आज सुबह ध्यान में लेटी तो तभी एकदम से समझ में आ गया गीता के उस श्लोक का मतलब कि मै सब में हूँ पर सब मुझ में नही, समझ में इस तरह आया कि जड़ और चेतन दोनों अलग अलग हैं , प्रकृति जड़ है, तो जब कहते हैं कि कण,कण में तू है तो लगता है कि गंदगी में कैसे हो सकता है भगवान ,सुंदर फूल में तो हो सकता है पर कीचड़ में कैसे हो सकता है तो अब समझ में आया कि जैसे एक प्लास्टिक के खिलौने में बैटरी डालने से वो चलता बोलता है उसी तरह बैटरी रूपी चेतन आत्मा के होने से हम जीवित हैं .
सूरज के प्रकाश से पेड़ ,पौधे, बारिश वगैरह एक सीक्वेंस से चलते रहते है इसी तरह इन्सान भी आत्मा के प्रकाश से सब कुछ करता रहता है पर फर्क इतना है कि इन्सान के अंदर अहंकार भी है वो समझता है कि खुद कर रहा है.
ऐसा जब कहते हैं कि परलोक को सुधारो, अच्छे कर्म करो ताकि अगला जन्म अच्छा मिले तो कुछ लोग कहते हैं कि परलोक को किसने देखा है, क्या पता दूसरा जन्म होगा भी या नही ,इस जन्म में मौजमस्ती कर लें, ये तो हमारे हाथ में है पर उन्हें यह समझने की जरूरत है कि इस जन्म में जो मौज मस्ती मिलनी है वो हम साथ लेकर ही आये है.
पिछले जन्म में जो कमाया था वो साथ लेकर आते ही है ,उन सबका उपयोग करते करते मन ही मन दूसरे जन्म की कमाई करते रहते है ,अगर मन में अच्छे भाव है तो अगला जन्म अच्छा होगा ,बुरे भाव हैं तो अच्छा नही होगा और अच्छे बुरे दोनों से परे है तो मोक्ष है. प्रकृति से ही सब कुछ चल रहा है ,आत्मा सब जानती है देखती है .प्रकृति जड़ है ,जड़ कुछ कैसे कर सकता है अपने आप नही कर सकता ,चेतन तत्व की उपस्थिति से ही कर सकता है जैसे कि चाबी भरने पर ही या बैटरी डालने पर ही गुड़िया बोलती है ,चलती है. चार्ज होने पर ही मोबाइल फोन काम करता है ,चन्द्रमा सूरज के प्रकाश से ही रोशनी देता है. तो गड़बड़ कैसे शुरू होती है. दोनों के मेल से जब अहंकार बनता है तभी गड़बड़ शुरू होती है ,क्योंकि अहकार होने से हम सोचते हैं कि हम करते हैं खुश होते हैं कि मैं कितना अच्छा करता हूँ ,कितना योग्य हूँ दूसरे का अहंकार अपने को योग्य मानता है यहीं से झगड़े की जड़ शुरू हो जाती है अगर हम आत्मा की सीट पर ही रहें तो ऐसे आनन्द में रहेंगे जहाँ न सुख है न दुःख .जैसे कि एक छोटा बच्चा मस्ती में रहता है.