी वह आठवीं में ही था कि सोहनी की शादी हो गयी .एक बार वह सोहनी को ट्रेन से ससुराल छोड़ने भी गया था .टिफिन लेकर गए थे पर रास्ते में ट्रेन में उन्हें खाने में संकोच हो रहा था .घर पहुंचकर ही खाया.
उसके भाई को म्यूजिक का शौक था ,इसलिये उसने बैन्जो बजाना सीखा था ,और इसी कला ने उसे तब बहुत सहारा दिया जब वह इंजीनीयर बनने के लिए होस्टल गया था .
वहाँ जमकर रैगिंग हुई थी ,एकबार तो उसका मन हुआ कि पढ़ाई छोड़कर वापिस आजाये ,पर पापा जी ने हिम्मत दी और फिर जब होस्टल में उसने बैंजो बजाया तो रैगिंग खत्म हो गयी . सबने बैंजो सुनना शरू कर दिया.
Tuesday, February 14, 2012
सोहनी की लाटरी लग गयी -भाग-६
सोहनी ने सोचा कि वह बड़ी होकर एयर होस्टेस बनेगी.पर उसके फूफाजी हवाई सफर कर चुके थे. उन्होंने पूछा कि क्या वह वेटर का काम कर सकती है.जहाज में तो सभी को खाना पानी सर्व करना होगा.सुनते ही उत्साह ठंडा पड़ गया.
फिर एक बार सोचा कि नर्स बनेगी तब पापाजी ने बताया कि सड़े गले घावों की मरहम पट्टी करनी पड़ेगी .तो मुश्किल में पड़ गई असल में इन दोनों जॉब में जाने का आकर्षण उनकी एट्रेक्टिव और स्मार्ट यूनीफार्म थी .
उसने अपने लिए दो ड्रेस सिली थीं एक फ्राकनुमा थी, दूसरी पर उसने फूलों वाली कढ़ाई की थी. अपनी सबसे छोटी बहिन के लिए भी एक ड्रेस बनाई थी.पर उसने यह कभी नही सोचा कि वह बड़ी होकर ड्रेस डिजाइनर बनेगी .क्योंकि उन दिनों उसने ड्रेस डिजाइनर का नाम कभी सुना ही नही था ,दर्जी का नाम सुना था सिर्फ.
एकबार उसने सफेद रंग के सेंडिल खरीदे और उनको पहन कर अपने घर के बरामदे में ही खूब एन्जॉय कर के चलती रही, खुश होती रही .
जब नवीं क्लास में गयी तो उसे चश्मा लग गया था उसके भाई को पहले ही लग चुका था और सब चाहते थे कि चश्मा उतर जाये इसलिये उसे गायका ताजा कच्चा दूधपीने को दिया जाता था.पर सोहनी तो खुद ही चश्मा पहनना चाहती थी .पहन कर उसे एट्रेक्टिव फील होता था.
दसवीं क्लास के बाद उसके पापाजी का ट्रांसफर हो गया ,इसलिये नया शहर ,नया कोलेज था.और था उसका हद से ज्यादा शर्मीला या कहें कि संकोची स्वभाव .उसके क्लास की एक लड़की ने उसे एक नाटक में काम करने की ऑफर दी ,उसका भाई किसी नाट्य संस्था से जुड़ा हुआ था पर अपने संकोची स्वभाव के कारण उसने मना कर दिया.
घर में शेर और बाहर म्याऊ थी.हर बात में बहस शरू कर देती थी, दादाजी कहते थे जरूर बड़ी होकर वकील बनेगी उन्हें शायद पता नही था कि बाहर तो भीगी बिल्ली थी वकील क्या खाक बनती.
थोड़ा बहुत लिखना आता था इसलिये शेख चिल्ली की तरह कल्पना करते हुए अपनी बुआजीजी को एक चिट्ठी लिखी कि उसकी पांच लाख की लाटरी निकली है.जिससे उसने एक सुंदर सी कोठी और कार खरीद ली है घर का सारा सामान ले लिया है काम करने के लिए नौकर भी हैं और बाकी रुपये बैंक में जमा कर दिए हैं .
और आने वाले कुछेक सालों में उसकी यह कल्पना साकार भी हो गयी बिना पांच लाख की लाटरी निकले.क्योंकि बी.ए.करते ही एक अच्छा सा रिश्ता आ गया और शादी होते ही दुबई में नौकरी मिल गयी उसके हमसफर को जोकि लाटरी से कम बात नही थी .
Sunday, February 5, 2012
सोहनी की गुफा -भाग (५)
पड़ोस की लड़की स्कूल में दूसरे बच्चों को कहती थी कि सोहनी तो किसी गुफा में रहती है क्योंकि स्कूल से आने के बाद घर में घुसती है तो सुबह स्कूल आने के समय ही घर से निकलती है.
सोहनी अपनी गुफा में बहुत खुश थी उसमे उसके दादा-दादी ,चाचा -चाची और बुआ भी रहती थी .
उनके घर में हर महीने नंदन,चम्पक ,पराग, चन्दामामा ,धर्मयुग ,हिदुस्तान, नवनीत ,कादम्बिनी ,रीडर डाइजेस्ट, माधुरी ,सरिता इत्यादि ढेर सारी मैग्जीन्स आती रहती थी.उसके पापाजी लाईब्रेरी से भी किताबें लाते थे .
उसका भैया कुछ भी पढ़ते हुए ही खाना खाता था.कई बार तो उसके हाथ से मैग्जीन छीननी पड़ती थी .
उसके भैया की स्टडी टेबल पर रेडियो था. गाने लगाकर ही पढ़ाई करता था.हालांकि उसे एक भी गाना याद नही था गाने के संगीत की मधुर आवाज में उसका मन पढ़ाई में केन्द्रित होता था.
उसका भाई बहुत सुंदर और पढ़ाई में होशियार था.पर उसकी लिखाई महात्मा गांधीजी की लिखाई की तरह थी ,उसके मास्टर साहब उसे कहते थे कि काश उसकी लिखाई भी उसकी शक्ल जैसी होती .
उनका परिवार एक बड़ा परिवार था इसलिये जब भी घर में फल मिठाई आते तो सबके लिए हिस्से बन जाते थे और सोहनी की नजर सबसे बड़े वाले हिस्से पर रहती थी .उसका कहना था कि उसे सबसे ज्यादा भूख लगती है इसलिये उसे बड़ा हिस्सा चाहिए.
सोहनी जब छोटी थी तो उसे तीन पहियों वाली साईकिल लेकर दी गई थी उस पर बैठकर ही वह खाना खाती, सो जाती किसी के घर जाना हो तो रिक्शे पर उसकी साईकिल को भी ले जाना पड़ता.एक मिनट के लिए भी वह अपनी साईकिल को छोड़ना नही चाहती थी.
एक बार मेले से एक गुड़िया भी ली जो लिटाने पर आँखे बंद कर लेती थी बैठाने पर आंखे खोल लेती थी.उसके भैया ने मोटरसाईकिल वाला खिलौना लिया था.
स्कूल की छुट्टियाँ पड़ने पर सोहनी अपने भैया के साथ रिक्शे पर बाजार गई थी और दोनों ने अपने खेलने के लिए लूडो और सांप सीड़ी खरीदी थी.
उसके भैया ने अपनी पाकेट मनी इकट्ठा करके कैरम बोर्ड और एक बार मैकेनिकसेट भी लिया था.उसकेभैया को पुर्जों से जोड़ कर कुछ बनाने में बड़ा आनंद आता था.सब कहते थे कि यह तो बड़ा होकर मैकेनिकल इन्जीनियेर बनेगा.
अक्सर इतवार को उसके पापाजी उन सब भाई -बहिनों को कम्पनी गार्डन में घुमाने ले जाते थे ,पर उनकी मम्मीजी नही जा पातीं थीं , क्योकि उस समय वह उन सबके लिए खाना बना रही होती थीं .
तरबूज के मौसम में सब बच्चे गोलाई में बैठ जाते और उनके पापाजी तरबूज काट कर सभी को दिया करते थे जैसे अब केक काटने का फैशन है .अब तो सोहनी अपना जन्मदिन भी तरबूज काटकर ही मनाती है.
छोलियों (हरे चने )के मौसम में पके छोलिये धूप में सुखाये जाते और फिर उसके पापाजी सूखे छोलियों को आँगन में आग में भूनते ,बच्चे आस-पास बैठ जाते और गरमा गर्म भुने छोलियों को खाने का लुत्फ़ उठाते..
उनके पापाजी का समय समय पर तबादला हो जाता था.इसलिय उसने कई शहर देख लिए जैसेकि सहारनपुर, बस्ती शाहजहांपुर ,सीतापुर, मुरादाबाद, गोपेश्वर ,मुजफ्फरनगर.
सहारनपुर में वह काफी समय अपने दादाजी के मकान में रहे, उसमे ईंटो का फर्श था जिसपर झाडूं- पोचा लगाना उसे सिखाया गया .
पानी के लिए हैण्ड-पम्प था .जब मम्मी कपड़े धोने के लिए बैठती तो नल चलाकर टब में पानी भरना उसकी जिम्मेदारी थी .
चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियाँ मगाईं जातीं तो उन्हें धूप में सुखाने के लिए कई बार सब बच्चे मिलकर छत पर चढ़ाते .
सोहनी अपनी गुफा में बहुत खुश थी उसमे उसके दादा-दादी ,चाचा -चाची और बुआ भी रहती थी .
उनके घर में हर महीने नंदन,चम्पक ,पराग, चन्दामामा ,धर्मयुग ,हिदुस्तान, नवनीत ,कादम्बिनी ,रीडर डाइजेस्ट, माधुरी ,सरिता इत्यादि ढेर सारी मैग्जीन्स आती रहती थी.उसके पापाजी लाईब्रेरी से भी किताबें लाते थे .
उसका भैया कुछ भी पढ़ते हुए ही खाना खाता था.कई बार तो उसके हाथ से मैग्जीन छीननी पड़ती थी .
उसके भैया की स्टडी टेबल पर रेडियो था. गाने लगाकर ही पढ़ाई करता था.हालांकि उसे एक भी गाना याद नही था गाने के संगीत की मधुर आवाज में उसका मन पढ़ाई में केन्द्रित होता था.
उसका भाई बहुत सुंदर और पढ़ाई में होशियार था.पर उसकी लिखाई महात्मा गांधीजी की लिखाई की तरह थी ,उसके मास्टर साहब उसे कहते थे कि काश उसकी लिखाई भी उसकी शक्ल जैसी होती .
उनका परिवार एक बड़ा परिवार था इसलिये जब भी घर में फल मिठाई आते तो सबके लिए हिस्से बन जाते थे और सोहनी की नजर सबसे बड़े वाले हिस्से पर रहती थी .उसका कहना था कि उसे सबसे ज्यादा भूख लगती है इसलिये उसे बड़ा हिस्सा चाहिए.
सोहनी जब छोटी थी तो उसे तीन पहियों वाली साईकिल लेकर दी गई थी उस पर बैठकर ही वह खाना खाती, सो जाती किसी के घर जाना हो तो रिक्शे पर उसकी साईकिल को भी ले जाना पड़ता.एक मिनट के लिए भी वह अपनी साईकिल को छोड़ना नही चाहती थी.
एक बार मेले से एक गुड़िया भी ली जो लिटाने पर आँखे बंद कर लेती थी बैठाने पर आंखे खोल लेती थी.उसके भैया ने मोटरसाईकिल वाला खिलौना लिया था.
स्कूल की छुट्टियाँ पड़ने पर सोहनी अपने भैया के साथ रिक्शे पर बाजार गई थी और दोनों ने अपने खेलने के लिए लूडो और सांप सीड़ी खरीदी थी.
उसके भैया ने अपनी पाकेट मनी इकट्ठा करके कैरम बोर्ड और एक बार मैकेनिकसेट भी लिया था.उसकेभैया को पुर्जों से जोड़ कर कुछ बनाने में बड़ा आनंद आता था.सब कहते थे कि यह तो बड़ा होकर मैकेनिकल इन्जीनियेर बनेगा.
अक्सर इतवार को उसके पापाजी उन सब भाई -बहिनों को कम्पनी गार्डन में घुमाने ले जाते थे ,पर उनकी मम्मीजी नही जा पातीं थीं , क्योकि उस समय वह उन सबके लिए खाना बना रही होती थीं .
तरबूज के मौसम में सब बच्चे गोलाई में बैठ जाते और उनके पापाजी तरबूज काट कर सभी को दिया करते थे जैसे अब केक काटने का फैशन है .अब तो सोहनी अपना जन्मदिन भी तरबूज काटकर ही मनाती है.
छोलियों (हरे चने )के मौसम में पके छोलिये धूप में सुखाये जाते और फिर उसके पापाजी सूखे छोलियों को आँगन में आग में भूनते ,बच्चे आस-पास बैठ जाते और गरमा गर्म भुने छोलियों को खाने का लुत्फ़ उठाते..
उनके पापाजी का समय समय पर तबादला हो जाता था.इसलिय उसने कई शहर देख लिए जैसेकि सहारनपुर, बस्ती शाहजहांपुर ,सीतापुर, मुरादाबाद, गोपेश्वर ,मुजफ्फरनगर.
सहारनपुर में वह काफी समय अपने दादाजी के मकान में रहे, उसमे ईंटो का फर्श था जिसपर झाडूं- पोचा लगाना उसे सिखाया गया .
पानी के लिए हैण्ड-पम्प था .जब मम्मी कपड़े धोने के लिए बैठती तो नल चलाकर टब में पानी भरना उसकी जिम्मेदारी थी .
चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियाँ मगाईं जातीं तो उन्हें धूप में सुखाने के लिए कई बार सब बच्चे मिलकर छत पर चढ़ाते .
Friday, February 3, 2012
अच्छी लड़कियाँ (अब सोहनी बड़ी हो रही थी)_भाग (४)
गली में बच्चों के साथ मम्मी की चुन्नी लपेटकर कोई ड्रामा चल रहा था ,पापाजी ने देख लिया और आवाज देकर सोहनी को घर के अंदर बुलाया.पहले आराम से, फिर जोर देकर समझाया कि अच्छी लड़कियाँ गली में खड़े होकर ऐसे ड्रामे नही करती.
घर के अंदर थि़रक रही थी ,मम्मीजी ने समझाया अच्छी लड़कियाँ नाचा नही करतीं.
नुक्कड़ की दुकान से कुछ खरीदने के लिए जाने लगी तब पापाजी ने रोका और कहा कि भैया ले आएगा.अच्छी लडकियां दुकानों पर नही जाया करती.
मम्मीजी के साथ किसीके घर जा रही थी ,मम्मीजी ने समझाया कि अच्छी लड़कियाँ ऐसे तन कर नही चलती.
पापाजी के साथ दांत के दर्द के इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाने के लिए तैयार हो रही थी .उन्होंने मम्मीजी को कहा कि बड़ी हो रही है ,सलवार या पजामी पहनाओ इसे .और तब से फ्राक, स्कर्ट पहनना बंद हो गया.
सबको टाफी बाँट रही थी उसने बड़े भैया के दोस्त को भी दे दी.पापाजी ने समझाया कि अच्छी लड़कियाँ लड़कों से बात नही करती, उनसे दूर रहती हैं चाहे वह भैया का दोस्त ही क्यों न हो.
बच्चों को बड़ा करने के साथ साथ सोहनी के मम्मी पापा भी बड़े हो रहे थे. इसलिये धीरे धीरे उनकी भी अच्छी लड़कियों की परिभाषा में बदलाव आता गया.उनकी यह सोच बदल गई कि अच्छी लड़कियाँ नाचती नहीं या खरीदारी नही करती,या लड़कों से बात नही करती.
Wednesday, February 1, 2012
शेष भाग -बचपन का -भाग (३)
चाचीजी ने समझाया कि बच्चे अगर पाउडर क्रीम लगाते हैं तो उनकी स्किन जल्दी खराब हो जाती है.
पहला नदी स्नान -पड़ोस के बच्चों के साथ नदी पर नहाने गई.समय का कोई ख्याल नही था . घर आये तो देर हो गई थी. तब पापाजी ने टाइम देखना सिखाया.
पहला बुखार-करीब एक महीने तक मियादी ज्वर से पीड़ित रही.ठीक होने के बाद कमजोरी इतनी थी कि चलते समय पैर कांपते थे ,सर के सारे बाल झड़ने लग गए ,चेहरे पर फुन्सिंया निकल आयी थीं .तभी छठी क्लास में जाने के लिए प्रवेश परीक्षा भी देनी पड़ी,चेहरे के दानो को देखते हुए उसे सबसे अलग बैठाया गया.
पहला अनुभव घर से बाहर रहने का-पापाजी के साथ बुआजी को मिलने गई उन्होंने लाड से रोक लिया कि आज इसे यही छोड़ दो कल वो घर ले आयेंगी.,रुक तो गई पर शाम को अँधेरा होते ही घर जाने की जल्दी हो गई और फिर उनके देवर को घर पहुंचाना पड़ा.(तब पता नही था कि भविष्य में उसी देवर से शादी करके हमेशा के लिए आने वाली है .)
स्कूल की क्लास के बच्चों में कोई बहस छिड़ गई तो सोहनी से फैसला करवाया गया की सच क्या है क्योंकि क्लास का मानना था की वह झूठ नही बोलेगी.
उसके मजाक को भी सच मान लेते थे .कोई सोच नही सकता था कि वह भी मजाक कर सकती है.
उसकी चाचीजी किसी से मिलने जातीं तो साथ ले जातीं .वह वहाँ दूसरे बच्चों के साथ खेलती रहती उनका ख्याल था कि वहाँ जो भी बातें हो रही हैं वह नही सुनेगी , सुन भी ले तो घर आकर किसी को कुछ नहीं बतायेगी.और उनका ख्याल सही था .
बचपन में ही छोटी बहिन की डिफ्थीरिया बीमारी से मृत्यु देखी .माँ का दुःख दिन में देखा और रात के अँधेरे में पापा को दुःख से रोते हुए सुना .
पापाजी ने तब अपने को सम्भालने के लिए वशिष्ट योग पढ़ना शुरू किया.अध्यात्म में अपना मन लगाया .उन्ही दिनों घर में सुना कि मनुष्य केवल शरीर ही नही है आत्मा परमात्मा के बारे में सुना .जिज्ञासा हुई तो भागवत गीता के श्लोक पढ़ने शुरू किये.
और एक साल के अंदर ही उनके घर एक बेटी ने जन्म लिया सब मानते हैं कि वही बहिन वापिस आ गई दूसरा शरीर लेकर.
प्राईमरी स्कूल में तो वह हमेशा प्रथम आती थी पर बाद में दूसरे स्कूल में जाने पर प्रथम कभी नही आयी.उसे पढ़ाई में तेज समझा जाता था पर सच में ऐसा था नही.
कक्षा में चुप रहती थी इसलिये शोर होने पर टीचर पूरी क्लास को खड़ा रहने की सजा देतीं थीं पर उसे बैठा देती थीं एकबार तो ऐसा हुआ कि उसे कहा गया कि सबके हाथों पर एक एक बार स्केल मारे ,यानि वह सभी को सजा दे .इस पर सब बच्चे हंस पड़े .
इंटरवल में भी क्लास से बाहर खेलने नही जाती थी तो उसकी क्लास टीचर(मिस भूटानी) ने पूछा कि तुम्हारी कोई सहेली नही है क्या?हाँ में जवाब दिया तो उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी सहेली बना लो.
पहला नदी स्नान -पड़ोस के बच्चों के साथ नदी पर नहाने गई.समय का कोई ख्याल नही था . घर आये तो देर हो गई थी. तब पापाजी ने टाइम देखना सिखाया.
पहला बुखार-करीब एक महीने तक मियादी ज्वर से पीड़ित रही.ठीक होने के बाद कमजोरी इतनी थी कि चलते समय पैर कांपते थे ,सर के सारे बाल झड़ने लग गए ,चेहरे पर फुन्सिंया निकल आयी थीं .तभी छठी क्लास में जाने के लिए प्रवेश परीक्षा भी देनी पड़ी,चेहरे के दानो को देखते हुए उसे सबसे अलग बैठाया गया.
पहला अनुभव घर से बाहर रहने का-पापाजी के साथ बुआजी को मिलने गई उन्होंने लाड से रोक लिया कि आज इसे यही छोड़ दो कल वो घर ले आयेंगी.,रुक तो गई पर शाम को अँधेरा होते ही घर जाने की जल्दी हो गई और फिर उनके देवर को घर पहुंचाना पड़ा.(तब पता नही था कि भविष्य में उसी देवर से शादी करके हमेशा के लिए आने वाली है .)
स्कूल की क्लास के बच्चों में कोई बहस छिड़ गई तो सोहनी से फैसला करवाया गया की सच क्या है क्योंकि क्लास का मानना था की वह झूठ नही बोलेगी.
उसके मजाक को भी सच मान लेते थे .कोई सोच नही सकता था कि वह भी मजाक कर सकती है.
उसकी चाचीजी किसी से मिलने जातीं तो साथ ले जातीं .वह वहाँ दूसरे बच्चों के साथ खेलती रहती उनका ख्याल था कि वहाँ जो भी बातें हो रही हैं वह नही सुनेगी , सुन भी ले तो घर आकर किसी को कुछ नहीं बतायेगी.और उनका ख्याल सही था .
बचपन में ही छोटी बहिन की डिफ्थीरिया बीमारी से मृत्यु देखी .माँ का दुःख दिन में देखा और रात के अँधेरे में पापा को दुःख से रोते हुए सुना .
पापाजी ने तब अपने को सम्भालने के लिए वशिष्ट योग पढ़ना शुरू किया.अध्यात्म में अपना मन लगाया .उन्ही दिनों घर में सुना कि मनुष्य केवल शरीर ही नही है आत्मा परमात्मा के बारे में सुना .जिज्ञासा हुई तो भागवत गीता के श्लोक पढ़ने शुरू किये.
और एक साल के अंदर ही उनके घर एक बेटी ने जन्म लिया सब मानते हैं कि वही बहिन वापिस आ गई दूसरा शरीर लेकर.
प्राईमरी स्कूल में तो वह हमेशा प्रथम आती थी पर बाद में दूसरे स्कूल में जाने पर प्रथम कभी नही आयी.उसे पढ़ाई में तेज समझा जाता था पर सच में ऐसा था नही.
कक्षा में चुप रहती थी इसलिये शोर होने पर टीचर पूरी क्लास को खड़ा रहने की सजा देतीं थीं पर उसे बैठा देती थीं एकबार तो ऐसा हुआ कि उसे कहा गया कि सबके हाथों पर एक एक बार स्केल मारे ,यानि वह सभी को सजा दे .इस पर सब बच्चे हंस पड़े .
इंटरवल में भी क्लास से बाहर खेलने नही जाती थी तो उसकी क्लास टीचर(मिस भूटानी) ने पूछा कि तुम्हारी कोई सहेली नही है क्या?हाँ में जवाब दिया तो उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी सहेली बना लो.
Sunday, January 29, 2012
सोहनी के बचपन के याद रह गए पल.-भाग (२)
बचपन का नाम-महंतनी ,गोल-मटोल शांत स्वभाव की थी इसलिये उसके मौसा -मौसी उसे मह्न्तनी कहते थे .
पहला डर -हाथ का नाखून काटते समय जरा सा खून निकल आया तो सोहनी ने डर कर मुठ्ठी भींच ली और काफी देर तक नही खोली.
पहला अप्रेल फूल -सोहनी के भैया बगीचे में मिट्टी खोद रहे थे उसने पूछा कि क्या कर रहे हैं तो जवाब मिला कि अप्रेलफूल बना रहा हूँ.सोहनी कई दिन तक इन्तजार ही करती रही कि कब अप्रेल फूल निकलेगा.
पहली कट्टी और अब्बा-सोहनी का जबर्दस्त झगड़ा हो गया अपनी पक्की सहेली से ,कानी (छोटी)ऊँगली मिलाकर कट्टी कर ली,मतलब बोलचाल बंद.फिर उसीपल ख्याल आया कि कल उसका जन्मदिन है तो उसी समय अंगूठे के साथ वाली ऊँगली मिलाकर अब्बा कर ली और जन्मदिन में आने का निमंत्रण दे दिया.
पहला जन्मदिन -आमों की बहार से मना.मम्मी ने गली से आम लिए पच्चीस पैसे के पच्चीस और पापाजी भी टूर से आते हुए पचास पैसे के पचास आम लेते हुए आगये .सहेली भी आम ही लेकर आयी थी.
पहला जुर्माना-सहेली की स्लेटी सोहनी से टूट गई उसने साबुत स्लेटी लौटने को कहा,अगले दिन लाकर दी और बदले में टूटी स्लेटी भी नही ली.
पहली शापिंग -स्कूल के बाहर के ठेलेवाले से इंटरवल में दस पैसे देकर पापिंस ली उसने कहा की बारह पैसे की है कल दो पैसे और दे देना.अगले दिन उसे दो पैसे दिए तो उसने हैरानी दिखाई .
पहला नाटक -सोहनी के पापाजी सोने से पहले बच्चों को कहानी सुनाया करते थे, कुल छह भाई -बहिन थे .दूसरा नम्बर उसका था जरूरी बात है कि गोदी में आने का मौका तो सबसे छोटे बच्चे को ही मिलेगा तो वह सोने का नाटक करती ताकि गोदी में उठाकर बिस्तर तक ले जाया जाय.
पहली जिद -सोहनी को सर्कस देखने नही ले जा रहे थे कारण कि वह वहाँ रोयेगी , तो उसने जवाब दिया धीरे - धीरे रो लूँगी.
पहला मेकअप -सोहनी की मम्मी मेकअप नही करती थीं उसने चाचीजी का मेकअप बाक्स देखा तो उसमे से पाउडर निकाल कर चुपके से लगाया.
Tuesday, January 10, 2012
गम किस बात का ?
बहुत से लोग गाँधी की बात नही समझ पाये.
बहुत से लोग सुकरात की बात नही समझ पाये .
बहुत से ईसा की बात नही समझ पाये.
बहुत से ओशो की बात नही समझ पाये .
और अब अन्ना की बात नही समझ पा रहे हैं.
तो अगर मेरी बात नही समझ पाये तो क्या गम है .
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